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Monday 17 August 2020

इंद्रधनुषी रंग

इंद्रधनुषी रंग
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शाखा का सिहरना, मलय का बहना, पत्ते झड़ना, हिम-नद का सरकना
चिड़िया का गीत, समुद्र का उफान, सूरदास का गायन, बूढ़े का सम्मान।  

रक्त-प्रवाह, श्वास का चलन, उर की धड़कन, उत्सर्जन तंत्र, श्रवण-नयन
कंचन-चमक, कंगन खनक, रसिक धुन, झूझने की ललक, गौरव-पथ। 
तप्त हृदय हूक, लुहार की फूँक, निशाना अचूक, मनीषी चिंतन-दर्शन 
वीर की हुँकार, उद्यमी प्रयास, अजातशत्रु सी मैत्री, भृत्य का सेवाभाव। 
 
 प्राची का सौंदर्य, सरोवर का नीरव, चंद्र का उदय, सूर्यास्त की लालिमा 
सूर्य की ऊर्जा, पृथ्वी-धीरता, आकाश की विस्तृता, सुरम्य की भव्यता। 
कस्तूरी की महक, चंदन-हींग-इलायची की सुगंध, तुलसी की पवित्रता
हल्दी-औषधि, त्रिफला सा सेवन, खीरे-पपीते-शीताफल सी सुपाच्यता। 

द्रौपदी का चीर, राँझे की हीर, राम की पीर, मीठी खीर, पावस का नीर
प्रेमी की चाह, प्राणी-साँसत, युवा का साहस, पंछी  की उड़ान, गंभीर। 
कष्टों  का जाल, देह का विश्राम, पथिक की थकान, दरिया का फैलाव
दिन-प्रकाश, धाँस की फाँस, क्रोध के दुष्परिणाम, अहंकार का नाश।

मौत का डर, तूफान में फँस, बगुले का ध्यान, भुजंग विष, बिच्छू का दंश
चकुवा-युग्ल, वानरी सी संतति-प्रेम, हस्ती सा घ्राण-बल, भेड़ सी नकल। 
 चितैरे मृग-नैन, भ्रमर-नृत्य, डॉल्फिन सी मित्र-सहायता, सर्वत्र-वासी मूषक
अजा बुद्धि व जिज्ञासा, मृग छावे का जन्म के २० मिनट में चलना आरंभ।  
 
हारमोनियम संगीत, शंख-ध्वनि, ढ़ोलक थाप, मृदंग नाद, बांसुरी की लय 
बीन की लहर, शहनाई  धुन, डुगडुगी की गड़गड़, खज्जरी की खनखन। 
 वीणा-सुर, घड़े की ढप, इकतारा तान, जल-तरङ्ग टनक, मंजीरे की ख़नक 
सितार सप्त-सुर, भोंपू का शोर, मन में गुनगनाहट, मित्र  फुसफुसाहट। 

गर्मी जलन-प्यास, भूमध्य रेखीय प्रदेशों की उष्ण, दक्षिण वृत्त में सर्दी पर 
पावस-बादर बरसें, हरियाली, भू-सुवास, भादों की उमस, इंद्रधनुषी रंग।  
शरत में रमणीयता-मस्ती, हेमंत पतझड़, शाली कटना, दिवाली की ख़ुशी
गृह-द्वार स्वच्छ, परस्पर बधाई, गले मिलते, भेंटें स्वीकारते, प्रसन्नता सी। 

शिशिर  में माघ-पौष की ठंडक - ठिठुरन, सर्वत्र शीत, दिन लंबे-रातें छोटी
जीव ऊष्मा चाहते, क्रिसमस-पर्व, साईबेरिया-आर्कटिक ध्रुवों में अति सर्दी। 
वसंत में वानस्पतिक सौंदर्य विस्तरित, सर्वत्र उल्लास-समृद्धि, होली का रास
उपवनों में बहार, सर्दी में कमी, आम्र-अंकुर, जीव-पादपों में चरम उल्लास। 
 
अमेरिका-जापान, द० कोरिया, प० यूरोप, यूनान विकसित, नभ-चुम्बी भवन
तकनीक समर्थ, उच्च जीवन-स्तर, शिक्षित प्रजा, सुविधाऐं, खोज-अंतरिक्ष। 
कई विकासशील जिसमें भारत-चीन भी एक, आगे  बढ़ने का यत्न कर रहें 
कई एशियाई-अफ़्रीकी-द०अमेरिकी अर्ध-विकसित, गरीबी-कहर झेल रहें।

महानता अंश, कर्मठता का दक्ष, सच्चरित्रता का अक्ष, संपूर्णता का कक्ष
मौलिकता का प्रयोग, वैज्ञानिक का उद्योग, किसान-कमेरे का सतत श्रम।
प्राणी सहयोग, कर्मठता का योग, उपयोगी निर्माण, सबका साथ-विकास
वसुधा-कुटुंबकम, परस्पर प्रेम, प्राकृतिक संतुलन व समन्वय सहेजना।   

गीता ज्ञान, तुलसी का मानस, मानस रस, रावण का ज्ञान, भर्तृहरि त्याग
शबरी के बेर, कृष्ण सी मैत्री, रंतिदेव सी करुणता, शंकर सा ब्रह्म-ज्ञान।  
ज्योतिबा फुले सी शिक्षा, राममोहन राय व विद्यासागर सा समाज-सुधार
सुकरात बुद्धिमता, बुद्ध सौम्यता, कबीर की फक्कड़ता, नव-संविधान।  


पवन कुमार,
१७ अगस्त, २०२० सोमवार, ६:२६ बजे प्रातः 
(मेरी  महेंद्रगढ़ डायरी २९ सितंबर, २०१९ शुक्रवार, २०१९ समय ९:०७ बजे प्रातः से)

2 comments:

  1. Vikas : श्री मान जी, अत्यंत अद्भुत रचना के लिए बधाई ।🙏

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  2. Dhirender S Gangwar: बहुत ही सुंदर रचना है। इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई।

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