एक-दूसरे से बाँटते सुख-दुःख, आपस में भली-भाँति समझते।
Every human being starts his life's journey with perplexed, enchanted sight of world. He uses his intellect to understand life's complexities with his fears, frustrations, joys, meditations, actions or so. He evolves from very simple stage to maturity throughout this journey. Every day to him is a challenge facing hard facts of life and merging into its numerous realms. My whole invigoration is to understand self and make it useful to the vast humanity.
Kind Attention:
Sunday 29 May 2016
देश-समाज
एक-दूसरे से बाँटते सुख-दुःख, आपस में भली-भाँति समझते।
Sunday 15 May 2016
सहिष्णुता
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क्या पैमाना है निज-निष्ठा
का ही, राष्ट्रभक्ति और देश-प्रेम का
बस कुछ संवाद पुनरावृत्त, लो
हो गया अनुष्ठान सर्व-क्षेम का॥
क्यों एक मात्र सोच रखना ही
इच्छा, विरोध तो नहीं स्वीकार
हमारा कथन ही सत्य, अन्यों
को मनन-कथन नहीं अधिकार।
परिवेश निरत बस एक विचारधारा
का, अन्य तो घोषित द्रोही
चाहे विवाद का मूल- ज्ञान न
हो, पर संगठित हो उवाच सही॥
एक विशेष रंग- संवादों में
ही, देश-प्रेम प्रदर्शन की इति-श्री
क्या दैनंदिन यथार्थ आचार
है, उसमें तो श्रेष्ठता न झलकती।
प्रकृत्ति प्रदत्त सबमें
मस्तिष्क है, अपनी सोच का भी महत्त्व
यावत न सार्वजनिक हित-बाधक,
सहिष्णुता हो मूल-सत्त्व॥
सब समय की विचार-धाराओं में,
दक्षिण- वाम रहता है सदा
मस्तिष्क द्वि-कक्ष, दो लिंग, दो कर-पैर, सहकार
टाले विपदा।
सभी को निजी सोच रखने की स्वतंत्रता,
चाहे न हो सर्व-मान्य
चिंतन भी विकास- दौर से
गुजरे, अनेक स्वतः होते अमान्य॥
क्या परिवेश किसी देश का,
कैसे विज्ञ करते आचार-व्यवहार
जब शिक्षा-अर्थ उन्मुक्त न होने दो, कैसे पनपेगा
स्वच्छ प्यार?
सभी किसी स्तर पर एक काल,
परिस्थिति अनुकूल ही मनन
कथित विकसित-कर्त्तव्य भी,
उचित-समन्वय निर्माण सदैव॥
वैचारिक स्वतंत्रता हो
सर्वाधिकार, उस पर संभव तर्क-वितर्क
कुछ आदान- प्रदान सिलसिला,
शुभ मंशा से आदर-परस्पर।
सब मनुज स्व-कक्ष में रखना,
क्यों तुम देते अंत्यज्य संज्ञा नाम
उच्च-भावना जन्म की सर्व-जन
में, पूर्ण-भाव से ही कल्याण॥
विभिन्न काल-अवतरित
विश्व-चिंतक, अनावश्यक सम सोच है
अनुसरण रुचि-परिवेश अनुरुप
है, मन विकसित समय ही से।
मनीषी-चेष्टा भी
पूर्ण-समाधान हेतु, पर सब न हो पाते आकृष्ट
सकल चिंतन तो सर्वदा अलब्ध,
सत्य भी तो है मनन-अनुरुप॥
शिक्षणालय है एक विज्ञता-कुञ्ज,
श्रेष्ठ-बुद्धि परिचित विधाओं से
हैं असम साहित्य-रूचि, एक
काल-प्रगति, अमान्य कलाओं में।
क्या सब घोषित आचरण सटीक
हैं, पूर्ण नियत-प्रशासन तंत्र में
विद्वान गहन सोचते हैं,
सीमा-अतिक्रमण पर प्रश्न-चिन्ह लगाते॥
सब प्रजा यहाँ धरा-वासी,
प्रत्येक का सम्मान हर की जिम्मेवारी
सबकी जान-माल सुरक्षा,
स्वार्थ तज पूर्ण-पनपाने में भागीदारी।
निरंकुश नृप तो अनेक हुए
हैं, आम-जन निर्धन का शोषण अति
दमन-प्रवृत्ति घातक,
कुपरिवेश, अविकसित रह जाती संस्कृति॥
आओ मिल-बैठ करें
विचार-विमर्श, सर्वोत्तम चेष्टा हेतु मंथन हो
हर मनुज का पूर्ण-भाव विकास
हो, मात्र आडंबरों में न उलझो।
ऋतु-परिवर्तन सदा-काल की
माँग, घोषित कर दो सब एकसम
आचार-शैली हो संचालित, अतिशय
परस्पर- स्नेह वर्धन अयत्न॥
परस्पर सौहार्द-आदर भावनाओं
का, सर्व मनुज-जाति एक ही
पर किंचित स्वार्थ छोड़ दो,
सबके गृहों में हो समृद्धि-शांति ही।
पड़ौसी प्रति हो प्रेम का
रिश्ता, सब एक से हैं मान लो हृदय में
तजो असमता-भेद प्रत्यक्ष
आचार में, जुड़ेंगे सर्वांग देश-धर्म में॥
भारतीय संस्कृति अति-समृद्ध,
अनेक भाँति विचारक अवतरित
जीवन एक स्थल न सिमटा,
सर्व-दिशा देश-परिवेश से युजित।
शनै विश्व एक ग्राम में
परिवर्तित, आपसी मेल-निर्वाह अनिवार्य
क्यों अविश्वास ले
अश्वत्थामा सम शापित, प्रेम-मंत्र ही है यथार्थ॥
त्यागो घृणा, बढ़ाओ
बंधु-स्नेह, स्व-जन द्रोह अति महद-संक्रमण
विशालोर बनो रविंद्रनाथ सम,
विश्रुत-सम्मान, करो मृदुल चिंतन।
विश्व-बंधुत्व की बात करने
वाला देश, यूँ आवेश में न सकता रह
सर्व-दायित्व, महावीर-संदेश 'जिओ
और जीने दो' का अनुसरण॥
विरोध भी नहीं बुरा, पर अन्य
को घृणित संज्ञाओं से न करो मंडित
ऐक्य-अनिवार्य संप्रभुता
हेतु, अन्यथा कुविचार कर सकते खंडित॥