इस अजाने सफर में, कोई साथी
तो मिला
दूल्हा बेशक न बन पाया,
बाराती तो बना॥
कसक उठी थी मन में, कुछ कर
जाने की
मुश्किल हुई ज़रा सी, फिर
बैठा ही मिला।
यह तो कोई बात न हुई मज़बूत
मंसूबों की
दुनिया में इस तरह तो कोई
चोखा न बना॥
भारतेंदु-कहावत 'अंधेर
नगरी चौपट राजा,
टके सेर काजू व टके सेर
खाजा' है
प्रसिद्ध
क्यों मायूस हो, मौका है कुछ
करके दिखा।
इस मन-साम्राज्य के बन जाओ
तो बादशाह
चरम सफलता-सीमा तक ही, बढ़के
दिखा॥
बन अंतः- पावन और कर दे, दूर
वहम सारे
बस अंतरात्मा-दामन में ही
छुपता चला जा।
वह तो कर देगा दूर, तेरे भी
समस्त अंधियारे
फिर तू भी पूरी रोशनी से
चमकता चला जा॥
तेरी पुरज़ोर कोशिश नाम ही तो
सफलता है
फिर अगर कोई और, तो परिभाषा
बता जा।
छोड़ जा, अपने कदमे- निशाँ
यहाँ जमीं पर
सब न तो कुछ ही को, अपना प्रिय
बना जा॥
दैव से उन धुरंधरों की नगरी,
तू आ पहुँचा है
क्या कुछ वज़ूद तेरा भी है,
ज़रा दिखा तो जा।
जीना-मरना है तो जीवन की
स्वाभाविक क्रिया
अगर मर्द है तो मरकर भी, जी
कर दिखा जा॥
सुना था कोशिश का सबब ही तो
चारों तरफ़
उन्हीं से कुछ बड़ा सा तू
बनाता ही चला जा।
पर्वत से टकराने की भी तू
हिम्मत रखने वाले
हर बला को तो फिर तू झुकाता
ही चला जा॥
मेरी जान की बड़ी बाज़ी लगी है
इसी जन्म में
साहस से इसे और सफल बना के
दिखा जा।
परम-तत्व तक पहुँचने की
हिम्मत तू दे, मौला
सदा ही शुभ राह तू मुझको
दिखाता चला जा॥
योनियों के इस देश में क्या
कोई है वज़ूद तेरा
हिम्मत है तो इसे प्रसिद्ध
करके ही दिखा जा।
सीख जीवन सफल बनाने का होता
ही तरीका
फिर आँधी में भी नित्य तू
कदम चल बढ़ाता॥
चिर बीते पूर्वाग्रहों का,
नहीं मेरा कोई आलम
हर राहगीर को तू गले से
लगाता ही चला जा।
मैं तो हूँ सबका ही अपना, और
सब ही हैं मेरे
सद्भावना का यह पाठ दिल से
ही, पढ़ाता जा॥
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