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Tuesday 4 October 2022

जीवन-छोर

 जीवन-छोर

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क्या निज में बाकी रह जाता मृत्यु-बादमन-देह तो सब समाप्त हो गए 

स्वयं अज्ञातहाँ क्षणिक काल हेतु कुछ स्मृति-चिन्ह धरोहर छोड़ गए। 

 

यह जिंदगी ही क्या-कैसी हैजब तक हम जीवित हैं विचरती हमारे संग 

पर प्राण-पखेरू उड़ते ही  नदारद हो जातीजीते-जी का है खेल सब। 

जब तक जीवित खूब कूद-फाँद सकते थेमन की अच्छी-बुरी लेते कह 

लड़ना-भिड़ना भी था तभी संभवपर मौत-आगोश में जा धूमिल सब। 

 

माँ के गर्भधारण-समय से अंतिम श्वास का मध्य-सफरकह सकते है जीवन 

स्पंदन प्रतिक्षण चाहे  अनुभवदिल धड़कतावहनियों में दौड़ रहा रक्त। 

अब हमारा मस्तिष्क भी शून्य-अचेतनकोई घटनाऐं रिकॉर्ड  कर सकता 

उसकी कार्य-प्रणाली अद्भुतहाँ जीवन विकसन से पूर्व ही शुरू हो जाता। 

 

कुछ सूक्ष्म दृष्टि तो अदृश्यों की परत खुलेंअनेक तथ्यों से सदा अज्ञात हम 

विज्ञान कुछ उपकरण देताप्रयोगशाला में विशेष ज्ञान भी प्राप्त सकते कर। 

चिकित्सा-विज्ञान में प्रगतिविशेष ज्ञान से मानव ने पता किए आयाम अनेक  

पर कितने ही अनसुलझे रहस्य प्रश्न कर पा रहेंस्वयमेव तो कुछ लब्ध न। 

 

हमारा जीवन-काल अति लघुमानव-मस्तिष्क भी एक सीमा तक ही निपुण 

फिर प्रशिक्षण भी  है अत्युत्तमउपलब्ध उपकरण का प्रयोग  पाते कर। 

देखो कलाकार निज देह-अंग के प्रयोग सेअनेक सुभीति मुद्राऐं बना लेते 

अनेक जादूगरदार्शनिक-वैज्ञानिकवेध-वेत्तासुख्यात मति-प्रयोग से हैं। 

 

कैसी दुविधा लब्ध तो सर्वस्वपर मार्ग-अदर्शनअमूल्य अनुपयोगी गया रह 

महँगे फोन-कम्प्यूटर खरीदे पर चलाना  आताकई फंक्शन का प्रयोग न। 

धनी लोग बड़े भव्य महल -आवास बना लेतेपर रहना तो ही एक कमरे में 

ढंग से उनकी साफ़-सफ़ाई भी  हो पातीहाँ कुछ समय हेतु खुश हो लेते। 

 

हम अनेक पुस्तकें खरीद लेतेफुरसत निकाल कभी ढंग से नाम भी  देखते 

घर में कई समाचार - पत्र आतेखोलकर मुख्य पृष्ठ-सुर्खियाँ भी  पढ़ पाते। 

अनावश्यक बर्तन-वस्त्र क्रय करतेपर अल्मारियों-बेड में ही सजे रहते बस 

प्रथम दिवस से ही उपयोगिता एक ओरफिर किस हेतु है ऊर्जा-धन व्यय। 

 

दिन-रात श्रम से धन कमातेकभी सोचा  एकत्रित का अत्युत्तम प्रयोग संभव 

बैंकों में पड़ा धन रहे अनोपयोजितकिसके काम आएगा किसी को  ज्ञात। 

बैंक उसी के प्रयोग से अति अमीर हो जातेनिज दशा तो पूर्व-कंगालों वाली 

कभी मस्तिष्क में श्रेष्ठ  अनुभव ही करतेपरहित से बाँट सकते थे  खुशी। 

 

बहुत पढ़ता-लिखता पर क्या अन्यों में भी प्रसारितवे भी लाभान्वित हो सकें 

क्या ज्ञान स्वयं तक ही सीमित होया बाँटकर अन्यों को भी योग्य बना सकें। 

एक सोच हो वृहद मानवता हेतुया मैं पैदा होकर दुनिया से यूँ ही चला गया 

या पूर्ण ब्रह्मांड मन-आत्मसात कर लियानिज को सबमें विस्तृत कर दिया। 

 

कैसा वीर निर्बल-दीनों की सहायता में  उतरेयूँ ही जुल्म होते देखता रहता 

 समझाने का हुनर सख़्ती से लोगों को गलत रोकने का पाया साहस जुटा। 

कदापि अन्य-कष्ट में शामिल होने के प्रतिस्वयं में विशेष उत्सुकता ही  दिखी 

अति उदासीन जग के निर्बल पहलूओं प्रतिबहुत कुछ कर सकता था जबकि। 

 

चहुँ ओर भिक्षुक-अपढ़-अज्ञानी-मूर्खों का रेलामैं निज में मस्त अमीर-विद्वान 

किसी अन्य की  खबर या चिंतादुर्भाग्य कि कोई भी जिम्मेवारी समझता न। 

किसी या अनेकों ने मेरे प्रति भी सुभीता सोचा थाआज सुस्थिति में हूँ तभी तो 

अहसान-फरामोश से अपने प्रति भलाई तुरंत भुला देतेबहुत दूर चुकाना तो। 

 

कैसे हो यह जीवन विस्तृतअप्रत्यक्ष में तो है किंचितप्रत्यक्ष में भी माँगता होना 

बिना श्लाघा-आशा के प्रति रोम से कुछ लोक-भला हो सकेजीवन सुफल तो। 

कितना अपना  अन्यों प्रति ईमानदार हो सकताचरित्र की कसौटी होगी क्या 

जीवन तो बस वर्तमानयदि पुनर्जन्म जैसी कोई धारणा भी तो निज को अज्ञात। 

 

क्यों  हो सबका मानव-एकता का प्रयासशासन प्रति तो प्रजा को  विश्वास  

क्यों  एक बड़ी समझदारी उदित होक्यों छीने-झपटने में ही चलता ज्ञान। 

क्यों गुमराहों को बस बहला -फुसला करहिंसा-बेहाली पथ पर छोड़ देते 

पद-दशा भी  निम्नतरप्रभाव से कुछ सकारात्मक-परिवेश सहेज सकते। 

 

जीवन-छोर तो पाना लोग महाकर्म कर रहेतुम भी कोटर से आओ बाहर 

ठीक कहो लोग सुनेंगे भीजब जीवन औरों में प्रत्यारोपित तो बनोगे अमर। 

 

 

पवन कुमार,

अक्टूबर, २०२२ बुधवार, समय १८:३१ बजे सायं 

( मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० २६ अप्रैल२०१७ समय :३८ से )