Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Sunday 1 May 2022

समन्वित धारा

समन्वित धारा

-----------------


कैसा देश, पूर्वाग्रहों या अल्पज्ञान से स्वघोषित प्रभावी कुविचार उवाच 

कई उदार तो चिंतित होंगे ही, चरम-पंथी परिपाटियों का करते उल्लेख। 

 

कई विवादास्पद लेख रोजाना समक्ष, समाज के अग्रणी महानुभावों द्वारा 

परहेज न करते या यूँही बोल दिया, प्रतिक्रिया क्या होगी उन्हें भी ज्ञात ना। 

सुर्ख़ियों में रहना प्रयोजन, या कुछ समूहों को हासिए पर रखने का स्वार्थ  

या आम नर सम निज मत रखते, हम प्रतिक्रिया दे उन्हें देते अधिक भाव। 

 

कल एक विख्यात मंदिर प्रमुख ने दूरी को कहा महिलाओं से रजो-धर्म समय 

बोले कि अगले जन्म में नर बैल बनेगा, औरत कुतिया के रूप में लेगी जन्म। 

यह बिना देह संरचना-क्रिया समझे टिपण्णी देना सा, धर्म की दुहाई ऊपर से 

लोग बस मौन प्रवचन सुने कोई प्रश्न न हो, परम-ज्ञान का धर्ता उन्हें मान लें। 

 

अभी एक विद्यापीठ में छात्राओं के शौचालय में मासिक-धर्म जाँचन की चर्चा थी 

एक बड़े समूह प्रमुख ने शिक्षित महिलाओं में अधिक तलाक की बात कही। 

जैसे कि आमजन-गरीब-अबला-पिछड़ों की आर्थिक-बौद्धिक प्रगति से हो चिड़  

कैसा दर्शन, सचेत लोक बना आपसी मान न सिखाते, स्वार्थों की ही बात बस। 

 

दक्षिणपंथ-कटि तो टूटी व्यवहार में, पर प्रजा अद्यतन मात्र क्षुद्र स्वार्थ-लिप्त 

जब अन्य पर अत्याचार हो तो मौनव्रत, अपने लघु से कष्ट पर पड़ते बिलख। 

जब निज अस्मिता प्रहारित तो नभ सिर पर, अकर्मण्यता आरोपित शासन   

नियम-भंग कर दंडदान की प्रवृत्ति, पर-समूह में शादी पर पुत्री-हत्या तक। 

 

जब स्वदलीय दूसरों-गरीबों की बेटियों की अस्मत लूटते, तो मौन चक्षु बंद 

कभी न लगता उनको समझाए, ऐसी कुचेष्टाओं से समाज में विकृति उत्पन्न। 

कुछ तो स्वयं में अति-अव्यवस्थित, मति में कई भाँति के प्रखर भाव उदित 

पर बंधुजन भी भटकने में सहयोग देते, पर औरों के प्रति रहें अति-कर्कश।

 

आओ सब मिलकर ऐसा यत्न करें कि सब प्राणीजन रहें व्यवस्थित-सम्मानित 

निज अपेक्षा सम ही अन्य से व्यवहार करें, तब समन्वित धारा बहे अबाधित। 

 

पवन कुमार,

०१ मई, २०२२ रविवासर, समय १७:०० अपराह्न 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० १९ फरवरी, २०१९ , मंगलवार, समय ९:१६ से )