शुक्रिया
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उनकी आँखें जो उठी तो मैं शुक्रगुजार हुआ
जैसे सुबह हो जाने से, जग खूब रोशन हुआ।
मैं ना जानूँ कुछ, उनसे मोहब्बत की ही बातें
वो ही हमदर्दी से मुझपर, यूँ मेहरबान हुआ।
मेरी हैसियत क्या थी, जो होऊँ उनके काबिल
उनकी नजरें-इनायत से, कुछ काबिल हुआ।
मेरे ज़ेहन में तो, फालतू के बहुत से ही मलाल
फिर भी मन में उन्हीं की ओर रुख़सत हुआ।
पवन कुमार,
२ मई, २०२४, वीरवार, समय १६:४१ बजे अपराह्न
( मेरी नई दिल्ली डायरी मार्च, २००७ से )
वाह❤️💙
ReplyDeleteRaj Kumar Patni : अति उत्तम
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