जीवन-यात्रा: एक मधुर प्रवाह
जीवन में नर को अनेकों ज़रूरतों से गुज़रना पड़ता, निज कर्म तो अंततः पूरे करने ही होते
यह संसार मात्र कल्पना नहीं, इसे सत्य धरातल पर बहु आवश्यकताओं के संग जीना होता।
हर किसी को हर्ष-शोक, जन्म-मरण, मिलन-विदा, उन्नति-अवनति, जय-पराजय से गुज़रना पड़ता।
जीवन है एक मिश्रित सा खेल ही, पग-2 पर पराजय, हाँ, बीच में कुछ सफलता-किरणें भी दिखतीं।
अनेक समझौते नित करने पड़ते, बीते पर कोई दबाव न, ज़रूरी नहीं हर निर्णय अपने हाथ में हो।
बस हमें अपनी कुछ ज़रूरत व रुचि अनुसार चुनना पड़ता है, और ज़िंदगी हौले-हौले चलती रहती।
अब आदमी को बहु अनुभवों से गुज़रना ही पड़ता, चाहकर भी सब कारक निज अनुरूप न कर पाता।
जैसी भी लाभ-हानि की समझ से जीवन निबाहना पड़ता, हाँ, प्रयत्नों से कुछ कारक ठीक भी संवर जाते।
फिर भी कोई अंतिम विधि-न्याय से बच न पाता, और कुदरत धीरे-2 बहुत चीज़ें समतल करती रहती।
क्षुद्र चालाकियाँ खेल में बचकानी ही, वह चंचल बालक सा समझ डाँट देती या खिलौना दे बहला देती।
हमारा सारा प्रयत्न कोई भी अनहोनी रोकना है, प्राण-स्वास्थ्य सँवारना, व आत्म को लाभ में रखना।
कभी समय मिले तो बाह्य वृहद विश्व की भी सोच लेते, लेकिन मुख्य कार्यक्षेत्र अपना अंतःस्थल ही।
निकट विषयों में ही अधिक व्यस्त रहते, चाहे जटिल, उबाऊ, ऊर्जा-नाशक, व धैर्य की परीक्षा लेते हों।
शिकायत भी न कर सकते, सकारात्मक हो आशा संजोते, मुस्कुराते से जीवन जी लेते, जो उत्तम ही है।
एक क्रीड़ा-स्थल सा यह जीवन प्रकृति-नियमों से चलता, खेल के कुछ पेंच हैं, कभी दाँव ठीक लग जाते।
ये संयोग का ही नहीं मनन-प्रसंग भी, एक को ख़ूब मेहनती, कुशल, खेल-नियम का ज्ञाता होना पड़ता है।
ये सत्य कि कोई व्यक्ति सब आयामों में सदा सफल न होता, उम्र के साथ लचीलापन अल्प पड़ने लगता।
माना अनुभवानुरूप बुद्धि भी बढ़ती, तथापि दैहिक बल कम, अंत में तो तन-मन दोनों क्षीण पड़ने लगते।
तथापि अन्यों की चालाकी-युक्ति समझनी पड़ती, कदाचित दूजा हितैषी भी हो, आप जिसे अन्यथा ले रहे थे।
धैर्य नित्य काम आता, निर्णायक काल में तो और भी प्रासंगिक, ज़रा सी सावधानी भी सफलता दिला देती।
कभी लगे कि हमारे साथ कुछ अवांछित ज़बरन हो रहा, किंतु वहाँ आपके स्वागतार्थ बड़े द्वार खुल रहे हैं।
माना एक सीट के कई ग्राहक, पर ज़िंदगी में सबको देर-सवेर कुछ अच्छा प्राप्त, व मुस्कान-कारण बनता।
चलो सकारात्मकता की कोशिश करो, बीता तो वापस न होगा, किंतु जो हस्त-प्राप्य का पूर्ण उपयोग करो।
भविष्य हेतु उत्तम सोचो-करो, हर भाँति के परिणाम, ऊँच-नीच हेतु तैयार रहो, जीवन यात्रा शुभ पूरी होगी।
उपलब्ध का शुक्रिया करो, वो असीम प्रभु-कृपा या प्रकृति माता के विपुल-स्नेह के कारण ही हमें उपलब्ध है।
और समय निज हिसाब से हमें समझाता, आगे बढ़ाता, मानकर चलो अतिशीघ्र नया मुकाम हासिल करोगे।
पवन कुमार,
10 अगस्त, 2025, रविवार, समय 9:50 बजे प्रातः, ब्रह्मपुर, ओडिशा
(मेरी डायरी 4 मई, 2023, गुरुवार, 8:21 प्रातः, नई दिल्ली से)