Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Sunday 12 May 2024

मूल-तत्व

मूल-तत्व 

------------


इस अंतरतम की क्या परिभाषा ही, क्या वह वृहद विश्व-दृष्टिकोण सा है 

क्या यहाँ निज भी मूल-तत्व है, हालाँकि बहु कारक एक समय वार किए।

 

 कितना सोचता हूँ स्वयं के विषय में ही, कैसे भाव मुझमें बहुदा उदित होते

क्या सत्यमेव कोई व्यक्तित्व भी है, या जहाँ कोई राग सुना वहीं के हो लिए।

माना बहु भाँति साहित्य-संवादों से तो संपर्क, पर मन निजानुरूप लेता रस

अन्य भी अपना पक्ष कहीं बघार रहें, कैसी प्रतिक्रिया ही यह तुमपर निर्भर।

 

 जगत अति विशाल, मैं नितांत क्षुद्र-साधारण, विशेष प्रयास तो प्रगति का

माना बहु कर्म अति सीमित ऊर्जा-समय, तो भी पूर्ण तो कभी  झोंका।

मन-कपाट कभी खुले नहीं, कक्ष में ऑक्सीजन-अल्पता है, साँस कैसे मिलें

इच्छा भी तो प्रगाढ़ रही है, सामान्य प्रयासों से तो परिणाम वैसे निकलेंगे।

 

 रिक्त समय में अतिशुभ्र का प्रयास संभव, लेकिन तंद्रा पूर्ण तत्पर देती होने

सुबह 5.30 या 6 बजे आसान जग सकता, क्यों बिताए अधिक घंटे शय्या में।

निज बिंदु भी क्रमवार लिख पा रहा, पुनर्स्मरण करूँ तो कार्यान्वयन भी हो

कई पक्षों से डर सा, अल्प प्रयास से सुफल, अत: अग्र-मनन रुद्ध गया हो। 

 

 फिर जीवन को कैसे प्रखर गति दूँ, आधे से अधिक अंश हाथ से गया निकल

हरपल जब तक नहीं मुखरित, कैसे अनुपम भुवन-ग्रंथ हाथों से होंगे निर्मित। 

बस बुद्धि को बोझिल-अवस्था में ही रखना, और कहना कि नहीं पा रहा कर 

सामर्थ्य अनुरूप तो यत्न करो, चेष्टा-प्राथमिकताओं का स्तर सदैव हो ऊर्ध्व।

 

 सफल बिंदु तक पहुँचे सक्षमों को देखो, वे भी सब भाँति हाड़-माँस के पुत‌ले 

फिर कौन प्रेरणा रजाई से अति-प्रात: जगा देती, बर्फ में दौड़ते, धावक बनते।

हमने एक सुविधाजनक जीवन-शैली बना ली, तरक्की हो रही कहते फिर

फिर यदि अत्यावश्यक काम करते हो भी तो क्या, पेट तो सब जीव लेते भर।

  

पर मात्र उदर-भरण ही उद्देश्य, बुद्ध-महावीर सा निखारने को मिला जीवन 

 निज से कमवय भी विद्वान-निपुण, हाँ शैशव में श्रेष्ठ विद्यालयों में हो शिक्षालब्ध।  

कबतक स्वयं को अनक्षर ही मानोगे, तब शुभ कर सके तो अब रोकता कौन 

सामर्थ्य है तो खड़े होवो, कुछ उपाधि संग जोड़ लो, रुदन से तो नहीं बहु लाभ। 

 

 प्रति पल-मूल्य अनुभूत हो, कोई भी विश्व-शक्ति भूत को  सकती वापस ला 

तथापि पुनर्नवीनीकरण होता रहता, वर्तमान सुधार लो तो वह भी है सुभीता। 

जो बीता है उसका रोना क्या, हाँ हिम्मत तो उन जीवन-पलों का मूल्य दो भर 

जब क्षतिपूरण सीख ही लोगे तो पीछे रहोगे, जीवन बड़ी आशा से रहा देख। 

 

 Yuval Noah Harari की पोथी Homo Deus पढ़ रहा, एक अनुभूति अनुपम 

इससे पूर्व इनकी पुस्तक Sapiens पढ़ी थी, तब भी काफी हुआ था प्रभावित।

वर्तमान History of Tomorrow है, नर-भविष्य विकास किस दिशा में चलित 

अतिद्रुत वैज्ञानिक-तकनीकी-मानसिक भवंडर हैं, उल्लेख रहा समझ। 

 

 एक बात मानव-विकास के विषय में, परस्पर सहयोग-शैली सीख ली उसने 

तभी तो वह महाबली बन गया, सकल शक्तिसंपन्न जीव उसके हाथ नीचे हैं।  

जो नर विश्व में प्रगति चाहते, कुछ न्यूनतम पाठ तो स्मरण करने होंगे निश्चित  

सोते रहो बहुलाभ-इच्छा भी रखो, बड़ा विरोधाभास है, होवोगे ही सिद्ध। 

 

 देखो सोच प्रथम-स्तर की हो, फिर लक्ष्य क्या बनाते हो और किया ही प्रयोग

इनकी दूरी से मनुजत्व भी कुप्रभावित, किंतु प्रगति के तो अनेक हैं अवसर।

कई पथ-बाधा मिल सकती पर रो-पीटकर शांत होंगी, यदि अंतः से हो भद्र  

द्रुत विकासार्थ आदान-प्रदान, सहयोग करो, अन्य-वृद्धि में निज भी निहित। 

 

 मुझे यह निज अंत:-सुदृढ़ पर निर्मल बनाना , सबकी बात कर उच्च उठाना 

अनेक प्रजाजन मुझ से अति-साधारण, उन्हें आवाज देने का लक्ष्य है बनाना। 

जब यह सामान्य महानर में रूपांतरित, समझूँगा जीवन-अवतरण हुआ धन्य  

वरन जीना-मरना तो नितांत प्राकृतिक चलन, जाने से कोई रिक्तता होगी न। 

 

 चलो यह लेख बंद करना ही होगा, तथापि आज के फलसफे को लूँ निचौड़

जब कुछ निश्चित शुभ परिभाषा बनेगी, तो अग्रिम रूप में होगा प्रस्फुरण। 

जीवन तो अग्रगमन पर गतिवर्धन उद्देश्य, पर विद्वदजनों से मित्रता करनी 

सद्चरित्र-सुसाहित्य के संग-समन्वय से ही, प्राण-बगिया मधुतर महकेगी।

 

 [मेरी माँ की पुण्यतिथि (१२ मई, २०११) पर समर्पित ]

 

 पवन कुमार,

१२ मई, २०२४, रविवार, समय १२:११ बजे मध्याह्न 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी 27 दिसंबर, २०१७ बुधवार, समय :२३ बजे प्रातः से )

 


No comments:

Post a Comment