तुझे शायद रुलाने में मज़ा
आए, बहुत सताए-घुमाए
बड़ा मज़बूत, जो कमजोरों पर ही
घना बल आजमाए
किंतु कैसा निर्दयी, पहले से
ही गिरों को और गिराए॥
हम तेरी सत्ता-वासी हैं, तू
जैसे चाहे वैसे नाच नचाए
हम तो दुःख-भागी, तू अपना
लीला-चरित्र है दर्शाए।
तेरी कृपा सुनी होती सब पर,
पर कैसे यकीं ही आए
मुझ पर बीती मैं ही जानूँ,
पर तूने कैसे बाण चलाए॥
मन तड़पन का है समय, तू फिर
आग दूनी भड़काए
तेरी कोशिशों का आशी था, पर
तू निज रोष दिखाए।
मेरी खताऐं अनेकों होंगी, पर
तू तीर कहीं ओर चलाए
मेरी जान तो अति-पवित्र, उस
पर क्यूँ तू दाँव चलाए॥
उसका रुदन न सह शक्य, बतला
दे क्या जतन लगाए
तुझसे लड़ाई है तुझसे शिकवा,
कैसे-कैसे वार चलाए?
बहुत कठोर है तू ओ बेदर्दी, कुछ भी तो दया नहीं
आए
क्यूँ बन गया है ऐसा तू, जब दुनिया तुझसे आस
लगाए॥
सुना बहुत कृपा का भरोसा, पर
कहीं तो नज़र न आए
मैं तो हूँ पागल सा झोंका,
जहाँ तेरी मर्ज़ी वहीं भगाए।
किन दिनों का बदला यह, मुझ
पर कैसे ज़ुल्म हैं ढ़ाए
भाई बन जा मित्र तू, निकट
आकर नैया पार लगाए॥
किस पर करूँ विश्वास, जब बाड़
ही तो खेत को खाए
जहाँ देखूँ वहीं निराशा,
प्रकाश-किरण नज़र न आए।
मेरी दुनिया समझने वाले,
तेरी दया-असर जो है पाए
उसकी किस्मत अच्छी, जिसपर नज़रे-इनायत घुमाए॥
कहना क्या व रोना क्या, जब
दुनिया में रोते हुए आए
बहुत दुखी रे मन मोरा, आकर इसको कुछ समझाए।
कैसे करूँ यकीं रहमत का, कोई
सबूत नज़र न आए
दुनिया बोले तू दयालु, पर मुझे तो कोई यकीं न
आए॥
बन्दापरवर तू बहुत सच्चा,
छोटो-बड़ों में अंतर न पाए
क्यूँ जुर्म ही व अन्याय,
जिसका समय वो क्यों न आए?
मेरा कौन सा अपराध, क्या काम
मैंने करके न दिखाए
मेरी नौकरी जरूरी रोजी-रोटी,
क्या कोई कसर ठाए॥
क्या हूँ फिर बहुत निकम्मा,
मुझ पर फिर डाँट लगाए
बहुत तो न तगड़ा हूँ, तू
क्यूँ मुझको बार-बार पटकाए?
इस धरती से उस अंबर तक,
मुझको तेरा छोर ना पाए
छुपकर तेरा वार देखा, बहुत महीन तक वह घुस जाए॥
बड़ी विकट घड़ी मेरी, इसपर फिर
नमक-मिर्च लगाए
कर सहायता बन मीत, हर
विपदा-हल तू ही सुलझाए।
रोऊँ, हँसू व शिकायत करूँ,
किसको तेरे बिन बतलाए
भावुक न तो होना चाहता, फिर क्यूँ न ढ़ाढ़स ही
बँधाए॥
दुनिया का शायद दस्तूर यही,
रोते हुए को और रुलाए
पर शक्ति न पाता, फिर बता हम
कैसे ये गम तो खाए?
उसको कर दे जल्द अच्छा, मेरी
तो फिर भी देखी जाए
कर दे माफ़ खता भई, यदि कुछ
फिर ऐसा कर पाए॥
दे सुधरने का ही मौका, हम
इसको शायद व्यर्थ गँवाए
भूलों से सुना मिले सबक,
कैसे बता फिर मन समझाए?
तू तो दिखा दे शीशा मेरा,
ताकि समझ खुद को भी पाए
सम्मान दें व बदले में पाए,
ऐसे ही न व्यर्थ जन्म गँवाए॥
क्या अपेक्षित है मुझसे ओ
मौला, तू मेरे कर्त्तव्य समझाए
मैं तो एक भूला-भटका राही,
ठोकर खाता गिरता जाए।
बहुत घायल हैं घुटनें मेरे,
चलने की बड़ी ताकत न पाए
फिर क्यूँ न एक संबल मिलता,
आकर मुझे गले लगाए॥
दुनिया की सुनी कथा, जैसी
कूकें गूँज वैसी वापस आए
तो मैं शायद बहुत बुरा, वरना
ज़ुल्म क्यों फिर ऐसे ढ़ाए?
किसका रुदन यह इतना दारुण,
दिल में ये घाव लगाए
रोता व यह कहता, आकर कोई
मुझको मरहम लगाए॥
तेरी मंशा मैं नहीं समझ
पाता, क्या-२ तू ये सितम हैं ढ़ाए
पर इतना तो तय हूँ पाता,
नीयत तेरी साफ़ नज़र न आए।
क्यूँ न करूँ शिकायत ही,
क्या तुझ पर कुछ हक़ न पाए
मेरा अपना ही साथी है रे तू,
फिर कैसा यह बदला लाए॥
सोचा था मैंने तुझे बहुत
ढूँढ़ा, जीवन में यूँ चिन्तन कराए
मैं तो करता तेरी इबादत,
तुझमें ही फिर समय बिताए।
रात के बारह बजते जाते, फिर
भी न कोई ढ़ाढ़स बँधाए
क्यूँ शिकायत ओ मौला, मुझको
तो कुछ समझ न आए॥
कैसे करूँ मैं समाप्त गाथा, सिर-पैर
तो नज़र नहीं आए
क्या यूँ ही बड़बड़ाऊँ, वहाँ
उषा को बुखार है तड़पाए।
मेरी छोटी बिटिया रानी, उससे
भी कोई बात न हो पाए
उसकी ही मैं चिंता करता,
वरना बचा क्या जो तड़पाए॥
ओ मेरे मौला बन जा साथी, तू
सहारा देकर मुझे उठाए
खुद को पाता विवश सा, अपना
सहारा नज़र ना आए।
घोर निराशा में तू एक साथी,
बोल आस-वचन जो चाहे
उनसे शायद कुछ भला, क्यूँ कि
मरहम उनमें ही पाए॥
हाथ पकड़ के उठा मुझे, कह दे
खुश फिर दिन हैं आए
उषा वहाँ होगी खुश फिर, वह
तो बहुत आस ही लगाए।
छोड़ निराशा तू मेरी जानूँ,
अपना ध्यान कर मेरे ही लाए
इतनी दूर हम हैं रे बैठे,
कैसे मन को फिर लाड़ लड़ाए॥
जगा-जगा कर मन मेरा ही,
विव्हळता मुझको है तड़पाए
तब दुनियादारी ऐसी, किसी को
खुश देख कभी न हर्षाए।
कैसे करूँ गुज़र अपना, ठीक
राह तो कोई नज़र न आए
पर विपद पड़ी तो पथ भी होगा, हर मर्ज़ की दवा है
पाए॥
फिर तू तो वैद्यों का वैद्यक
भी, तुझसे कोई क्या छुप पाए
यह दर्द भी तेरा दवा भी
तेरी, मैं तो हूँ तेरा भक्त लुभाय।
फिर चाहे दे जो मर्ज़ी, दवा
के नाम से चाहे ज़हर पिलाए
जीवन तो तेरा ही तोहफ़ा मौला,
जैसा चाहे वैसा नचाए॥
तुझमें फिर ध्यान हूँ लगाता,
अपना करम तू करता जाए
जो तुम्हें लगे पात्र हूँ
उपयुक्त, तो थोड़ी और कृपा दौड़ाए
धन्यवाद प्रभु, जिसमें रोते
हुए भी सब जन आस लगाए॥
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