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Sunday 5 June 2022

देश-दशा परिवर्तन

देश-दशा परिवर्तन 

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सचमुच यह भारत देश-समाज प्रगति माँगता, बातें कम व कर्म पर हो ध्यान अधिक 

इसे विकसित बनने हेतु समग्र प्रयास चाहिए, यदि उत्साह तो संग चलेगा भी विश्व। 


दुनिया में अनेक सफल उदाहरण हैं, 

कुछ १०० वर्ष पूर्व सिंगापुर समुद्री डाकूओं से भरा एक बैक-वाटर कुख्यात सा टापू था

प्रधानमंत्री ली क्वान ने १९५९ में देश की कमान थामी, 1990 तक कायाकल्प कर दिया। 

माना यह एक नगर राष्ट्र है, जहाँ बड़े देशों की अपेक्षा विकास करना है अधिक संभव 

पर विज्ञान-तकनीक क्षेत्रों में इसने महत्वपूर्ण काम किया, स्वयं को बनाया विकसित। 


निश्चित ही एक बड़ी जनसंख्या को योग्य बनाने की देश के योग्य नेताओं का दायित्व 

वे अपने समाज-देश हेतु एक निर्मल स्वप्न देखते, जी-जान लगा पूरा करने का यत्न। 

कलात्मकता है एक प्रमुख विधा, प्रतिबद्ध तंद्रा त्याग कार्यरत तो दर्शित सुपरिणाम 

जब राष्ट्र-उत्पादकता वृद्धि तो समृद्धि स्वतः ही, पर मात्रा संग गुणवत्ता भी प्रधान। 


दूजे महायुद्ध बाद जर्मनी-जापान थे भुखमरी-कगार पर, एक दशक में कायाकल्पन 

आज जापान  एक सफलतम राष्ट्र, यद्यपि प्राकृतिक सुनामी-भूकंपों से नित बाधित। 

किंतु गुणवत्ता पर अचूक ध्यान, हर जीवन-गतिविधि पर नागरिक देश प्रति समर्पित 

विज्ञान-तकनीकों संग उत्तम-निर्माणों पर बलनिज उत्पादों हेतु बनाया एक स्थल। 


जर्मनी तो भारी मशीनरी-निर्माण में अति प्रगतिशील, सारी दुनिया में उत्पाद निर्यात

बेल्जियम-बायोतकनीक अति उत्कृष्ट श्रेणी की, नागरिक राष्ट्र-नाम न करते धूमिल। 

चीन ने गत 500 वर्ष की निर्धनता हटाई है, ८-१० % की दर से अर्थव्यवस्था रही बढ़ 

गाँवों का शहरों में प्रभावी पुनर्निर्माण, शीघ्र ही विकसित राष्ट्रों में होगा सम्मिलित। 


निकट सफल संस्थाओं को भी देखोकार्य-उत्पादकता में गर्व संग लाती उत्कृष्टता 

उनके कर्मी पूर्ण प्रतिबद्ध, समय का गुणवत्ता से प्रयोग, श्रेष्ठजनों की सुनते सलाह। 

सचमुच वरिष्ठतम को अति संयमित-कर्मठ-प्रेरक बनकर सुसमाधान चाहिए करना

अवर भी वैसा करते अनुसरण, चाहे मितभाषी हो पर आचरण का प्रभाव पड़ता। 


अमेरिका तो विकसित है, माना उसके विद्यार्थी विज्ञान-गणित में न उत्कृष्ट अति 

पर चीन-ताइवान-भारत आदि से कार्य-क्षेत्रों हेतु वह लेता सेवाऐं प्रतिभावानों की। 

देशों का सुभविष्य है विज्ञान-तकनीक में, मात्र नकल न कर मूल-अन्वेषण श्रेयस 

जितनी अधिक श्रम है, उतना ही रंग, देश-दशा सुधारने का जिम्मा तुम्हारा भी। 


देश-दुनिया अति-प्रगतिरत, पर कुछ समाज अब भी लोगों को रखना चाहते मद्धम 

पर भूख-अशिक्षा से मुक्ति से ही उन्नति संभव, कुछों की समृद्धि नितांत विकास न। 

बड़े नेता-प्रशासन कर्त्तव्य कि मात्र अल्पों ही न तरक्की, बल्कि सर्वजन  हो चिंतन 

श्लाघ्य तो स्वार्थ त्याग जनसेवा में ही रत, नाम संभवतया धन से अधिक महत्त्वपूर्ण। 


एक लघु संस्था की इकाई-प्रमुख रूप में, वरिष्ठ व अन्यों से मिल करना होता कर्म 

यहाँ महत्तम है बड़ी अपेक्षा कि स्वयं से ही अति माँग कर सुपरिणाम करूँ प्रस्तुत। 

मात्र भावुक न रह आयामों पर होवे काम, व्याप्त सुस्ती-उपेक्षा-छद्मता हो नगण्य 

माना कथन से लोगों को पीड़ा, किंतु लोकप्रियता-खेल न कि उल्ट-पुल्ट हो सहन। 


मुझे ऊर्जा-संचयन करना आना चाहिए, शीघ्र मोबाईल देखने की प्रवृत्ति हो कम  

कुछ क्षणों में अति कुछ न बदल जाएगा, संयम से हस्त-कार्य पर हो ध्यान विपुल। 

ऐसा प्रतीत कि कुछ अवर बस आनंद लेते, शरीर-मन पर न देना पड़े अधिक कष्ट 

पर यह सिलसिला नितांत हेय, सहज पर प्रभावी ढंग से विकासार्थ करो प्रबंधन। 


माना विश्व सच में है अति विचित्र-जटिल, पर योग्य निज प्रयासों से करते सरल 

महत्त्वपूर्ण है कार्यों को उत्कृष्ट स्वरूप देना, जुड़े हुओं को करना अंतःप्रेरित। 

एक कटु सत्य है, कुप्रवृत्तिरत तो मलिन-निकृष्ट तंत्रों का न चाहते नितांत सुधार 

लघु सर्वहित- बात भी लोभों पर कुठारघात सी है, अतः मात्र चाहते अटकाना। 


मैंने भी इस भारत-धरा पर जन्म लिया, एक कुल-समाज विशेष में हुई परवरिश 

इस प्रति है पूर्ण प्रतिबद्धता, नव विकास-सोपान चढ़ाने हेतु पूर्ण होवूँ प्रयासरत।  

पर विडंबना है कि मात्र न हो विचार, प्रतिदिन निरंतर प्रगति हेतु हो बड़ा यत्न 

परिश्रम-देवी है भाग्य-श्री से अधिक बलवती, वाँछित बल से स्थिति परिवर्तन। 


संस्था-रूपांतरणार्थ कुछ युक्ति-आवश्यक, हल तो सीखने-प्रयोग करने होंगे 

सुवाचन शिक्षा हो, सहयोग-वृत्ति आनी होगी, वाँछित आयाम अपनाने होंगे। 

इच्छा कि जग-प्रगति में महद गति से हूँ सम्मिलित, नई तकनीकें  हों प्रयोग  

जीवन-महाघड़न निश्चितेव है बड़ी चुनौती, सशक्त-प्रखर बन सीखूँ  निर्वहन। 


पवन कुमार,

५ जून, २०२२ रविवार, समय २२:२७ रात्रि  

(मेरी डायरी १६ अप्रैल, २०२२ समय ६:४२ प्रातः से )