आज फिर था देखा ध्यान से, उस
शख़्स को
हमेशा सी वही बोझिल आँखें व
थकी बाहें॥
सदा कुछ सोच रहा, वह फालतू
दुनिया हेतु
पर यदि पहचाने मैं वह न, जो
जमाना सोचता
बन जाए एक बल, जिससे जग झुक
जाएगा॥
फिर हम हैं ही क्या, सिवाय
अपनी सोच के
या फिर वे हैं, जो दूसरे
हमें निर्धारित करते।
परिस्थितियाँ भी
महत्त्वपूर्ण, निश्चित करने में
लेकिन प्रभाव निश्चित ही
बहुत महत्त्वपूर्ण है॥
फिर परिस्थितियाँ भी तो इतनी
कमजोर नहीं
मुझे तो हर शख़्श, संपूर्ण
नजर आता है ही।
दुविधा वह दूसरे पूर्ण से
मिलकर नहीं जुड़ना
अपितु स्वयं जीतने हेतु ही
लड़ जाना चाहता॥
पर जीतना तो वही, खुद पर हो
भरोसा जिसमें
रुकना न जिंदगी में, चाहे
कितनी बाधा आऐं।
जिंदगी यूँ ही न रुक जाती,
किसी भी मोड़ पर
बशर्ते कि बगैर थके बढ़ता ही
चला जाए बस॥
यदि चलते रहोगे तो, जरुर कुछ
दिखेगा नव
पर नहीं चलना, कोल्हू के एक
बैल की तरह।
तुम विवेक, श्रम, सच्चाई का
छोड़ना न दामन
फिर देखना कि सारी विजय ही
तो हैं निकट॥
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