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Sunday 7 January 2024

चेतन-अवचेतन समन्वय

चेतन-अवचेतन समन्वय

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हाँ जब विपत्ति में तो सर्वोत्तम उपाय का अन्वेषण-यत्न करोगेकुछ बुद्धिमता उत्पन्न होगी 

नर बीच में संतुष्ट भी जब बहु विषय ध्यानाकर्षण-हस्तक्षेप चाहतेजो उसकी जिम्मेवारी। 

 

एक दृष्टांत कि एक युवक दार्शनिक सुकरात के पास प्रज्ञा-लाभार्थ पूछने हेतु गया उपाय 

कहते हैं सुकरात उसे सर-तीर ले गयाउसकी मूर्धा जल में डुबा दीउखड़ने लगी साँस। 

सुकरात ग्रीवा को मुक्त  कर रहेंयुवा हाथ-पैर मार रहासाँस रोक रहा पर है एक सीमा 

अंततः छोड़ासहज हो जवान के प्रश्न पर उत्तर कि विपत्ति-व्यग्रता हल खोज से जन्मेगी धी। 

 

हम अनेक व्यवधानों में पाशित होतेप्रायः कुवृत्तियाँ स्वामिनी बन जाती करती विव्हल 

हम कष्ट में पर हल नहीं खोज पा रहेंया कुवृत्ति-प्रभाव मनोबल से होने लगता प्रबलतर। 

स्वयं को मात्र असहाय मानने लगतेएक सोच बनती कि निर्बल हैं निकासी इस जाल से 

अनेक घर-जानें कुव्यसनों के कारण नष्ट-ढ़हाने लगतेंबहु जग-व्याधिमूल ये कुप्रवृत्तियाँ हैं। 

 

एक योग्य-चिंतक को चेतन-अवचेतन मन के सामंजस्य-समन्वयन का चाहिए प्रयास करना 

आजकल Joseph D. Murphy की पोथी 'The Power of Your Subconscious Mind' पढ़ रहा। 

लेखक अवचेतन मन-तहों की यात्रा कराताकहे कि ढंग से मांगो तो सही, जरूर ही मिलेगा 

वह जिन्न सा सदैव किसी आदेश-प्रतीक्षा मेंयह निज पर निर्भर इससे काम ले पाते कितना। 

 

किञ्चित अवचेतन वाहक है चेतन मन द्वारा निर्मित मंसूबें पूर्ण करने का वे परस्पर-पूरक 

हम सहयात्री सुदृढ़-सुहृद ही चाहते हैंदुःख-सुख में सांझीजब कष्ट में तो दिलासा दे एक। 

मन निश्चितेव व्यस्क-निर्मलसर्वहितैषीआगे-पीछे  ऊँच-नीच समझने वाला चाहिए होना 

निज अपदशा के परिष्कार में हो समर्थविचार-सक्षमसुजन सम समेकित व्यवहार वाला। 

 

सर्व विश्व-निधि अंतर्मन हीबस अचिन्हित होतीउकेरने  खनन-उपाय शक्ति की न्यूनता 

प्रश्न कि कैसे उसको चुनौतीनिर्मल मन ही मित्रकई दुर्धर आयाम-स्थितियों निर्गम चाहिए। 

यावत संभव निज मृदुलतम छवि-कल्पना  उस हेतु प्रयत्न  हैबहु सफलता नहीं अपेक्षित 

आओ-निकलोयुक्ति-बल योजन करोसक्षमों से यथेष्ट सहायता लें महत्तम लाभ सुनिश्चित।  

 

आज दिवस एक पुरातन-निरंतरता में सूर्य मानिंद ही नवोदय हैऔर मुझे दैदीप्यमान होना 

उस सम ही सदैव एक काल पृथक भूभागों पर पूर्ण शक्ति लगाअनुरूप प्रभावित करता।  

अतः आगे बढ़कर स्व सकल सामर्थ्य-बुद्धिइस विश्व-निखरण के सुयज्ञ में देनी चाहिए लगा 

अनेकों को ज्ञान-व्यवसाय दानउन्हें सुप्रयास-आवश्यकता हैपुनः मन प्रबल करें एकदा। 

 

 

पवन कुमार, 

जनवरी, २०२४, दिन रविवार, समय : बजे सायं काल

(मेरी ब्रह्मपुर, ओडिशा, डायरी दि० २२ दिसंबर, २०२३ दिन शुक्रवार, समय :३६ प्रातः काल)