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Saturday 29 August 2020

हमारी लूना

हमारी लूना

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एक  पिल्ली हमारे घर में आई, और  प्रवेश हुआ आनंद

लैब्रेडोर प्रजाति की वह कृष्ण श्वान-कन्या, वय दो मास। 

 

२२ अक्टूबर, २०१४ सांय जब कार्यक्षेत्र महेंद्रगढ़ से घर पहुँचा,  

यह घर थी, बेटा सात्विक उसका पड़ौसी-मित्र तुषार थे वहाँ 

वह अति प्रिय संवेदनशील, जैसे पूर्व से ही सबको जानती थी 

पुत्री सौम्या भी वहाँ थी, एक दिन पूर्व अपने हॉस्टेल से आई थी। 

 

सात्विक ने बताया  हमारी ही है, किसी NGO ने उपहार दी है 

 शहर में  कई कुत्ते-प्रेमी हैं, इच्छुकों को बेहतर ध्यान हेतु दे देते। 

उत्तम नस्लियों का तो बहु बाजार-मूल्य, पर कभी मुफ़्त भी प्राप्त

ये जीव बड़े मिलनसार, और वस्तुतः मानव के हैं बहुत  निकट 

 

इसका नाम रखा था लूना, जो अतीव प्रिय और चपल थी 

हाथ-पैर मुँह से चाटती, झूठे ही काटने का नाटक करती। 

सौम्या को कुत्तों से बड़ा प्रेम है, काफी दिनों से पिल्ला लाने को रही थी कह 

सात्विक हाँ मिलाता, उसे भी खेलना-बातें करना अच्छा लगता उनके संग  

 

उषा भी उत्साहित थी, और बच्चों की ख़ुशी में शामिल थी 

मैं भी कुछ पशु-प्रेमी सा, मिलने पर बना लेता हूँ दोस्ती 

प्रेम एक ऐसी भाषा हैभले से समझते हैं जिसे जीव सब

एक दूजे के प्रति जिम्मेवारी वातावरण को बनाती मधुर 

 

सौम्या उसे अपने कक्ष में रखती, उसका पूरा ध्यान रखती 

बाहर घुमाने ले जाते, जहाँ वह मल-मूत्र त्याग कर्म करती। 

शिशु ही तो है ध्यान माँगती, समझने संकेत संवाद-भाषा

बच्चे सम उसका ध्यान रखना, यदि गृह-सदस्य है बनाना। 

 

अगले दिन मैं प्रातः उसे घुमाने ले गया सैक्टर- के पार्क 

हमने वहाँ दो चक्कर लिए, और बड़ी प्रसन्नचित्त थी वह 

सोसाइटी के बच्चे हिलमिल गए, जैसे वह उनमें ही एक है 

संग खेलना-दौड़ना-पुकारना, बनाता एक मनोहर दृश्य है। 

 

भले ही अभी तक कुत्ता  पाला, पर संपर्क तो बचपन से ही मेरा 

रूचि  सब पालतुओं में, पर उनका मल-त्याग कुछ भद्दा लगता। 

जब हम छोटे बच्चे थे तो पिल्लों के लिए घरों से मल्लौटा माँगते थे 

'दे दो मल्लौटा, थारे घर के बाहर झोटा' कुछ ऐसे संवाद बोलते थे 

कुतिया माँ पिल्लों को दूध पिलाने हेतु अतिरिक्त ऊर्जा मिलती। 

 

रविवार तक तो छुट्टियाँ सब घर पर थे, अतः कोई चिंता का विषय

शनिवार शाम सात्विक-तुषार संग गया सैक्टर- के पशु-क्लिनिक 

डॉ० इंद्र सिंह ने लूना को जाँचा, व संक्रमण-बचाव हेतु लगाया टीका 

कुछ कैल्शियम मल्टी-विटामिन शीशियाँ, सुझाव सहित दी थमा। 

 

बच्चे उत्साहित पर मैं उषा कुछ चिंतित, कार्य-दिवसों में कैसे चलेगा 

सौम्या  कॉलेज में, मैं महेंद्रगढ़ और उषा-सात्विक अपने विद्यालयों में। 

उस  समय  नन्हीं लूना का ध्यान कौन रखेगा, कौन बाहर घुमाएगा उसे 

खैर खाने-पीने की तो कोई न चिन्ता, पर नन्हीं जान अकेली रहेगी कैसे?

 

मन में कई विचार कि सात्विक की नानी या मौसी के पास छोड़ दें 

पर सौम्या तो मात्र भी तैयार न, कि अन्य के पास भेजा जाए उसे 

तब उषा के आगमन तक नीचे गार्ड के पास रखने का दिया सुझाव 

पर वह बहुत संभव नहीं क्योंकि वे हमारे तो नहीं हैं  निजी चाकर 

 

सुबह जल्द जाने की मजबूरी, सब अति-व्यस्त, लूना की होती चिंता 

सोमवार महेंद्रगढ़ आया, उषा ने लूना को सौम्या के कमरे में छोड़ा। 

दोपहर को जब उषा घर आई, कक्ष में लूना मूत्र-गंदगी से  बेहाल थी 

बड़ा मार्मिक दृश्य, बेचारी कूँ-कूँ करती, अकेले तो थी  रह सकती 

 

परसों सौम्या घर पर आई और लूना को लेकर थी बहुत चिंतित 

अपनी मम्मी पर गुस्सा थी कि हम लूना को  रख रहे हैं उचित 

पर  समझती भी यह सब मजबूरी, तथापि प्रेम-वश विव्हल थी 

कल कॉलेज से छुट्टी की, कुछ उपाय लूना को छोड़ने का कहीं 

 

परसों रात बड़ी परेशान थी, मैंने दो बार बात कीसमझाया 

कहा हम भी चिंतित हैं, पर उपाय तो कुछ करना ही पड़ेगा। 

छोटी बच्ची पर अत्याचार, असावधानी तो पाप ओर धकेलती 

अगर घर पर एक सदस्य भी रहता, तो फिर कोई चिंता थी। 

 

कल दोपहर सौम्या लूना को अपने संग ही हॉस्टल ले गई 

कहती किसी पैट- केयर में दूँगी, दिसंबर में ले आऊँगी। 

रात मैंने उससे बात की, उसकी मन-पीड़ा में शरीक हुआ 

बड़ा बुरा लग रहा पर लाचार, अतः यही उपाय मंजूर किया। 

 

सात्विक से भी बात की, जब संभव होगा पिल्ला रखेंगे अवश्य 

हमें ख़ुशी होगी यदि अपने बच्चों की ख़ुशी में शामिल हों हम 

बकौल उषा सोसाइटी के बच्चे लूना प्रति बड़े ही उत्साहित थे

उन्हें भी बड़ा कष्ट लग रहा, क्योंकि वह तो प्रिय ही इतनी है। 

 

सामने A-६०४ के मि० डे का बेटा सोनू, जो प्रायः हमारे घर ही रहता 

  साल का वह लूना से हिलमिल गया, उसकी रस्सी लेकर है चलता 

शुरू में तो वह डर रहा था, लेकिन अब कुछ दोस्ती सी थी हो गई 

एक सप्ताह का आनंद अंत में, एक  महद पीड़ा देकर गया है ही 

 

उस लूना की मधुर स्मृति, चिरकाल तक रहेगी हमारे जीवन में 

मुझे मालूम मुझे अब कभी मुलाकात भी होगी या न उससे 

पर कामना  जहाँ भी रहे खुश  रहे, एक अच्छी देखभाल मिले 

अंततः हमारी ख़ुशी उसी सब में है, जो सर्वहित से जुड़ी हुई है।

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(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी २९ अक्टूबर, २०१४ समय :२० बजे प्रातः से



                                       और उसके बाद वर्तमान स्थिति ---------------------------------


हुआ यूँ कि सौम्या ने लूना छोड़ी ही नहीं, उषा ने कष्ट से लूना को पाला 

उसे घर  छोड़ती, कभी कोई छुट्टी लेता, वर्ष भर सफाई का काम बड़ा। 

फिर जैसे-तैसे एक दूसरे को समझा, लूना ने भी काफी नियंत्रण किया 

अब घर की एक पूर्ण सदस्या, पूर्णतया सबको निज पाश में ले है रखा। 



पवन कुमार,

२९ अगस्त, २०२० समय :२२ बजे प्रातः :