कल पढ़ी थी एक अच्छी कविता,
नाम है उसका 'निवाला'
कवि हैं श्री सरदार अली
जाफरी, उन्होनें बहु-सार डाला॥
एक नन्हीं बच्ची की पीड़ा ही
समझी, सहृदय कवि ने उस
भावुक होकर उसके भविष्य पर
दृष्टिपात की है कोशिश।
माँ एक रेशम कारखाने में है,
पिता सूती मिल में मुशर्रफ़ है
नयी जन्मी बच्ची, रहने हेतु
काली खोली में अकेली पड़ी है॥
कवि पूछता है कि क्या होगा
बच्ची का, जब वह बड़ी होगी
फैक्ट्री- वर्कर बनेगी, भूख
सरमायेदारों की भूख बढ़ाएगी।
पाँव दौड़ेंगे, हाथ-दिमाग काम
करेंगे और सोना पैदा करेंगे
मालिक की बैंक- तिजौरी भारी,
घर में और रोशनी होगी॥
पूछता कि कोई है, जो बच्ची
को निवाला बनने से हटा देगा
कवि के माध्यम से बच्ची
पूछती, क्या कोई सहानुभूति वाला?
उसके पूर्ण मानव बनने हेतु,
हक़ दिलवाने में करेगा मदद?
पर कितने हैं जो मदद हेतु
आगे आऐंगे -क्या तुम हो स्वयं?
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