इस कैलेंडर-वर्ष का अंतिम
दिन, अंततः आ ही गया
अब कुछ घंटे ही शेष हैं, फिर
नव वर्ष आगमन होगा॥
कैसे बीत जाते दिवस, मास,
वर्ष और आयु-अवस्थाऐं
जीव महसूस न कर पाता, उम्र
फिसली जाती हाथ से।
पैदा हुआ, युवा बना और
वृद्धावस्था को दिशा ली कर
जीवन-चक्र में सब घूमता रहा,
विस्मित देखते रहें हम॥
पर कैसे ठहरा लें वक़्त संग,
क्या कुछ युक्ति संभव है
दिन रहें पूरी संचेतना से,
ताकि गत पल-अहसास रहे।
कुछ यंत्र तो प्रारब्ध में
मिलें, स्मृति को रूह में ही रखने
वह भी कालांतर-विस्मृत, और
हम जीवन से परे होते॥
देखो, काल बीतता जाता यहाँ,
कोई आऐ या फिर जाऐ
यह शाश्वत प्रवाह, लौटकर समय
फिर वापस न आऐ।
हाँ माना चक्र-भाँति,
पुनः-पुनः नव-रूपों में इंगित होता
क्या विभ्रांति व्यूह की, हम
बदलते या यह चला जाता?
किसे कहें बदलाव,
संसार-अवस्थाऐं या काल का बहना
हम बस खड़े नाटक करते रहते,
लगता जग बदल रहा।
यह है स्व-जग रूपांतरण,
जिसको काल-परिवर्तन कहें
कुछ नियम प्रकृति-प्रदत्त,
उनके अनुसार सब चलन हैं॥
जंगम-स्थावर की शैली,
एकत्रित निरंतरता काल धकेले
देखें तो कुछ न यूँ ही, सब
अवस्थाऐं समय पर आती हैं।
ऋतुऐं समय पर, अन्य
प्रकृति-कारक प्रभाव हैं जमाते हाँ
शनै-प्रक्रिया है, कुछ ध्यान
से देखें तो अधिक न बदला॥
हाँ बदलाव है बाह्य रूपों
में, प्राणी व स्थावर स्वरूप में
काल यदि कुछ वर्षों का, वह
भी हमारी भाँति चल रहें।
हम हैं करते बीते पल स्मरण,
कुछ भिन्न जो वर्तमान से
बड़ा संसार, बहु-प्रक्रियाऐं,
चलती रहती चाहे-अचाहे॥
किसके रोके रुका जीवन, बहता
अनवरत अनंत-रूप
नर हेंकड़ी भरता, संसाधनों पर
अधिकार चाहता सर्व।
धनी, शक्ति-बुद्धिमान व अन्य
भी, आवरण हैं चढ़ा लेता
जग-प्रक्रिया प्रभावित चाहे,
अनाप-शनाप किए बहुदा॥
कुछ बदला प्रकृति ने स्वरूप,
कुछ प्राणी भी प्रपञ्च किए
उन्हीं से धरा-दशा बदल रही,
जिनको परिवर्तन हैं कहे।
कैसा व्यूह समझ नहीं पाते,
निरंतर पुनरावृत्ति होती है पर
विशेष-काल में भिन्न रूप,
अन्यथा तो एक सार सा सब॥
हाँ प्रकृति के काल-गर्भ
जाकर, भिन्न अवस्थाऐं ज्ञात होती
इनको परिवर्तन कह सकते,
क्योंकि अवस्थाऐं हैं बदलती।
कुछ हुए आमूल-परिवर्तन,
उन्होंने आयाम-दशा दी बदल
सब इतना शनै, अपवाद यदि तो
गुजर जाना ही है कथन॥
नव-वर्ष आया, प्राचीन बीता व
कामना-प्रार्थना मंगलमय की
क्या चेष्टा शुभ हेतु, यह एक
काल-खंड अनुरूप बनाने की।
पूर्ण भाग्य, जैसे सूर्य
तारक का जीवन-चक्र तो प्राणी-वश न
तथापि प्रस्तुत वर्तमान में
यदि संभव, तो उसका ही प्रबन्धन॥
कहो, मिल बनाऐं वर्तमान
बेहतर, तब वर्ष मंगलमय कहेंगे
निज समय-भविष्य के मालिक,
क्यों न बुद्धि में चिंतन करें।
समय यूँ आएगा, अपने लिए
वर्तमान में कुछ बना लो जगह
सकारात्मक निर्वाह-भागी
बनें, तब मंगल-कामनाऐं सार्थक॥
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