१२ मई, २०११ वीरवार, समय
करीब १२ :३० बजे दोपहर
माँ चल बसी, आया संदेश भाई
का कि माँ नहीं रही अब।
क्या गुजरी तब मेरे मन-तन
पर, बिलकुल टूट सा गया था
माँ गँवाकर शायद, जीवन की
सबसे बड़ी लड़ाई हारा था॥
हालाँकि मौत तो घटती सबके
संग, जग हेतु कुछ न नूतन
किंतु मेरी तो एक ही प्यारी
माँ थी, वह भी शीघ्र चली गत।
यह अभाव गहरा घाव कर, हृदय
पूर्णतया खाली कर गया
चाहकर भी कुछ न कर पा रहा,
खुद को अनाथ ही पाता॥
माँ क्या करूँ तेरे बिन मैं,
अब तो तुझसे लड़ भी न सकता
जब उत्तुंग था तुझसे भिड़ सा
जाता, गुस्सा व बहस करता।
फिर तू कुछ बूढ़ी हो चली थी,
बात में मेरा समर्थन करती
बहुत गूढ़ विषयों पर हम चर्चा
करते थे, तू विश्वास करती॥
माँ मुझे गर्व है कि तेरी ही
कोख में पला-बड़ा, लिया जन्म
तेरे स्तनों से दूध पीया है,
गोदी में खेला, गीले किए वस्त्र।
रोकर तंग किया, कभी
बाल-अदाओं से खुश किया होगा
तेरे हाथों से खाना, ऊँगली
पकड़ चलना व बोलना सीखा॥
बुखार में तू छाती पर लिटा
लेती, बीमारी में परेशान होती
शहर में वैद्य ढूँढ़ती, निज
से अधिक हमारी जान प्यारी थी।
भोजन खिलाती, लस्सी -दूध
देती, रोटी में मक्खन -घी देती
नहलाती, कपड़े पहनाती, दिनभर
गृह-कार्य में लगी रहती॥
तुम बहुत कम ही नाराज होती, गलतियाँ
सहन कर लेती थी
याद है कि गाँव के स्कूल
में, पहली बार तू ही लेकर गई थी।
पिता बीमार होते तो सेवा
करती, अतीव प्रेम था दोनों में तुम
कभी लड़ते भी, सब हालात देखे
संग, नैया निकाल ली पर॥
स्वार्थ में कभी अन्यों को
नकारती भी, संतानों पर बहु-प्यार
बेटी-दामाद से खास लगाव था,
स्मरण से ही खिलती बाँछ।
हम जब भी घर जाते, माँ-पिता
का प्रथम संदर्भ बहन होती
प्रश्न कि दीदी के घर हो आए,
या जाओगे यहाँ के बाद ही॥
कोशिश थी हम भाई-बहन प्यार
से रहें, अच्छाई ही बताती
विवाद-संदर्भ दूर ही रखती,
पता था क्या-कब चर्चा करनी।
अपनी तकलीफ़ अधिक न बताती,
कहती मैं तो ठीक हूँ ही
अन्य-विरोध मामले से दूरी,
कहती बहुत काम हैं अपने ही॥
तू चौहानों के गाँव की थी,
जहाँ अपेक्षाकृत मीठी है आवाज़
हमारे जाट-गाँव की खड़ी बोली
है, माँ की आवाज थी मधुर।
बड़ी सुबह राम- लक्ष्मण के
भजन गाती, बड़े ही सुरीले होते
सबसे प्रेम-पूर्वक
व्यवहार-शैली थी, कोई तुझे बुरा न कहते॥
मेरे अनुजों से खास स्नेह
था, उनकी खुलकर बड़ाई करती
पोते-पोतियों, नातियों की
चर्चा करती, कि कैसे सेवा होती।
और कहाँ वे बढ़िया कर रहे, व
उनकी अच्छी आदत विषय
सच भी वह उनके साथ रही,
जुड़ाव होना है स्वाभाविक॥
मुझसे तेरा स्नेह था, व दूर
जाने से परेशान ही हो जाती थी
एक बार नौकरी हेतु कश्मीर
गया था, इच्छा विपरीत तेरी।
माँ का डर स्वाभाविक, कई दिन
पहले बोलना छोड़ दिया
बाद में भी जब कई दिन बात न
होती, देती उलाहना सा॥
पर बाद में आयु बढ़ने के संग,
सबने देखा बड़ा प्यारा रूप
पड़ौस की चाची के पास जाने व
नमस्ते हेतु बोलती जरूर।
तू बड़ी रहम-दिल थी, अन्य-मदद
हेतु खुद से ही बोल देती
जहाँ भी किसी के यहाँ जरूरत,
स्वयं से संभव आगे बढ़ती॥
हमने तुझे हर रूप में जवानी,
मध्यमा व वृद्धावस्था में देखा
तू चाहे पूरे सौ वर्ष न सही,
जीवन का बड़ा अंश तूने जिया।
शायद तुझे अब ज्यादा शिकायत
भी नहीं थी इस जिंदगी से
और इसलिए जग से, इतनी शांति
से चली गई मुस्काते हुए॥
हम बहु-आभारी हैं तेरे, इस
जीवन में लाने व लक्ष्य देने हेतु
हमारे लिए तूने अनेक कष्ट
झेलें, और बनाया इस योग्य है।
तूने अपने खून के कतरों से
हमें पाला-पोसा, किया सिंचित
और विकसित वृक्ष में परिवर्तित करके, स्वयं हो
गई विलीन॥
माँ तेरी सुकीर्ति चहुँ ओर
है, और तू सदैव विजयी रहेगी
तू स्वयं जीत गई है, व सफल
बनाकर हमें भी जिता गई।
माँ तेरी महिमा-स्मरण जितना
भी करूँ, उतनी ही है कम
तू एक बहुत अच्छी माँ थी, पर हम बने रहें
नाशुक्रिए पूत॥
माँ तेरी बड़ी ज्यादा
सुश्रुषा तो, हम सब कर पाऐ हैं नहीं
बाहर की परिस्थितियाँ ऐसी
थी, तू ज्यादा संग ही न रही।
फिर भी जितना हमसे बन पाया,
तेरी सेवा -हाज़िर ही थे
और हम सदा तेरी लंबी उम्र
-स्वास्थ्य की दुआ करते थे॥
माँ तू चली गई दूर कहीं,
हमें व पिता जी को गई छोड़कर
पिता जी को तुझ पर नाज़ है,
कि तूने साथ निभाया बहुत।
सुभग हो कि अंतिम समय में,
साँस उनकी बाँहों में छोड़ी
पर अफ़सोस !, तेरी एक भी
संतान उस समय संग न थी॥
पर अंतिम विदाई में समस्त
संतान, बंधु-बांधव साथ थे तेरे
एक-२ करके, सब
रिश्तेदार-पड़ौसी-ग्राम जन जुड़ते गए।
और एक बड़ा काफ़िला सा बना था,
उस अंतिम डोली पर
नहा-सिंगर कर तो, तू बहुत ही
सुंदर दुल्हन रही थी लग॥
किंतु श्मशान जाते ही अचानक,
जैसे मोड़ लिया मुँह ही
सारा मोह त्याग दिया और बड़े
बाबुल की प्यारी हो गई।
किंतु तूने ही यह नया न
किया, पुरानी रीत है दुनिया की
हमें कोई शिकायत न तुमसे, पर
भुला न पाऐंगे ही कभी॥
माँ अब जहाँ भी जिस दशा में
है, पूर्णतया प्रसन्न रहना
हमें न पता है, कि तू हमें
कहीं से देख पा रही या नहीं।
पर हम तो तुझे हमेशा, अपने
पास हैं पाते ही अत्यधिक
वैसे ही जैसे सारी जिंदगी
पास थी, न ज्यादा ही न कम॥
बहुत करीब- बहुत करीब। मेरी
माँ॥
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