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Monday, 16 June 2014

कुहुँ -कुहुँ

कुहुँ -कुहुँ 


कुछ नींद का नशा, मन में हैं हिल्लोरें कुछ

कुछ जाम पीने की इच्छा, व मस्ती-सरूर॥

 

मैं तो बहना चाहूँ, मस्ती के आलम में इस

अपना नहीं, तेरे लिए ही कुछ कर जाऊँगा।

मैं तो एक झौंका हूँ, आकर चला जाऊँगा

पर तेरे लिए तो फिर मरकर जीना पड़ेगा॥

 

मुझे तू मुहब्बत करना सिखा दे, ऐ साखी !

नहीं तो जिंदगी में, पछतावा रह ही जाएगा।

मैं तो यूँ बस जीता हूँ, दिन-रैन के कटन में

तू साथ रहे मेरे, सब कुछ एक हो सकेगा॥

 

कुछ शब्द-अर्थ तो समझा दे, मेरे ऐ दोस्त

न तो यूँ ही विमुक्त हुए मर कर जी उठूँगा।

मेरे जीवन में एक मस्ती का खेल हो बेहतर

फिर याद उसकी में रह-रह खिल उठूँगा॥

 

मैं तो हूँ बस, एक बोझिल दिमाग़ का मारा

पर याद तेरी में आके बारंबार तब मिलूँगा।

सुखद क्षण साथ तेरा, मेरे मन निकट कूँके

ऐसी ही कदां (मेहरबानी) से जीवन कटेगा॥

 

मैं रहूँ पास तेरे, और तुझमें ही समा जाऊँ

फिर भेद तेरा-मेरा किञ्चित भी नहीं रहेगा।

अहसास भी तो तेरा, मुझे सदा ही है साथी

हमारी मुहब्बत का गुलिस्ताँ फिर खिलेगा॥


पवन कुमार, 
15 जून, 2014 समय 15:55 अपराह्न 
(मेरी शिल्लोंग डायरी दि० 3 जुलाई, 2001 समय 12:40 म० रा० से )

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