सुहृद राजीव ने कहा, शब्दों
में है बड़ी जान
कहो कि चंगे हैं, न कि बस
समय रहें काट॥
शब्द शायद हमारी मनोदशा का
प्रतीक होते
जब ये कमजोर तो, हम भी
निर्बल पड़ जाते।
अतः वचन सदा,
शक्त-प्रेरक-आशावान बोलो
ताकि जीवन के प्रति भाव
सकारात्मक ही हो॥
जब निज मान होगा, तब निकले
उत्तम ध्वनि
फिर सदा अहसास रहेगा, इंसान
हैं हम भी।
तुम क्यों अकारण दिल निज,
लघु ही करते हो
एक सफल नर सम, सीधा खड़ा होना
सीखो॥
जीवन में न कोई बड़ा होता, और
न छोटा ही
स्वयं की सोच-गणना ही, उस
श्रेणी में रखती।
अतः सु-उपायों से
शक्य-तेजस्वी बना निज को
सदा उचित-सार्थक शब्द ही,
इस्तेमाल करो॥
झुक कर चलने से तो, कमर पूरी
ही झुक जाती
अतः नित सीधा खड़ा होने की,
आवश्यकता ही।
दुनिया तो साथ देती है, सदा
आशावानों का ही
निराशावादियों को तो मिलती,
बस हमदर्दी ही॥
अतः क्यूँ न खड़ा हो,
अचूक-साफल्य इच्छा रखें॥
बहुत प्यारी अभिव्यक्ति है ….
ReplyDeleteकुछ ऐसा राग रचें मिलकर
सुनकर उल्लास उठे मन से
कुछ ऐसी लय संगीत बजे
सब बाहर आयें,घरोंदों से !
गीतों में यदि झंकार न हो, तो व्यर्थ रहे महफ़िल सारी !
रचना के मूल्यांकन में है , इन शब्दों की जिम्मेदारी !
अंतिम पंक्ति में टाइप करने में भूल हुई है शायद , अटूक को अटूट करियेगा !
बधाई बढ़िया रचना के लिए !
झुक कर चलने से कमर झुक जाती है
ReplyDeleteअतः सीधा खड़ा होने की आवश्यकता है।
दुनिया साथ देती है आशावानों का
निराशावादियों को केवल हमदर्दी ही मिलती है।
..बहुत सुन्दर सार्थक रचना
सच कहा आपने आशवादी का सभी साथ देते हैं ...
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