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Thursday, 1 January 2015

वर्ष-परिवर्तन

वर्ष-परिवर्तन 



इस कैलेंडर-वर्ष का अंतिम दिन, अंततः आ ही गया

अब कुछ घंटे ही शेष हैं, फिर नव वर्ष आगमन होगा॥

 

कैसे बीत जाते दिवस, मास, वर्ष और आयु-अवस्थाऐं

जीव महसूस न कर पाता, उम्र फिसली जाती हाथ से।

पैदा हुआ, युवा बना और वृद्धावस्था को दिशा ली कर

जीवन-चक्र में सब घूमता रहा, विस्मित देखते रहें हम॥

 

पर कैसे ठहरा लें वक़्त संग, क्या कुछ युक्ति संभव है

दिन रहें पूरी संचेतना से, ताकि गत पल-अहसास रहे।

कुछ यंत्र तो प्रारब्ध में मिलें, स्मृति को रूह में ही रखने

वह भी कालांतर-विस्मृत, और हम जीवन से परे होते॥

 

देखो, काल बीतता जाता यहाँ, कोई आऐ या फिर जाऐ

यह शाश्वत प्रवाह, लौटकर समय फिर वापस न आऐ।

हाँ माना चक्र-भाँति, पुनः-पुनः नव-रूपों में इंगित होता

क्या विभ्रांति व्यूह की, हम बदलते या यह चला जाता?

 

किसे कहें बदलाव, संसार-अवस्थाऐं या काल का बहना

हम बस खड़े नाटक करते रहते, लगता जग बदल रहा।

यह है स्व-जग रूपांतरण, जिसको काल-परिवर्तन कहें

कुछ नियम प्रकृति-प्रदत्त, उनके अनुसार सब चलन हैं॥

 

जंगम-स्थावर की शैली, एकत्रित निरंतरता काल धकेले

देखें तो कुछ न यूँ ही, सब अवस्थाऐं समय पर आती हैं।

ऋतुऐं समय पर, अन्य प्रकृति-कारक प्रभाव हैं जमाते हाँ

शनै-प्रक्रिया है, कुछ ध्यान से देखें तो अधिक न बदला॥

 

हाँ बदलाव है बाह्य रूपों में, प्राणी व स्थावर स्वरूप में

काल यदि कुछ वर्षों का, वह भी हमारी भाँति चल रहें।

हम हैं करते बीते पल स्मरण, कुछ भिन्न जो वर्तमान से

बड़ा संसार, बहु-प्रक्रियाऐं, चलती रहती चाहे-अचाहे॥

 

किसके रोके रुका जीवन, बहता अनवरत अनंत-रूप

नर हेंकड़ी भरता, संसाधनों पर अधिकार चाहता सर्व।

धनी, शक्ति-बुद्धिमान व अन्य भी, आवरण हैं चढ़ा लेता

जग-प्रक्रिया प्रभावित चाहे, अनाप-शनाप किए बहुदा॥

 

कुछ बदला प्रकृति ने स्वरूप, कुछ प्राणी भी प्रपञ्च किए

उन्हीं से धरा-दशा बदल रही, जिनको परिवर्तन हैं कहे।

कैसा व्यूह समझ नहीं पाते, निरंतर पुनरावृत्ति होती है पर

विशेष-काल में भिन्न रूप, अन्यथा तो एक सार सा सब॥

 

हाँ प्रकृति के काल-गर्भ जाकर, भिन्न अवस्थाऐं ज्ञात होती

इनको परिवर्तन कह सकते, क्योंकि अवस्थाऐं हैं बदलती।

कुछ हुए आमूल-परिवर्तन, उन्होंने आयाम-दशा दी बदल

सब इतना शनै, अपवाद यदि तो गुजर जाना ही है कथन॥

 

नव-वर्ष आया, प्राचीन बीता व कामना-प्रार्थना मंगलमय की

क्या चेष्टा शुभ हेतु, यह एक काल-खंड अनुरूप बनाने की।

पूर्ण भाग्य, जैसे सूर्य तारक का जीवन-चक्र तो प्राणी-वश न

तथापि प्रस्तुत वर्तमान में यदि संभव, तो उसका ही प्रबन्धन॥

 

कहो, मिल बनाऐं वर्तमान बेहतर, तब वर्ष मंगलमय कहेंगे

निज समय-भविष्य के मालिक, क्यों न बुद्धि में चिंतन करें।

समय यूँ आएगा, अपने लिए वर्तमान में कुछ बना लो जगह

सकारात्मक निर्वाह-भागी बनें, तब मंगल-कामनाऐं सार्थक॥



पवन कुमार,
01.01.2015 समय 23:59 
(मेरी डायरी दि० 31.12.2014 समय 9:16 प्रातः से )   


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