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Friday 3 November 2023

दीप्ति - दर्शन

दीप्ति - दर्शन 


किसी भी लघु-विराट कार्य प्रारंभ से पूर्व, नर को प्रथम कुछ सहज होना चाहिए  

उद्विग्नता से तो न अति भला, मात्र ऊर्जा अपक्षय ही, जबकि अनेक कार्य करने।  


नाम जीवन मात्र इसकी यापन-कला सीखने का, सदा यह-वह लगी रहती चिंता 

यदि कुछ सहज मनन कैसे क्या कुछ किया संभव, और सुलझें उलझी गुत्थियाँ।

किंचित दीप्ति-दर्शन भी, भिन्न विकल्प मनोदित, कुछ समाधान है जाता अटक 

सब आयाम ढ़कने से ही बात पूरी बनती, एक-२ करके अनेक काम जाते बन। 


स्वयं बहु आयामों से गुजरा, नित्य कर्म-अपेक्षाऐं समक्ष ही, हौले से भी निबटना 

माना कुछ अनुभव किंतु कैसे बहु-प्रयोग करते एक व्यापक लाभ सोच सकता। 

सब अपेक्षाऐं तो पूर्ण न शक्य, पर मन-वचन-कर्म से कुछ असहाय-मदद संभव  

अन्य-निर्भरता उद्देश्य न, व्यापक हितार्थ योग्य, शासन-सम्मत बनाना आवश्यक। 


अब नित्येव कुछ अन्वेषणा, अंततः योग्यता-मान करते तुम्हें किया पदासीन उच्च 

सफल परियोजना-निष्पादन दायित्व, संगियों को दिशा-निर्देश दिए जाने उचित। 

सकल कवायदें आत्म-प्रबंधन से शुरू, तब संबंधितों को कथन-झझकोरना-प्रेरणा 

स्पष्ट अनुभव कि बड़े जग-खेल में, स्व वक्ष के ऊपर से ही गुजरती बहु विफलता। 


इस खेल में तुम लघु-क्रीड़क, किंतु तव गति से ही पश्चग-कारवाँ बढ़ता आगे शायद 

अहम भूमिका मौका मिला, दृष्टि तुमपर, प्रधानाध्यापक सम दंड चलाने से का रोल। 

एक सेना सी में हो बाहर घोर समर है, किंचित तंद्रा का अर्थ बहुत बड़ा सा जोख़िम 

   अब सेनापति हो तो सब रण-कौशल, युक्ति-प्रबंधन सुनिश्चितता दायित्व, व निर्वहन।  


बहु पुस्तकें मनन-पठन कि जन सफल परियोजना-निष्पादन में सहायता करते बड़ी 

योग्यतानुसार ही कार्य लब्ध, अब आ गए तो समक्ष का समन्वय-कर्त्तव्य भी निज ही। 

माना स्वयं भी एक शृंखला में अन्य-निर्भर, कोई बड़ा संबल भी ढूँढ़ना पड़ता तथापि 

छुपने से तो कोई हल न, समस्या से सीधा भिड़ना होता, यथाशीघ्र हो समाधान भी। 


अब नव-स्थल के इस नवगृह-निवास शुरू, रहने-खाने-सोने हेतु बनाना पड़ेगा अनुरूप 

स्वच्छता-उपाय, नाश्ता-चाय आदि का प्रबंधन, ताकि देह-मन का स्वास्थ्य रहे उचित। 

विषय पूर्व स्वयं समझने पड़ते तभी दूजों से बात कर सकते, यह सब माँगे ऊर्जा-समय 

कोई भी बहाना न चले, फिर एक जगह स्थिर सा हो पूर्णबल संग उसे बना देना सफल। 



पवन कुमार, 

३ नवंबर, २०२३ शुक्रवार समय ११:२६ बजे रात्रि 

(मेरी ब्रह्मपुर डायरी दि० २८ जून, २०२३ समय ८:२६ बजे प्रातः)    



Monday 23 October 2023

सहकार - भावना

सहकार - भावना 


 

एक सर्वविदित उक्ति प्रज्ञा-उदित हो, हमारे अस्तित्व में निरत सहयोग बहु अवस्थित 

सब संगी, अवर-वरिष्ठ संग चलें, प्रेरणा-प्रयास निपुणता-कर्मठता में करेगी परिणत। 


एक विस्फरित विज्ञ चक्षु दूजे संग मिल चौड़ा दृष्टिपटल बनाए, बहु वस्तुस्थिति-ज्ञान दे 

एक हाथ क्षीण पर दूजे से मिल बड़ा बोझ उठा लेता, परस्पर कुछ काम भी बाँट रखे। 

यदि पूरा देह-भार एक ही पाँव पर तो थकेगा, दोनों चलकर सुदूर देश-यात्रा पूरी करें 

अपंगता से क्षमता निश्चितेव घटती, पूर्णता से निश्चिंतता सी, चाहे हम सम्मान  करते। 


शिष्य की सदा गुरु-जरूरत, शिशु को जनक का संग-दुलार, जीवन-दायक परवरिश

सब प्राणीगण परस्पर सहयोग से ही प्रगतिरत हैं, बाँटे ज्ञान से सतत ही हैं लाभान्वित। 

एक वानर दल वीथि-किनारे जंगल या पार्क में है, लोग खाना-फल आदि रख देते वहाँ 

वे भी स्व कला-दृश्यों से जन-मन बहलाते, बाल-कपि की तो अति-सुंदर अटखेलियाँ। 


बड़े नगर-चतुष्टों पर लोग पक्षी-गिलहरी आदि हेतु अनाज-दालें, मक्की-दानें रख देते 

झुंडों में उनकी जरूरत अनुरूप उदरपूर्ति, निश्चिंतता सी, नीड़ जाकर गीत गुड़गुड़ाते। 

कई स्त्रियाँ प्रातः ही चींटी-बिलों समीप आटा-अन्न रख देती, उनका भी हो प्राण सुलभ 

कई साधु खग-कुत्ते-बिल्ली-गिलहरी हेतु पार्क-गली पास या छतों पर जलपात्र देते भर 


संकट में दरिद्रों की भोजन-वस्त्र-औषधि-पुस्तकों द्वारा चाहे अल्प ही, मदद की जाती 

धन-साहस-प्रेरणा से उन्हें कुदशा-दलदल का निर्गम-युक्ति हर स्थल देखी जा सकती। 

अनेक छात्रवृत्तियाँ निम्न-आय अभिभावक-होनहारों हेतु दत्त, जीवन होता परिष्कृत ही 

ये अस्पताल-विद्यालय, अनाथाश्रम-धर्मशाला, लंगर, जलकूप-वृक्ष सब सहयोगार्थ ही। 


कुछ लोग नदी-तीर मीन-मगरों हेतु खाना रख देते, रुग्ण वन्य जीवों का होता ईलाज भी 

हम घरों में पालतु कुत्ते-बिल्ली-पक्षी आदि रहते हैं, जो एक सदस्य भाँति सम्मानित ही 

कई सामाजिक-सुरक्षा उपाय शासन-सहृदयों द्वारा, बहु विश्व-संस्थाऐं जन-हितार्थ निरत 

भावार्थ आपसी-सहायता का, वरिष्ठ-अवरों का भी आशीष-धन्यवाद सुवचनों से सुकून।


अतः नर अगर्वित ही रहे, सब काल-चक्र पाश में, इसकी दशा बदलती, जरूरत सबकी 

कोई सदा बली , जीवन बहु-आयामी है, बहु स्थल निम्नबल ही, अतः विनम्रता जरूरी। 

शुभ जीवन-कलाऐं सीखें, सिद्धि सकारात्मक दृष्टिकोण माँगे, सर्वहित में अपना भी भला 

समृद्धि से तो भला ही है, चरित्र ऐसा हो सब सहकार करना चाहें, निज दिखे निष्पक्षता 



पवन कुमार,

२३ अक्टूबर, २०२३ सोमवार समय २२: ५८ रात्रि 

(मेरी चेन्नई डायरी ११ मार्च, २०२३ मंगलवार से)  

Sunday 8 October 2023

स्वप्न-द्रष्टा

स्वप्न - द्रष्टा

 
बहुत सर्दकोहरे की श्वेत चादर विस्तरितत्यों भी है जीवन स्पंदित 

जिज्ञासु निज कर्म कर रहेंकुछ सो रहेंकुछ में उत्तेजना उत्कंठ। 

 

जब यदि एक विराट लक्ष्य समक्ष होतो कहाँ नींद-चैन  विश्राम  

माना देह-मन को आराम आवश्यककिंतु है तो वह अल्पकाल। 

क्यों हम तंद्रा में बीतना चाहतेजबकि सत्य कुछ उत्तम हो सकता 

स्वप्न-द्रष्टा तो जरूर ही बनेंपर उन्हें कार्यरूप देने वाला भी कर्ता। 

 

माना हमारे जीवन का एक अहम भागसदा है रहता निद्रा-ग्रसित 

यदि वह एक प्राण-रूप ही हैजो प्रशांत हो आयाम दिखाए लुप्त। 

दिवस में जिन पहलूओं परहमारी नहीं होती है विशेष गहन नज़र 

रात्रि में मन अपना पूर्ण संगी है दृष्टि घुमाए दिशाओं में समस्त। 

 

माना हमें प्रायः स्मरण  रहताइसी मस्तिष्क ने स्वप्न में क्या किया 

फिर भी वह हमीं से जुड़े प्रश्नों काअदर्शित रह हल करता है ढूँढ़ा। 

उसकी गति प्रायः अति मंदएक पहलू से दूजे में सहज प्रवेश करती 

 पुनः जाता वह प्रथम आयाम परक्योंकि गति ऐसी ही है इसकी। 

 

सहज प्रवृत्ति है मस्तिष्क कीस्वप्न-अवस्थाओं में माना वह है मद्धम 

हमारी भूत-वर्तमान स्थिति अनुरूप हीमन कुछ कर लेता निर्मित। 

दिन में बहु प्रभाव उसपरप्रकाश-कार्यअन्य-अपेक्षाऐं  उपालंभ 

पर स्वप्न में बिलकुल स्वछंदमूल-संभावनाओं छूने हेतु स्व सकल। 

 

वे भी नितांत ही आवश्यकइस मन-काया को पुनः स्फूर्त हेतु करने 

वे हमें जीवित रखतेचेतना से संपर्क की दीर्घ परम्परा बनाए रखते। 

हमें खोलते नव-आयामों में भीऔर कई पहेलियों का हल समझाते 

अच्छे-बुरे से सब संपर्क कराते अवचेतन का पूरा परिचय कराते। 

 

वस्तुतः हम महान या क्षुद्र नहींस्वप्न-अवस्था सबको रखती सम है 

हम सत्य धरातल पर  जाते हैंनिज क्षीण पलों को सहज से लेते। 

 अवरोध कोई है उस सतत प्रवाह मेंअपनी भाँति कार्य करता मन 

पर नींद अवरोधितस्वप्न टूटासंपर्क छूटा  नवजीवन में आऐं हम। 

 

अनेक मनीषियों द्वारा स्वप्न पर कार्य हुआकई उनसे अर्थ निकालते 

कुछ स्व क्रियाऐं स्वप्नानुसार ही मोड़ते उनको बहुत महत्त्व देते। 

कुछों का तब व्यवसाय चल पड़ताभाग्य स्वप्न पर आधारित कराते 

सुप्तज्ञान-व्याख्या करतेऔर चेतन जगत में सुझाव-टोटके बताते। 

 

वस्तुतः हम हैं आरामपस्त नरजो बहु जीवन-भाग निद्रा में बिताते 

माना स्वप्न उसका कुछ ही अंशजो प्रायः अर्ध-चेतन दशा है होता। 

Sigmund Freud द्वारा 'Interpretation of Dreams' में है वैज्ञानिक-विश्लेषण 

कहते कि स्वप्न एक सत्य स्पष्ट करतेचाहे हम सकें या नहीं समझ। 

 

कुछ का सामूहिक स्वप्न-परिचय का यत्नयूँ ही ऊल-जुलूल बखान 

मानो वे सर्व मानव-मन के द्रष्टाजब स्व को  भी जानते अति न्यून। 

कैसे जानें अन्यों कोबस कुछ बाह्य तत्व अनुमानते आधार बनाकर 

यदि इच्छा कुछ बताने की भीपूर्व उसे पूरा समझो फिर करो तय। 

 

लेखन-प्रारंभ स्वप्न में  जाने का थाअपितु बनाना जागृत पक्ष सुदृढ़ 

सुझाता मात्र स्वप्न में  रहोअपितु कार्य हों कुछ सत्य धरातल पर। 

लोग जो सोच सकतेकर भी सकतेऔर वास्तविक परिवर्तन संभव 

मात्र अति-आवश्यक विश्रांत पश्चातअपनी स्पष्ट चेष्टाओं में लगे मन। 

 

कर्मठ लोग सब क्षण सचेत रहतेकिन्ही भी व्यवधानों से  घबराते 

ज्ञान-पक्ष सदा मजबूत हैं करतेहर क्षण का पूर्ण आनंद ही उठाते। 

खड़े करते सुदृढ़ आधार  संस्थाऐंजिनमें शामिल हो जाते अन्य भी 

सामूहिक गतिविधियाँ-वर्धन संभवतब जग-कार्यों की क्षमता बढ़ती। 

 

 

पवन कुमार,

८ अक्टूबर, २०२३ रविवार, ९:२९ प्रातः  

मेरी डायरी १४ दिसंबर२०१४ रविवारसमय :१८ बजे प्रातः)