ऐ मेरे मन, तू कुछ सुरीला-
मधुर गा तो ले जरा
कभी ना हो कोई, रुक-बैठने का
तेरा माजरा॥
चलने में रहे इच्छा, न थमकर
कभी बैठ जाने में
हरेक से प्रेम-रिश्ता, सदा
मिल हँसकर सभी से॥
लगन-श्रम दामन न छूटे, कोई
स्वप्न न रहे अधूरा
रात में बहु-ख्वाब जगें,
पूर्णता हो भरपूर तमन्ना॥
आगे बढ़ना ले लो संग, विवेक
आए मन में बहुत
कभी न भूलूँ कर्त्तव्य, सदा बढ़ता चलूँ सत्पथ पर॥
माँ शारदा की अनुपम कृपा,
गुह्यों का जानूँ रहस्य
अगर ज्ञान उनका हुआ, फिर नया
सवेरा है नित्य॥
सब ओर के भय मिटा, मानवता
नर-निकट लाऊँ॥
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