दर्द-ए -दिल
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मैं तो ख्यालों में ही खोया रहता हूँ
पता नहीं क्यों उनमें ही डूबा रहता हूँ।
तुम तो हार कर भी जीते
मैं तो जीतकर भी हार जाता हूँ।
मेरा मन तो है दास तेरा ऐ सनम
तू अगर बोले तो मर भी जाता हूँ।
क्या कसक दी है दिल में ऐ तूने
अपने ही दर्द में करहा जाता हूँ।
न जानूँ मैं गति अपनी
मैं तो बस तुझमें ही बहा जाता हूँ।
बरबस यूँ ख्याल तेरा ही
मैं तो अपने से डरा जाता हूँ।
नहीं पता है डगर अपनी का
क्यों मैं हवा में तेरी उड़ा जाता हूँ।
जिंदगी भर का साथ पकड़ा है
लेकिन चन्द लमहों से घबरा जाता हूँ।
तुम तो दूर बैठे हो सनम
मैं ख्वाबों में डर जाता हूँ।
तू अपनी शक्ति का कुछ अंश दे
मैं तो अपना सब लुटा बैठा हूँ।
तेरी बाहों का गर मिल जाये साथ
तो हर पल को शिकस्त देता हूँ।
तेरी यादों में मैं खोया हूँ बहुत
मुझे कुछ पता नहीं जिंदगी का।
कैसे चल रही किसके मानिंद
कैसे मैं अपना पता पाऊँगा।
मेरी झोली में पड़े बहुत से चमन
मेरा तुझसे जो साथ हो जाए।
किस्मत भी है शायद कुछ खपा सी हमसे
होते मिलन को भी दूर ले जाए।
मेरी हालात पर यूँ दया भी नहीं
किसी शख्स को न रोना आता।
मैं किससे कहूँ दास्तान-ए-अपनी
मुझे कुछ भी समझ नहीं आता।
मैं तो बन गया हूँ कुछ मजनूँ सा
दिन-रैन लैला किया करता हूँ।
मुझे कुछ सूझे नहीं ऐ साथी
तू आके मुझे संभाल तो ले।
मैं खो गया हूँ अपने में ही
तुम मुझसे दूर क्यों चले गए।
मैं हालात पर अपनी आंसू बहाता चला
पर कोई रास्ते में संभालने वाला न मिला।
ये गम के लम्हें और उस पर तेरी यादें
जैसे दर्द पर कोई नमक छिड़क जाए।
मेरा गम है कुछ अजीब सा
मुझे तो पता नहीं यह है क्या माजरा।
दुनिया ने कष्ट है बहुत दीजे
पर मैं तो सहे ही जाता हूँ।
मुझे कुछ मार्ग दिखा दे ऐ जानूँ
मैं तो किससे करूँ शिकायत भी।
अपनी किस्मत का दोष है शायद
वरना दूर इतनी क्यों रोता जाता हूँ।
तू भी तड़पे है बिना मेरे वहाँ
तेरी हालत भी नहीं बेहतर है।
किस-2 का गिला करूँ मैं ऐ सनम
यहाँ तो हर कोई एक जैसा लगता है।
मैं दीवाना सा फिरूँ उलझा सा
किस कदर खुद में खोया हूँ।
मेरी भोली सूरत पर दया कर मौला
गर मुझ पर नहीं तो मेरे महबूब पर कर।
मैं बिछुड़ा हूँ उनसे और वह बिछड़े हमसे
कब तलक दर्द में यूँ तू तड़पाएगा।
मेरी नीयत में खोट हो तो बता
मैं क्या करूँ समझ न पाऊँ।
तू है बड़ा निर्णयी हमने है सुना
मुझसे फिर क्यूँ आँख चुरा जाता है।
क्या हालत बन गई है मेरी, है देखी
मैं तो खुद पर आंसू बहाता जाता।
तेरी आँखों में सुना दया है बहुत
फिर क्यूँ तुझे मैं नज़र नहीं आता।
मेरी जीवन की शक्ति दे दे मुझको
मैं तेरी ही इबादत में लगा रहता हूँ।
मैं भूल गया हूँ समस्त विद्या मेरी
अपनी ही हालत में रोए जाता हूँ।
मैं तो हूँ डगर का पथिक
जिस पर न दया का फूल मिला।
बहुत शुष्क हो गया है ह्रदय मेरा
कोई आकर तसल्ली दे जाए।
मेरी बेड़ियों को कोई काट डाले तो
उम्र भर उसका गुलाम हो जाऊँ।
तेरी दुनिया में है कोई मरहम ही
या तो यूँ घायल ही चला जाऊँ।
कैसे करूँ सामना मैं तेरा
तेरा दोषी हूँ भाग आया हूँ।
तू तो शायद अपनी किस्मत को रोती
कहती होगी किस भगोड़े से मिली।
मुझे भी समझ ले तो ऐ जानूँ
इतना भी नाशुक्रा भी नहीं हूँ।
तेरा मुज़रिम हूँ मैंने माना है
दर्द जितना वहाँ, यहाँ उससे अधिक है।
किससे कराऊँ अहसास इस दर्द का
मुझे तो ऐसा नज़र ना आता है।
सब सुनते है कुछ बनावटी रहम खाकर
बाद में तो अनदेखा कर देते।
पीड़ा की जलन सीने में सही जाती नहीं
फिर कैसे सहूँ समझ आए री।
कोई वैद्य भी नज़र नहीं आता
जो आकर मरहम लगा जाए।
दूरियाँ स्थान की है रे बहुत
मैं कैसे पार करूँ पंख तो नहीं हैं।
अच्छे फंदे में डाला है जिंदगी
अच्छी तरह से सहजना तुझे आता है।
मैं तो डर गया हूँ अपने ही साये से ऐ सनम
मुझे ढाढस न कभी मिलता है।
कोई कहता नहीं तकलीफ है तुम्हे बहुत
किसी को न फिर दया ही आती।
भटकता रहता हूँ इस दुनिया में मैं अकेला
कोई साथी नज़र नहीं आता।
रोऊँ तो किससे रोऊँ, किससे कहूँ, किससे बखानूँ
हर कोई तो अपने में ही मस्त है।
मैं भी तो हूँ स्वार्थी बहुत ज्यादा ही
मैं किसका ही ध्यान करता हूँ।
मैं भी डूबा अपने ही ग़म में
मुझे तो किसी से शिकायत भी नहीं।
पर कब तक चलेगा ऐसा
मुझे मौला तू होंसला दे दे।
तू तो सुना था दयालु है बहुत
मुझको अपनी दया का पात्र बना।
बहुत तड़पा हूँ ऐ मेरे मौला
सहा अब और नहीं जाता है।
मेरे सब्र का बाँध टूट न जाए
फिर तेरी दया का मतलब न रह जाएगा।
किस कदर मैं तो यूँ ही भटकूँ
तू आकर सुला जा ऐ सनम।
घायल हो गए हैं पैर मेरे
चलते-2 तो लड़खड़ा जाता हूँ।
मेरी दुनिया में रोशनी कर दे
औरों के भी तो घर बसते ही हैं।
फिर मुझसे तू ख़फ़ा क्यों मौला
बता मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है।
मैं थोड़ा बुरा हूँ मुझे है पता
पर ऐसा भी नहीं कि बिलकुल ऐसा ही हूँ।
फिर कैसा बदला लिया है तूने
मुझको अपनी ही चाहे शक्ल दिखा दे।
तू तो फिर बाप है सबका
क्यों अपनी ही संतानों पर कहर है ढाता।
इस रात के सूने प्रहर में
क्या तुझे मेरी शक्ल नहीं दिखती।
मेरी अगर आत्मा है मुझमें
तो वो तुझको फिर याद करें।
तू आकर उसे संभल तो ले
वरन तो ये बेचारी ना जाने क्या करें।
मैं चाहूँ तो हूँ रुकना
पर दिल है कि मानता ही नहीं।
गर्दिशों के शिकंजे में ही सही
पर कलम ये साथ दे जाती।
मैं तो इसका ही सहारा पाता
पर ये तो रोते-2 मुझे रोक देती।
कहती है शायद तू मत घबरा ऐ अज़ीज़
तेरी तपस्या ज़रूर रंग लाएगी।
मैं किस कदर खो गया हूँ अपनी ही बातों में
कभी न ख्याल ज़माने का किया करता हूँ।
मुझे शिकायत नहीं ज़माने से
मैं तो अपने ही रंज में डूबा जाता हूँ।
दिल बहलाने का कुछ संग कर दे
कैसे कटेगी कुछ ढंग तो कर दे।
मैं अपने ही क़त्ल का हूँ मुज़रिम
फिर चाहे तो मुझे भंज दे।
तेरी ही दया का मैं चाही
तू कुछ ऐसा करिश्मा कर दे।
मुझे मिला दे मेरे साथी से
मेरे जाने का इंतज़ाम कर दे।
पवन कुमार,
31 मई, 2014 समय 20:38 सायं
(मेरी शिलोंग डायरी दि० 20 अगस्त, 2001 समय 12:55 म ० रा ० से )