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Tuesday, 11 March 2014

गुण के ग्राहक


गुण के ग्राहक


कुछ झूमूँ, नाचूँ- गाऊँ, मन अपना मैं बहलाऊँ

प्रभु को पास समझकर, दिल अपना हल्काऊँ॥

 

मन में हो सब हेतु आदर, न कोई ऊँचा-नीचा

काम करे जो भी अच्छा, वही हो सबसे सच्चा।

जिसके मन में हो सच्चाई, वही हो सबका मीत

ऐसे मनुज से सब करते हैं, मन में सच्ची प्रीत॥

 

गुण-ग्राहक बन जाओ, वृक्षों सम झुक जाओगे

संगति जैसी तुम पालोगे, वैसे ही बन जाओगे।

आँखें बहुत उठी लिए तुम्हारे, उनके बन जाओ

ले लो उनको बाहों में, मृदुल मन महकाओ॥

 

दो आशा सबको, और स्वयं भी आशावान बनो

समाधिपद में रहो सदैव, और चरित्रवान बनो।

बुद्ध-नानक- महावीर बनो, व बनो बापू गांधी

बनो भीम -युधिष्ठिर, और बनो शिव के नांदी॥

 

दुनिया तो सदैव वैसी ही है, जैसी तुम चाहते हो

होगा विशाल कोष, यदि उत्तम कर सकते हो।

सोचना अच्छा-बुरा तुम, धार अपनी पहचानना

आत्म-विश्वास करके तुम, राह अपनी सँवारना॥



पवन कुमार, 
11 मार्च, 2014  
(साभार डायरी से - दि० 23.03.1998 समय 1.10 बजे म० रा० )  

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