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Thursday, 19 June 2014

एक प्रार्थना

एक प्रार्थना 


नज़दीकियाँ खुद से हों, बड़े सुकून की बात

बढ़ें और करीबियाँ, यही असली है सौगात॥

 

विषय के परिवर्तन का कुछ हुनर तो सीखो

मधुर सोचने-कहने-सुनने का विवेक रखो।

न चलो यूँ विभ्रमित सम, जीवन बिताते हुए

ठीक से ज़रा क्या करना है, समझ तो लो॥

 

मुस्कुराने की आदत बने, सबको सुकून हो

कुछ उपकार करने की, चेष्टा तो फिर करो।

माना निठल्लों को, मुफ्त खिलाना न हो मंशा

सुबुद्धि से सबको श्रेष्ठता की, हो जाए प्रेरणा॥

 

भले ही हम असक्षम, दूसरों को समझाने में

पर कुछ मूढ़ों को तो, चेतन में बदल सकते।

चाहे बहुतों का न होता हो, बड़ा काया-कल्प

लेकिन कुछ को तो, कर ही सकते हैं बेहतर॥

 

यह कैसा निर्मल रूपांतरण होना है, प्रभु मेरे

वह मृदुल-चरित्र मुझे, समझाओ प्रवीणता से।

कुछ आध्यात्मिकता, बौद्धिक-स्पंदन हो जाए

मन-बुद्धि की स्वच्छता-सम्पन्नता, बढ़ा दो रे॥

 

ओ मौला, मेरी प्रवृत्तियों को उचित दिशा दे

और कुछ योग्य से योग्यतर स्तर बढ़ा दो रे।

मैं भी वैतरणी तर जाऊँ, उँगली पकड़ते ये

व नर का एक सच्चा मीत-गीत, बना दो रे॥

 

मेरी काष्टाओं को बढ़ा दे, ऐ जगत-मालिक

तन-लदा बोझ हटा ही दीजिए अनावश्यक।

कीमत इस मन की तू ही, बढ़ा सकता बस

अतः प्रार्थना है, जो भी उचित दीजिए कर॥

धन्यवाद, शुभ रात्रि। 


पवन कुमार, 
19 जून, 2014 समय 23:31 रात्रि 
( मेरी डायरी दि० 17 फरवरी, 2011 समय 12:20 म० रा० )



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