Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Friday, 2 May 2014

आत्म-बोध

आत्म-बोध


जब निज मन-विचार तो, मनन करन का ध्यान हुआ

बेढ़ंगी जीवन-गति से निकल, एक सार्थक बोध हुआ॥

 

कैसा जीना, कैसा मरना, यह जीना भी कोई है जीना

जब दुनिया इतना बढ़ जाती है, ताने क्यों व्यर्थ सीना?

क्या कुछ सबक याद उन्नति का, या यूँ ही गर्व में जीते

दुनिया के फंदें तो न समझे, बस यूँ ही हो व्यर्थ गँवाते॥

 

कभी न मन को मीत बनाया, और न आत्म-बोध हुआ

सोचा था कट जाएगी, अब निकट पड़ी तो भय हुआ।

मीरा के कृष्ण तो आकर, सुरीली बंशी-तान सुनाते हैं

अपनी मनोरम लीलाओं से, उनका हृदय बहलाते हैं॥

 

लेकिन मैं तो निपट-विमूढ़, प्रेम-शब्द को क्या जानूँ

जैसे समक्ष आया वैसे जी लिया, क्या समझूँ या जानूँ?

तेरी मोहिनी लीला का तो, कदापि नहीं अहसास हुआ

इस सवेंदनहीन जीवन का, कभी न कोई कष्ट हुआ॥

 

जब वे बेहतर जीते, क्या अपना भी कुछ ध्यान किया

दुर्बलताऐं क्या अपनी देखी, या तजने का मनन हुआ?

तुम अति पिछड़ गए बंधु, दया या गुस्सा क्यों न आता

फिर तंद्रा छोड़ अग्र -वृद्धि, कदम क्यों न बढ़ जाता?

 

मुझपर एक अहसान करो तो, तेरी दया का पात्र हुआ

चलूँ नेक रास्ते पर तेरे, जहाँ कदम-२ पर ध्यान हुआ।

हे प्रभु ! आत्म-प्रगति पर ध्यान लगवाओ, रहमत रखो

मुझे आगे बढ़ने के लिये, सदा निडर-प्रोत्साहित करो॥

 

कर्मठता हेतु एक अच्छा सोचूँ-करूँ, व बुराइयाँ त्यागूँ

सदा तुझे ध्यान में रखूँ, और कभी ज्ञान-मार्ग न छोड़ूँ।


पवन कुमार ,
2 मई, 2014 समय 23:11 रात्रि 
(मेरी डायरी दि० 14.12.2001 समय 11:35 म ० रा ० )

   

1 comment: