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Sunday 13 September 2020

मोमबत्ती की रोशनी

मोमबत्ती की रोशनी

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सब युगों में सर्व-धाराऐं  प्रवाहित, हाँ कुछ  अन्यों से अधिक बलिष्ठ 

पर नरोत्तमों की सर्वहित वार्ता, स्वार्थपरता तो मनुज प्रवृत्ति सहज। 

 

आज समाज-सुधार पर कुछ मनन चाहता, अनेक व्याधियाँ चहुँ-व्यापित 

अनेक निरीह जमींदार-व्यवसायियों पर निर्भर, शोषण-चंगुल में सतत। 

लोगों ने कुछ एक विकृत सोच सी  बना ली, हमीं श्रेष्ठ हैं अन्य निकृष्ट 

गरीब  विशेष समूह में परिभाषित  किए, जैसे भी हो रखो हाशिए पर। 

 

तमाम तरह की गालियाँ-तंज-यातनाऐं, शोषण के कई तरीके प्रचलित 

कभी- बहला-फुसला भी दिया जाता, कर्म के लेखे हैं, सहो चुपचाप। 

कभी अत्यल्प दिहाड़ी या बेगारी भी, भय दिखाकर हाँक लो भेड़  सम 

शनै पूर्वेव अल्प साधन छीन लो, पूर्ण-निर्भरता बनाई जाती निज ऊपर। 

 

बचपन से सब भाँति प्रपंच देखता आया, कि कैसे गरीब असहाय रहें 

 बाहर भी खास सहायता प्राप्त, नर को खुद हाथ -पैर मारने  पड़ते। 

कहीं जाति-व्यवस्था का कटु विष, गरीब-दुर्बल योग और अति कष्टक 

लोग अंतः-मन मसोस लेते, अत्याचार सहने की एक प्रवृति सी गई बन। 

 

निर्धन-स्त्रियों पर यौन-शोषण खबरें अमूमन, कई घटनाऐं दी जाती दबा 

हम समर्थ अत्याचार सहे जाओ, गरीब को  अधिकार मुँह खोलने  का। 

निर्बलों ने भी एक आत्म-हीनता सोच बना ली, बोलेंगे तो निश्चित ही पिटेंगे 

फिर कई धमकियाँ दबंगों से मिलती, विरोध-स्वर तो अल्प ही सुनाई देते। 

 

सत्य ही लोगों के पास धन-बौद्धिक-लाठी का बल, बस जिसे चाहो लो दबा 

पर गरीब-दुर्बलों पर ही अधिक नख़रा, अपने से बलियों से तो लेते पंगा। 

लोकतंत्र राष्ट्रों द्वारा सबको सम अधिकार, पर अवर स्तर पर अल्प ही पालन 

पता भी तो यथोचित सहयोग अप्राप्त, गरीब में साहस मौन ही करे सहन। 

 

कुछ निर्मल चित्त व्यवस्था ललकारते, सबको सम पनपने का मिले अवसर 

गरीबों में विश्वास फूँकने की कोशिशतुम भी कुदरत के उतने ही हो पुत्र। 

कोई भी जन्म से निम्न-उच्च हो सकता, बाद का आचरण मनुज के हस्त 

अत्याचार मत सहो, संसाधन सहेजो, बलवान रहोगे तो लोहा लेने में समर्थ। 

 

सब पूर्वकथित नियम नकारना चाहता, जो चाहते इंसान की अन्य से दूरी 

परस्परता सभ्य तौर-तरीके भी सिखातीकिंचित परिष्कृत कुछ की शैली। 

पर अर्थ यह कि सब वैसा कर सकते, शायद समुचित तरीके अपना रहें 

समाज में पैठ बनाना भी एक कला सब जानते, अतः हाशिए पर सिकुड़ें। 

 

जुल्म के खिलाफ विरोध स्वर तो हर काल में मुखरित, बड़े राज भी हैं पलटते 

पर एक अत्याचारी की जगह दूसरा ले लेता, गरीब चक्की में पिसते हैं रहते। 

कुछ हिम्मत कर निज स्थिति बदल भी लेते, अधिकांश उसी व्यूह-पाशित पर 

जब तक अंधकार में ठोकरें खाते, मोमबत्ती की रोशनी की सबको जरूरत। 

 

यदि लोगों की आर्थिक स्थिति दुरस्त हो, कम पराश्रित, तो कुछ भाग्य बदले 

सरकारों ने शिक्षा-अधिकार तो दिया, पर अनेक बाल काम करते दिखते। 

कई बार देख मन दुःखी भी  होता, पर अल्प ही सकारात्मक योग पाता दे 

दुनिया की  द्रुत गति, किसी  को अन्य की  परवाह, बस  स्वार्थ में रहते। 

 

बाँटना बस ऊपरी दिखावा, लोगों को बहला-फुसलाकर रखो विरोध करें 

समृद्ध की दुकान चलती रहेऊपर वालों को समझाकर स्वार्थ साध लेते। 

गरीबों की बात करने वाले भी कम, कुछ मुखर तो देश-विरोधी उपाधि प्राप्त 

निकृष्ट-लंपट-लुटेरे-चालाक धूर्त कंधे पर बैठे रहते, तब कोई ग्लानि मन। 

 

गरीब -अपराध अत्यल्प पर मार बड़ी, दबंग बदमाशी करे तब भी सम्मानीय 

 अंदर का चरित्र तो  कोई  देखता, बस बाह्य हैसियत-दबदबा ही महत्त्वपूर्ण। 

 श्रम करते पर निर्धन का गुजारा, अनेकों को खड़ा होना होगा उसके हक में 

कई प्रपंच-तंत्र उसके ख़िलाफ़ खड़े, बड़ी सहायता से उबारने की जरूरत है। 

 

 छोटे तबकों के हक़ की बात की जाए, पर वे भी कई कुरीतियों के जाल में फँसे 

कोई ऐसी धारा बहे  स्वाभिमान जगा दे, निज मानवेतर निर्मल-पक्ष देख सकें। 

जीवन इतना भी सरल कि स्वयं हलित, बहन-बेटियों के मान हेतु होओं खड़े

कांशीराम-मायावती भाँति लोगों में काम करो, जग बदलता ही आंदोलनों से। 

 

भाई कमसकम निज जिम्मा लो, लोगों को बनाओ सचेत-शिक्षित-गर्वित भाव 

   जहाँ जन्म लिया कुछ उऋण होवोंसस्ते सँभलेगा करना होगा बड़ा संघर्ष।    

 


पवन कुमार,

१३ सितंबर, २०२०, रविवार, :३८ बजे प्रातः 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी अगस्त, २०१८ समय :१९ बजे प्रातः से)