मध्य-रात्रि का समय है, निस्तब्धता
का आलम है, व आँखें उनींदी हैं। कमरा ऊष्म रखने हेतु चल रहे ब्लोअर का शोर है।
शायद अन्य दिन होता तो सो जाता लेकिन मन ने कहा कि डायरी उठाओ और कुछ लिखो। लिखूँ
क्या, यह तो नहीं जानता लेकिन शायद जो लिखता हूँ क्या वह पूर्व-लिखित दुहराने जैसा
ही तो नहीं होता? अगर होता भी तो क्या, दुहराने से स्मृति और परिपक्व हो जाती है।
अतः बुद्धि लगाओ कुछ अच्छी बातें करने में। अगर नया हो तो सर्वोत्तम, अन्यथा कुछ
पुराना-स्मरण ही करो क्योंकि यह लेखन ही तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने का साधन
बनेगा।
मैं स्व-लुप्त हूँ नर, निज
राह ढूँढ़ता थोड़ा सा विचलित॥
भ्रमित क्योंकि राह न जानता,
दुःखित क्योंकि हूँ भ्रमित
फिर क्या विश्रांति-उपाय,
मनन तो राहत मिले किंचित॥
नववर्ष है आया पर न वार्ता,
या अनेकों को ही शुभाकांक्षा
अन्य-संग हर्षित, सत्यानंद,
पर सर्वार्थ व महत्तर कामना॥
पर क्या कामना से ही
सर्वोत्तम, निश्चय से तो पूर्ण तरह न
मंशा निश्चित भली, बस जरुरी
है जग-सुंदर निर्माण-यत्न॥
वर्तमान में क्या कर रहा, या
बस सरकार से वेतन पा रहा
या परिवेश-भोजन बन गया, या
और भी दूषित कर रहा॥
आत्म-मुग्ध उत्तम दशा न,
यत्न अन्यों को भी प्रसन्न बनाना
यदि बस यूँ खुद में डूबा, तो
ज़माने में मेरी क्या सार्थकता?
प्रश्न महद, उत्तर चाहिए।
करो विचार, पर अब सोना चाहिए॥
पुराना लिखा हुआ लेखन में, दुहराया गया हो सकता है मगर शब्द भिन्न होंगे और असर भी भिन्न ही होगा !
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !