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Monday 18 March 2024

दिशा बदली

दिशा बदली

    

दिशा बदली तो दशा बदलीएक विचार-ढ़ंग बदला तो दुनिया ही बदल गई

पर आश्चर्य यह सब मेरे कारण हुआमैं तो जमाने को दोष दे रहा था वैसे ही।

 

सर्वस्व निज कर में हीमैंने उत्तर दिशा से कुर्सी घुमाकर ली दक्षिण-पूर्व कर 

कहते हैं दक्षिण या पूर्व ओर मुख कर मनन करोतो लाभ होगा आश्चर्यकर।

वैसे भी बिस्तर पर लेटताप्रातः जल्द उठ भ्रमण-व्यायाम तो सेहत हुई श्रेष्ठ 

मन जरा सकारात्मक तो सर्वत्र आत्मरूप-दर्शनदूर हो गए वैमनस्य सब।

 

मैंने भोजन-मात्रा में जरा कमी कीउदर से अनावश्यक बोझ कम हो गया 

थोड़ी सी वसा-मात्रा खाने में अल्प की, तो हृदय-स्वास्थ्य प्रफुटित हो चला।

किञ्चित चाय कम पीनी शुरू कीउदर-अम्लता बहुत हद तक हो गई दूर

प्रातः उठ गुनगुना जल पीना शुरू कियापाचन-शोधन सब हो गया दुरस्त।

 

सुबह उठकर मुख धोकर नेत्रों पर लार मलनी चालू कीतो दृष्टि सुधर गई 

अपराह्न-भोजन बाद अल्प-निद्रा चाहे कुछ देर हीअनुपम ताजगी मिलती।

शयन-पूर्व रात को एक गिलास दूध पीना शुरू कियातो स्वास्थ्य सुधर गया

सुबह आवास को बुहारना शुरू कियातो एक स्वस्थ परिवेश का बोध हुआ।

 

चुनींदी कहावत-दोहे-शेर-कविता-गजल लोगों में बाँटीलोग सजदा लगे करने 

कुछ ग्रुपों से जुड़ा समरूचि-मित्रों केबहु ज्ञान-सहयोग-समझ पास लगी होने। 

थोड़ा हँसी-मजाकमुस्कुराना शुरू जो कियालोग खुश होकर पास आने लगे

लोक के हित  मन की क्या बात कह दीतो बड़ी आशा-आदर से देखने लगे।

 

कुछ थोड़ा साहस किया  पदानुरूप झिड़क दी, कार्य-अनुशासन दिखने लगा

समक्ष कार्यों में कुछ अधिक लीन हुआतो मुझमें अधीनस्थ-विश्वास बढ़ गया। 

निज पक्ष कुछ शालीनता से स्पष्ट कह दिए तो अन्य उन्हें सकारात्मक ही लेते 

दूजों को समझने की जरा कोशिश कीसारी दुनिया दिखने लगी एक दर्पण में। 

 

शरीर की कुछ योग-मुद्राऐं बनाई तो उन विशेष अंगों का भी होने लगा व्यायाम

सब संधियाँ तनय होनी चाहिएजिंदगी जीने हेतु स्वस्थ-बली होना आवश्यक।

प्रजाजनों से जरा मधुर-सवांद शुरू कियावे और अधिक सम्मान करने लगे 

पर ढ़ीठ-कर्मियों से कुछ कठोरता कीतो वे भी शनै उचित पथ आने लगे। 

 

जरा सा सार्वजनिक कल्याणार्थ सोचातो एकदम शासन-प्रबंधन बदल गया 

लोगों को सुढंग से परखना शुरू कियाउन्हें निज शैली अनुभव होने लगा। 

किंचित दृढ़ता दिखाई तो सुस्तों में बेचैनी बढ़ीया तो काम करेंगे या भागेंगे

दोनों चीजें निज हाथों में पर दोषारोपण सुधरोगे तो अति लाभ ही होंगे।   

 

सुबह उठकर थोड़ा चिंतन-लेखन शुरू कियावृद्धि हुई बौद्धिक क्षमता में

कुछ महापुरुष-चरित्र अध्ययन, तो थोड़े-2 जुड़कर अनेक पास  गए। 

एक का अन्वेषण-यत्न हुआ, तो अनेक अन्यों से इस बहाने हो गया परिचय

संगी-साथ बढ़ापरस्पर-निष्ठा वर्धितजरूरी तो नहीं सब सदा हों समक्ष।

 

एक पुस्तक-परिचय तो अनेक नाम समक्ष आएधीरे कड़ी सी बनने लगी

एक कदम अग्र बढ़ा तो पथ दिखादृष्टि निर्मल हो दूर तक देखने लगी। 

मनसितार तार झनकायाएक आश्चर्यजनक तरंग सर्वांग में हुई झंकृत

अभी अज्ञात था मैं भी थिरक सकताअपने से परिचय होना हुआ आरंभ।

 

अपनी अनेक शक्तियों से अबतक अनभिज्ञ थाएक दिन देख ली झलक

आश्चर्यजनक रूप से मन-बली बना, आत्म-विश्वास कौशल हुआ वर्धित। 

तन्द्रा में भी खुद से झूझने की कोशिश कीतो नव-विचार उदित होने लगे

समय-सदुपयोग होकुछ घंटे चुराए तो जीवन निर्माणार्थ उपलब्ध हो गए। 

 

संस्था-कारवाईयों में भाग लिया तो खुलती दिखाई दी अनेक रहस्य-परत 

अनेक आयाम-दृष्टिकोण से भिज्ञ हुआमानस-पटल किञ्चित हुआ संपन्न।

विनीत हो वरिष्ठों की बात सुननी शुरू कीतो उनका स्नेह-पात्र गया बन

कुछ देर वज्रासन में बैठासौष्ठव बढ़ादेह सशक्त  पाचन-बल वर्धित।

 

जैसे ही अधीनस्थों प्रति कुछ दयावान हुआवे दिल से सम्मान करने लगे

कथन हृदयस्थ करके पूरी शक्ति लगा, प्रदत्त कार्य-पूर्णता का यत्न करते।

किञ्चित अधिक काम करना शुरू किया, तो वे कायल होकर बिछने लगे

कीर्ति दूर तक पहुँचीहरेक वाँछित कर्म पूरा करने की कोशिश करते। 

 

मुझे असहजता आभास होते हुए भी, यह लेखन-क्रिया आगे बढ़ा हूँ रहा

इसी संहति में से ही कुछ उम्दा निकलेगाआशावादी हूँ सदा कुछ पाया।

माना मैंने बहुत कुछ सोचा इस स्वयं हेतुपरंतु कुछ को तो बिसरा दिया

तथापि ईमानदार-नेक यत्न हूँ करता, आत्म को सदा  सजा दे सकता।

 

माना भविष्य की न कोई सुधहाँ वर्तमान में पूर्ण झोंकने का करता यत्न

पर कुछ योजना तो बना सकतास्पष्ट देखने की पूरी कोशिश है संभव।

कैसे वर्तमान की सुस्ती को भगाऊँआँखों में नींद चढ़ी पर कलम सतत 

यह विचित्र विरोधाभासग्रीवा झुकाताफिर उठाकर हो जाता गतिरत।

 

किंचित यदि निज वित्तीय-प्रबंधन सुधार लिया, तो धनराशि जुड़ने लगी

व्यय के बाद अनिवार्य संचय तो नित लाभप्रदबाद में आएगा काम ही। 

संतान संग बैठ समय लगाना शुरूतो उनकी पढ़ाई ठीक से लगी होने

प्रोत्साहन से उत्साह वर्धन होताउद्देश्य कि वे अधिकतम तरक्की करें।

 

अभी बहु-विषयों पर ध्यान  दे पा रहाफिर अपने से कैसे सुधार होगा

किंतु प्रथम विषय-ज्ञान तो होफिर वाँछित को भी चिन्हित करना होगा। 

अज्ञात कितने आयाम हैं संभवक्या अपनी विषय-वस्तु बढ़ा सकता नहीं

बहु-आयामी ही प्रतिभा-नाम कमातेकुंभकर्ण  उठते नगाड़े सुनकर भी।

 

जरा निर्मोही हुए तो कबीर सम स्पष्ट दृष्टिसमक्ष जग यूँ  गया हथेली पर 

बहु-भाँति के सुवचन वदन से निकलेकौन सरस्वती उनमें करती ही वास। 

पर ऐसा क्या नैसर्गिक होता या नियति-वृत्ति ठीक कर लीराह निकली चल

दुकान खोलो ग्राहक भी  जाऐंगेप्रयास से सकल समाधान होंगे समक्ष। 

 

निज की मिथ्या-मुक्ति हेतु आदि कीअनुपम हल्कापन मन-देह में अनुभूत 

विश्व तो बहुत ऊल-जुलूल से पूरितनिज अग्रताऐं ही करनी होती चिन्हित। 

यह जीवन मेरा इसे सर्वश्रेष्ठ कैसे बनाऊँकुछ गुरुओ से तो लेने होंगे सबक

सारा जोर ढंग-तरीके परउनके प्रयोग करनेतब तो गाड़ी निकलेगी चल।

 

किञ्चित सामान्य से अधिक प्रयास, तो निश्चितेव चरम सफलता ओर गमन  

यह जीवन संवारना तुम्हारी जिम्मेवारी हैजो भी वाँछित ढूँढ़ ही लो उपाय।

'यह जीवन  मिलेगा दुबारा', अतः प्रत्येक पल पूरी तरह से जी जाए लिया 

एक वृहद-जीवंतता प्रतीक्षा करतीजो भी उचित संभव खड़े होलो अपना। 

 

 

पवन कुमार,

१८ मार्च, २०२४, सोमवार, समय ००:२७ बजे म० रात्रि 

(मेरी महेंद्रगढ़ (हरि०) डायरी २० अप्रैल, २०१७, वीरवार, समय :१७ बजे प्रातः से)