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The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Sunday, 21 November 2021

लेखन स्पष्टता

लेखन स्पष्टता
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संध्या समय है अपने घर में खाली बैठाउधेड़बुन में क्या करूँ उत्तम

 दो-दिवस की छुट्टियाँ यूँ ही बीत जातीकोई रचनात्मकता  दर्शित।  

 

कहीं पढ़ा डायरी के बजाय कुछ लेखक सीधा कंप्यूटर पर करें लेखन

उससे काम आधा हो जातापहले लिखने का  बाद में टाइपिंग का। 

एडिटिंग तो करनी ही होतीकोशिश आज सीधा लिखने की हूँ करता 

जानता कि टाइपिंग में बड़ी मशक्क्त होतीसमय भी ज्यादा है लगता।

 

हिंदी टाइपिंग तो स्वयं कर लेताइंग्लिश किसी ऑपरेटर से करवाता 

उनको भी समय कम ही मिलतासमय लेतेकई बार कहना पड़ता। 

अब यह व्यक्तिगत कार्यअतः ज्यादा तो दबाव भी  दिया जा सकता 

अंग्रेजी-कार्यों पर अधिक कार्य  हो रहाएडिटिंग भी  कर पा रहा। 

 

डायरी तो बहु लिखित पर एडिट /पोस्ट अतः उत्पादकता अल्प ही 

इसके वर्धनार्थ कुछ उपाय करने चाहिएपर मिलें तो पढ़ने वाले भी। 

वर्णिक जान लगाकर लेख को एडिट कर के बाद रचना छापता जब 

    एकदम तो कम ही पूरा पढ़ते हैंबाद में कुछ पढ़ते रहते ब्लॉगर पर।    

 

लिखना निज में एक टेढ़ी खीर सापर कितने लोगों को ही रूचि पढ़ने में 

फिर काव्य बहु समय लेतासब एक जैसा लगताकौन समय व्यर्थ करे। 

ग्रंथालयों में अति श्रम से लिखित अनेक ग्रंथपर कितने उनका लाभ लेते 

पाठय-पुस्तकें पठन विद्यार्थियों की मजबूरीलेखक - नाम भी याद रखते 

कुछ प्रसिद्धों को पढ़तेपर यह संस्कृति-अंश कितनों की रूचि अक्षर में। 

 

लोगों में स्वीकारोक्ति होना बड़ी बातपठन-शौकीन तो कमसकम पढ़े 

मित्रों समक्ष तो प्रस्तुत फेसबुक माध्यम होताकुछ लाइक भी हैं करते। 

पर कितनी पंक्ति पढ़ी यह तो अज्ञातक्योंकि प्रथम पठनीयता कम ही

पर साहित्य-कर्म एक दिवसार्थ ही नहींधैर्य रखो शायद मिले यश भी। 

 

लेखन स्वयं-सिद्धा प्रयास हीसाधारण मन जैसे समक्ष आता लिख देता 

अच्छा-बुरा तो मन में  हैएक साधारण व्यक्ति कैसे बड़ा सोच सकता। 

कुछ बड़े लेखकों को पढ़ने का यत्न भी करतापर शैली नहीं चलती पता 

क्रिएटिव-लेखन एक कोर्स भीप्रोफेशनल तरह से सीखा है जा सकता। 

 

गत वर्षों  बहु काम थाउच्चतर अध्ययन  कर लेखन में लगाया समय 

कितनी गुणवत्ता आई एक विशाल प्रश्नहाँ शब्द जरूर हो जाते अंकित। 

उद्देश्य अधिकाधिक तक पहुँचने कापढ़कर प्रतिक्रिया दें तो शोभनीय 

पर न्यूनतम गुणवत्ता हो टिपण्णी हेतुलेखक-धैर्य की परीक्षा होती नित।  

 

मैं भी एक विचित्र इंसान हूँकाम बीच में छोड़ फोन में व्यस्त हो जाता 

इस आदत से तो सब बीमार हैं काफी व्यर्थतीमन अन्यत्र पहुँच जाता। 

माना बीच में कुछ विराम चाहिएपर तथापि सोचो मन में कुछ सुभीता 

वैसे लेखन भी 'शोधित मनन-कार्यहीजितना डूबोगे उतनी गुणवत्ता। 

 

सोशल मीडिया का लोभ छोड़ोवहीं मिलेगा पर लेखन-समय  आएगा 

आऐगा भी तो अब जैसा तो कतई लक्ष्य यहाँ है मौलिकता निकालना। 

यावत  बैठोगे  अच्छा या निकृष्टप्रथम कर्त्तव्य शांत बैठ लीन होने का

कहते लेखन में आयतन की महत्ताअधिक शब्दों से नव-विचार खिलेगा। 

 

मुझे लेखन की दिशा निर्धारित करनी चाहिएयूँ ही गँवाओ मत समय 

एक उत्तम विषय लो पूर्ण झोंक दोदेखो कितना गुणवत्तापूर्ण है संभव। 

लोगों ने बड़े- अनेक ग्रंथ लिखेवे ध्यानाकर्षण से ही उद्भासित हुए हैं 

तुम अन्य संदर्भों का भी सहारा लोलोग बड़े नामों का उल्लेख चाहते। 

 

कई बार चिंतित कि जीवन में जितना करना चाहिएउतना  हो भवत 

छुट्टियों का बड़ा भाग सोकर बीताउपयोग उन्नति-कर्मों में था संभव। 

आर्थिक प्रबंधनस्वाध्याय-लेखनलोकहित-कर्ममित्र मेल-वार्ता पर्याय 

परिवार संग समय बिताना भी अच्छासाथ ही और भला सोचो प्रयोग। 

 

कुछ महानरों की प्रतिदिन जीवन-शैली पढ़ोक्या वैसा कुछ हो कर रहे 

महावाक्य  जँचे जब तक स्वयं तत्त्वज्ञी लक्ष्य महान होना ही चाहिए। 

प्रथम तो आत्म से ही संतुष्टि चाहिएअन्य सही आकलन  सकते हैं कर 

यही पीड़ा लेख-शब्दों में व्यक्तपर पूर्ण अभिव्यक्ति कार्यों में अदर्शित। 

 

अबतक एक सुकथा  भी रचित हैनरों ने बहु कृतियाँ जीवन में ही रची 

जन पढ़ते-सरहातेवाक्यों से सूक्ति निकालतेउद्धृत कर देते संदर्भ भी। 

पाठक चाहे कम या ज्यादा विशेष भेद पर बनाओ तो पूर्व आधार एक

चाहे कुछ मौनव्रती से स्व से जूझोसततता अपना प्राचीन मनीषियों सम। 

 

निश्चित ही मनन-आवश्यकताअभी जॉब में हूँ दिन कार्यालय में व्यस्त 

जब  वर्ष बाद रिटायर हूँगा तो क्या घर पर हीऔर कैसे बीतेगा समय। 

कोई सामाजिक कर्मी तो  हूँमितभाषी सा बसअतः उत्तम सोचो उपाय

रिक्तता एक महादंड साएक शैली अतएव बने लोग कर सकें स्वीकार। 

 

कुछ शैली बना लो उम्दा  पक्कीजग में उससे एक पहचान सके बन

विख्यात होने की चाहत कोई बुरी यदि ईमानदारी से हो रहा प्रयत्न। 

कुछ योग्य मनुज मित्र भी बनेअभिरुचि-विस्तार में सहायता सकें कर 

लेखन में कई सहाय वाँछितयावत तो अचिन्हित यथाशीघ्र ढूँढ़ो अतः। 

 

विश्व में एकाकीपन से  ज्यादा अग्रसरणसहारा लोकई मिलेंगे दाता

यावत किसी से संवाद उन्हें कैसे ज्ञात तुमको क्या है आवश्यकता। 

उन्हें भी पढ़ो - सराहोतभी तव कार्यों पर टिपण्णी करने में मजा लेंगे  

सत्य आधार पर बात होलोग जरूरत बोधेंगे  वर्धन-सहायक बनेंगे। 

 

एक परियोजना तो बनेकुछ को शामिल करोचाहे चुकाना भी पड़े दाम 

त्रुटियाँ तो अनेक हैंपर कौन सुधारे बड़ा प्रश्नयहीं मित्रता आएगी काम। 

निज में हम अतिकृशसाथ में लें तो शक्ति वर्धनहो जाता उत्साह-वर्धन 

एक निश्चित जीवन-काल ही सब हेतुउपलब्ध में से निकाल लो महत्तम। 

 

आज सीधा कंप्यूटर-लेखन प्रयासआगे भी होप्रिंट ले बने डायरी प्रारूप

बाद में जो एडिट होगा देखा जाएगामूलरूप सहेजने का  स्वतः आनंद। 

कार्य-सहकर्मियों में सकारात्मक पहचान बनानीप्रशिक्षण सा देना पड़ता 

कुछ लोग बड़े रूखे-बेहूदेक्रोध  कर धैर्य संग उनको काम में जोड़ना।  

 

 धन्यवाद। 

 

पवन कुमार,

(२१ नवंबर२०२१ समय २१:०१ बजे रात्रि )

(मेरी दिल्ली डायरी २३ नवंबर२०१९ समय २०:४० सायं से)

Tuesday, 16 November 2021

सोशल मीडिया

सोशल मीडिया 

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                                   महद सामग्री हरपल पैदा हो रही, अद्य सोशल मीडिया युग में तो भरमार 

विपुल प्रिंट-फोटो-वीडियो फुटेज वायरल, हटाना ही समय लेता पर्याप्त। 

 

सब डुगडुगी बजाने में व्यस्त, निज से कुछ रचित कॉपी-पेस्ट में हर्ज 

सारा नहीं तो कुछ देख ही लेते, कदाचित सोचते और भी हों लाभान्वित। 

नर सारा दिन काफी रात्रि काल भी स्मार्ट फोन की गिरफ़्त में है रहता 

सदा कुछ कुछ देखता रहता, मस्तिष्क में कुछ कचरा पड़ा भी रहता। 

 

पहले हम सारा दिन टीवी देखते थे, हजारों चैनल, सब अपनी- बघारते हैं 

सर्व जग-बोझ अदने मनुज-सिर पर पटकते, जैसे निदान उसी ने हैं करने। 

विश्व में लगभग ७५० मनुज, सबके जीवन में कुछ कुछ चलता रहता है 

अब सबकी खबर किस लिए चाहिए, अपने ही निबट लूँ, यही बड़ी बात है। 

 

सामग्री उपलब्धता से लोक का ज्ञानवर्धन, पर क्या औरों को ही देखता रहे    

अपने मनन -विचार हेतु भी तो उसे समय चाहिए, कुछ स्व हित हो जिससे  

FB, WhatsApp, Twitter, Instagram, Pinterest, LinkedIn, YouTube आदि 

अब बात भी संवादों से ही, सीधे संपर्क टूट रहें, संचार-साधन हैं पर संपर्क न। 

 

पहले पत्र-पत्रिकाऐं, पुस्तक आदि पढ़ लेते थे, सीमित TV चैनल थे देख लेते थे 

प्रत्येक मीडिया को एक विश्वसनीयता बनानी होती, निर्मात्रा कुछ विज्ञ ही होते। 

हर युग में कोई विचारधारा हावी रहती, संतुलन तो लोग करते परस्पर आदर 

जब सदा सिर पर बहु सूचना थोपी जाएंगीकैसे-कब निकालेगा सही निष्कर्ष। 

 

नव-संचार क्रांति ने उथल-पुथल मचा दी, नित नर मैसेज देता अपने मतलब के 

निस्संदेह वह पूर्वाग्रह-ग्रसित तो है, पर अपना समय मिले तो व्यक्तित्व निखारे। 

 सफलतार्थ निज प्रयास पुनीत कर्त्तव्य, लोग कितना जानेंगे - रूचि लेंगे पर निर्भर 

पर सब बाँटन-होड़ में खड़े, उधार की माँगी बुद्धिमता पर जताते अपना हक। 

 

मानव थोड़ा सरल क्यों बनता, कुछ वाक्य निज से गठन की कोशिश तो करे 

सतत व्यवधानकर्ता उपकरणों से किञ्चित दूरी हो, चरम सीमा खोज-यत्न करें। 

जीवन बस औरों को देखते-सुनते निकल जाऐगा, कुछ कमाया तो अपने से 

परजीवी खाना तो पा लेता, पर निज कर-कमाई का सुख उसके भाग्य में। 

 

कुछ ग्रुपों में हूँ अनेक वीडियो लोड होते, मैसेज भी भेजते कुछ व्यक्तिगत 

सबको देखना तो अवश्यमेव मुश्किल, देख लेता हूँ किसी का कुछ अंश। 

पर सब फोन-मेमोरी में जुड़ जाते, आजकल कार्ड फोन लगभग हैं फुल 

बड़ी वीडियो फोटो डिलीटिंग से स्पेस बनता, पर शीघ्र वह भी पूरित। 

 

अज्ञात कि युग सचेतन या एक तकनीकी द्वारा बाँटने का मिला अवसर

मुझे लगता है कि अच्छे निपुण तो अपने सार-व्यवसाय में ही रहते रत। 

दूसरों को संचार सुविधा होने से, वह सामग्री हो जाती सुलभता से प्राप्त 

वे परस्पर तो बाँटते रहते हैं, चाहे कोई पढ़े अथवा , पसंद आए या न। 

 

नवयुग में हम सबको एक सा विदुर मान लेते, जैसे जो बाँटा समझेगा सब 

कई सुमति तो ग्रुपों में ही शामिल होते, कहते अधिक समय होगा व्यर्थ। 

टेक्सट संवाद तो ठीक, पढ़ लेते पर ध्वनि-वीडियो मेमोरी स्पेस लेते काफी 

डाटा ट्रांसफर-गति बढ़ी है, 4G तो पूर्व-प्रचलित, 5G भी शीघ्र आने वाली। 

 

स्मार्ट फोनों में स्मृति स्पेस बढ़ा, 128 GB या पर अधिक पात्रता के रहें  

ऊपर से कार्ड भी लगा सकते हो, पर कुछ भी हो वह भी धीरे- भर जाता। 

प्रतिदिन कर्म डिलीट करो, देखो-पढ़ो चाहे तथापि काम में रहता फोन 

हल्का होने की जरूरत, जो आवश्यक ही रखो और पचाने की ताकत हो। 

 

पुराकाल में लोग विद्वान होते थे, चाहे अल्प ही उचित ज्ञान का यत्न करते थे 

मनन-ध्यान-समाधिस्थ नित्य कर्म थे, स्वयं को खँगालने की कोशिश करते।  

बाह्य-कोलाहलों से दूर मन साधना, उवाच वही जो स्वयं को जँचता उपयुक्त

गौण वचन ही, मौन व्रत धारण करते थे, ताकि आत्मा से हो सकें समन्वित। 

 

आज एक व्रत सोशल मीडिया से दूर रहने का भी चाहिए 1-2 दिन या अधिक

जितना अधिक अपकर्षणों से हटोगे, एक आत्म-अन्वेषण ओर होंगे आमुख। 

निज-निकटता जरूरी, एक कोर ग्रुप बनाऐं, सुख-दुःख बाँटें, लाभ लें सामग्री 

पर अनावश्यक संपर्क चाहिएहिंसा से दूरी, अतः ऊर्जाऐं समेटो अपनी। 

 

स्व-हस्त कृति ही पूंजी, देख-समझ कुछ विशेषज्ञता हो सके तो बहु सुभीता 

मौलिक छवि से लोग आदर करेंगे, मात्र बाँटन अपेक्षा प्रयास हो सर्जन का। 

 

पवन कुमार,

१६ नवंबर, २०२१ मंगलवासर, समय :४१ बजे प्रातः 

(मेरी डायरी 22 अप्रैल, २०२० बुधवार समय :०९ बजे प्रातः )