रक्त-रिश्ते
---------------
---------------
रिश्तें प्राण-वाहक, हम निकसित उनसे, एक योग रक्त-सम्पर्क से
कह सकते सीधे जुड़े, किसी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं।
कुछ जुड़ाव तो अति-निकट जैसे अभिभावक, दादा-दादी, नाना-नानी
भाई-बहन, मामा-मौसी, चाचा-बुआ, चचेरा-फुफेरा, ममेरा-मौसेरा आदि।
रक्त-माध्यम से पिता-माता कुलों से सीधे जुड़ते, श्रृंखला-गमन दूर तक
अति-दूर तक ढूँढना-निबाहना कठिन, तथापि किया जा सकता प्रयास।
कितनी गहराई तक हमारी रक्त-मूलें हैं, हम अधिक ध्यान न दे पाते
इस अल्प-जिंदगी में इतने मशगूल हो जाते, भूलते कोई और भी हैं।
इस अल्प-जिंदगी में इतने मशगूल हो जाते, भूलते कोई और भी हैं।
अति-सुलभ है अन्वेषण-राह यदि चाहें, गहन योग देह-आत्माओं में
प्रेम-भाषा बोलकर तो देखो, सब आऐंगे बाह पसारे गले से मिलने।
रिश्ते हमारा उत्पत्ति-स्थल, रक्त-वीर्य प्रवाह हो रहा अति-दूर तक
एक-दूजे के गुण परस्पर बाँटते, शक्लें-व्यवहार में मिलते से जाते।
अधिक स्थल-दूरी से सम्पर्क बाधित, कुछ समय पूर्व था स्नेह-अति
विवाह-उत्सवों में मिलन-रीत, एक-दूजे को देख होती अति-ख़ुशी।
हम आपस के सुख-दुःख बाँटते, जानते अपना है हानि न करे
जैसे वे अपनी आत्मा का रूप, कुछ न दुराव अपने भीतर है।
नाराजगी भी तो वहीं जाहिर, कह-सुनकर हल्का होता मन
सभी मनोभावों से गुजरते, सब परिस्थितियाँ न निज-रूप।
अनुवांशिक-गुण तो अति-विस्तृत, विज्ञान से विस्तार-विवरण
माता-पिता, भाई-बहनें निकटतम, रिश्ते सुदूर तक वाहक।
हममें-उनमें अभिभावक-गुण साँझे, अटूट योग है नित-सुदृढ़
अनेक उसमें युजित हो सकते, जितना चाहे उतने हैं संभव।
रक्त-रिश्ता अति-महत्त्वपूर्ण, माना सिमट जाते कुछ दूरी पर
जानते हैं अपने ही, संसाधन-समय अभाव से दे पाते न ध्यान।
कुनबा-अवधारणा ज्ञान, माना कि सदस्य भी आपस में लड़ते
तथापि न्यूनतम सदाश्यता, अन्यों के विरुद्ध सब एक-जुटते।
प्रेम की चहुँ ओर जरूरत है, स्वार्थ से किंचित कृत-संकुचित
निज-कोटरों में ही दुबके, बाहर आ अन्यों को न लगाते कंठ।
स्व-दामन सिकोड़ा अनावश्यक, जब अनेक जन सकते समा
मन को प्रेम-रहित किया, कैसे विश्व-बंधुत्व की खुलेगी राह।
संबंधी सब आर्थिक-सामाजिक स्थिति में, निर्धन से दूरी अग्रों में
जब समुचित जानते अपने ही, तटस्थता-भाव दिखाते स्वार्थ में।
ज्ञान का क्या लाभ यदि न व्यवहार-दर्शित, किया दूर निजों भी
संबंधी को तज अन्यों से सम्पर्क बढ़ाते, धीरे दूरी बढ़ती जाती।
स्व-रुचियाँ महत्त्वपूर्ण, न आवश्यक रिश्तेदारों से पूर्ण-मेल
अपने-2 गुट बना लेते, समय आने पर यह या वह पक्ष लेत।
स्पर्धा-स्पृहा अधिक परस्पर में, आगे-पीछे टाँग भी खींच देते
एक-दूजे का मज़ाक भी बनाते, जैसा उचित लगे निभा लेते।
मित्रता एक वृहद-अध्याय, इस पर विस्तार से चिंतन कभी
अभी विषय रक्त-रिश्ता, कैसे मिठास है डाली जा सकती।
उसके अतिरिक्त संबंधी भी, भले प्रत्यक्ष रूप से न जुड़ते
मेल-जोल से ही अपने बनते, अपनापन हो जाता शनै-2।
जहाँ हृदय-समीप वहाँ माधुर्य, प्रेम से परस्पर उत्साह-वर्धन
सभी कुछ सहन चाहे कत्ल भी हो, प्रेम सर्वोपरि लेगा स्थान।
अभिभावक-संतानों में न है स्पर्धा, झेल लेते उच्छृंखलता भी
बंधु-भगिनियों में आदर, अति-गुणवत्ता संभव अस्वार्थ यदि।
एकत्रित करें संबंधी-कुटुम्बियों को, घर जाकर भी दिखाऐं स्नेह
वे भी हमारे प्रेम के भूखें, मिलने-जुलने से तो निकटता बढ़ेगी।
यदि परस्पर स्नेह-समझदारी, एक-जुटता से तो शक्ति-विश्वास
एक-दूजे को सहना भी उत्तम गुण, जीवंतता से वर्धन-सौहार्द।
सबमें सब भाँति के गुण, उत्तम को अपनाऐं क्षीणता को तज
सहनशीलता निज-पालक, आगे बढ़ो, सबको लगाओ कंठ।
पवन कुमार,
३१ जुलाई, २०१७ समय १३:५१ दोपहर
(मेरी डायरी दि० २५ जुलाई, २०१६ समय १०:२७ प्रातः से)