भोर की वर्षा, घोर
मेघ-गर्जन, बाहर चहुँ हरीतिमा-प्रसार है
कुछ वसुंधरा-प्यास बुझी है,
इस चिर-प्रतीक्षित रिमझिम से॥
वस्तुतः अत्यल्प वृष्टि है
इस वर्ष, भारत-देश के बढ़ा रही कष्ट
अतः जाते से मानसून में
वर्षा-दर्शन, अहसास है अति सुखद।
सब धन-धान्य है निर्भर,
समस्त कृषक-मज़दूर जोह रहें बाट
जल-अल्पता एक गंभीर विश्व-समस्या, वर्षा है उसका
निदान॥
इस पोषक नीर के धरा-आगमन से,
तरु-पादप सब हैं हर्षित
धुल जाता मैल पल्लवों का,
देखो सब हैं लहलहाते आनंदित।
सर्व-कृषि विशेषकर धान-फसल
हेतु, यह जल तो है वरदान
नलकूपों से भूजल-निकास
महँगा, अतः है बारिश-आव्हान॥
झरने-नदी-नालें सब आह्लादित
होते, जैसे भर गए उनमें प्राण
सिंचित करें धरा- क्षेत्र
को, परिवहन होती जल-राशि विशाल।
तरु-पादप खिल से उठते, उनकी
वृद्धि अमल प्राण-वायु देती
धूल-दूषण वातावरण कम होता,
अनिल स्वच्छ-निर्मल होती॥
वसुधा के शुष्क वक्ष-स्थल
पर, यूँ बाँट जो रही तृण-वनस्पति
हर नीर-बूंद उन हेतु सुधा,
तब सुंदर छटा विस्तृत है करती।
समस्त प्राण वारि ही निर्भर,
न्यूनता है उसकी कितनी विद्रूप
नगरों में मारा-मारी जल की, ग्राम्य-जीवन और
कठिन रूप॥
सिञ्चन इस पावस अम्बु से, सब
कुछ है निःशुल्क प्रोत्साहित
यह प्रकृति का अमूल्य उपहार,
सब इससे ही हैं प्रतिपादित।
पानी का हम आदर करें, उसकी
उपलब्धि से है जीवन-संचार
वर्षा निश्चय ही एक सुमाध्यम, जल-चक्र करे सबका
उपकार॥
पवन कुमार,
23 मार्च, 2014 समय रात्रि 22:31
( मेरी डायरी दि० 30 अगस्त, 2014 समय 8:15 प्रातः से )
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