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Wednesday, 26 January 2022

मार्ग प्रशस्ति

 मार्ग प्रशस्ति

एक चिंतक सी बुद्धिआत्म से प्रज्ञा-उदय का यत्नएक कवि का हृदय

पूर्ण ब्रह्मांड-मननसर्वप्राणी हित की बातअपने क्षुद्र स्वार्थों से बाहर। 

 

भावी लेखन-मनन का स्वरूप तो नितांत अज्ञातचेष्टा है सर्वोत्कृष्ट की पर

अद्यतन तो अंधकार में कुछ उल-जुलूल लिखा जा रहाउसी में हूँ व्यस्त। 

पर संतुष्टि तो कुछ श्लाघ्य करने से ही मिलेगीयही मेरे मन का है संवाद

जिंदगी में बहु आयामकौन से स्पर्श होंगेयह मात्र भविष्य को ही ज्ञात। 

 

जैसे बड़े पुस्तकालय प्रवेशबहु-विषयों पर विशारदों द्वारा सुकृत अनेक पोथीं 

हर ग्रंथ पर विश्रुतों ने पूर्ण जीवन लगा दियाएक सिद्धांत-अन्वेषण में वर्षों लीन। 

जब नर में कुछ पूरित होता तो छलकने भी लगताकुछ काव्य-लेख बन जाता  

अंतः-रिक्त तो कथन-अशक्यपर कदाचित उसे शिकायत-लहजे में कह देता। 

 

प्रायः मैं अपढ़ा साबड़े धीमान-कार्य देखकर विस्मृत, पर हूँक सी कुछ लूँ पढ़ 

यहाँ तो सर्वस्व ही नवीन-अदर्शित है, जो भी पढ़ लिया वही पूँजी जाती है बन। 

कुछ श्रम कर बुद्धि पर जोर देकर समझावह भी पूर्ण का मात्र एक लघु अंश 

माना संतुष्टि मात्र भी नहीं हैपर इससे मार्ग प्रशस्ति अन्य आयामों हेतु महद। 

 

लेकिन विषय अनेकानेक हैंयदि शीर्षक भी लिखूँ तो भी सारी उम्र में  संभव 

प्रत्येक पोथी में कई अध्यायअपने में विपुल-अनूठे, काफी ज्ञान-अनुभव संग। 

मेरी समस्याऐं कईअल्प भाषा-ज्ञान हीमाना आजकल कुछ अनुवाद उपलब्ध 

अमुक लिपियों-सभ्यताओं का प्रथम ज्ञान ही पारंगतता तो दूर तक  लक्षित। 

 

पर जिज्ञासा सीसुधीजनों के चरण-समीप बैठूँशायद ककहरे समझा दे कुछ 

हाँ वह भी निज लघुता कारण अल्प ही समझतापर जितना लब्ध उतना उत्तम। 

एक गुरु-सेवा में ही लोगों की उम्र बीत जातीछोटे समाधानार्थ भी वहीं टकटकी 

   सीमित कालकितना सीखूँगा विचारणीय प्रश्नपर रोध  हो चाहता अनेक छूनी। 

 

निस्संदेह सामान्य से अधिक कर्म होंतत्परता करोमन-देह अनुरूप यत्न करना पड़ेगा 

कोई कूप पास  लाएगाप्यासे हो तो उठोढूँढ़ो, बाल्टी-रस्सी उठा खींचोजल मिलेगा। 

कुछ भी मुफ्त हर चीज की कीमत चुकानी होगीयथाशीघ्र समझ लो उतना ही लाभ 

पर निज मूल्य भी तुम्हें जानना चाहिएबहुत कुछ कर सकते होइच्छा तो करो जाहिर। 

 

ठीक है जग में अधिक जबरदस्ती ना कर सकते, पर अपनी अपेक्षाऐं तो बता सकते 

जब स्वयं गंभीर तो अन्य भी वैसे ही देखेंगे, देह बली तो अन्य अनावश्यक भिड़ेगा। 

सारी जग-कवायदें योग्य बनाने कीकई श्रेणियाँ शून्य-मूढ़ से लेकर चरमोत्कर्ष तक 

यह निज पर निर्भर किस स्थिति पहुँचना चाहते, कितना साहस झेलने का पथ-कष्ट। 

 

समस्या बहुतर ज्ञान-सोपान स्पर्श की, मेहनत करूँयोग्यों के पैर दबा लो 

सर्व मूढ़ता-अविवेक जलाओजो शेष रहे वह निर्मल-कल्याण स्वरूप हो। 

कुछों ने भ्रम फैलाया चर्चा ही हो, चुपके से काम करो लोभ पूर्ति होती रहे 

अशिक्षित-अयोग्य रखना कुछ शासक चाहते, कोई प्रश्न करे, जयकारे लगें। 

 

जरूरी कि जिसे गुरु मानते हो, वह इतनी सरलता से सब कुछ दे सिखा

पर सत्य कि वह चाहे तुमसे तो कुशल हो, परम की सूची में हो सकता। 

नियति अनुरूप ही शिक्षक मिलते, जैसे केजी, प्राथमिक, मध्य, माध्यमिक, स्नातक 

फिर स्नातकोत्तर, MPhil, PhD आदि उपाधियाँसिखाने-पढ़ाने वाले गाइड पृथक। 

 

पूर्ण जीवन ही विद्यार्थी काल, स्तर बदलते, भूत-आवश्यकताऐं बदल लेती नवरूप 

पर स्वयं सदा अधूरा ही, उपाय से थोड़ा प्राप्त भी लेते, तो भी स्वयं में है अपर्याप्त। 

पर भूख तो सदा वर्धित, यह बिन पेंदे का कुआँ कभी भरेगा ही , खाली ही रहता 

होना भी चाहिए क्योंकि तभी क्षुद्रता-ज्ञान होता, और प्राप्त कर सकते हो कितना। 

 

पर सुफल भी तो प्रदर्शित हों, योग्यता से प्राप्त आयामों को लगाना जनहित 

पर जीवन अपेक्षाओं पर ही चलता रहता, अज्ञान-श्रृंखलाऐं टूटती रहती सब। 

हमें निश्चितेव लोगों के भले काम आना चाहिए, उत्पादकता कर्मों से आएगी 

अंततः जीवन-लक्ष्य भी लोकहितार्थ एक रज बनना ही, अन्य तो मध्य-कड़ी। 

 

तो जितना यत्न हो सके पूरा करोजितने भी ज्ञानकण उठा सकते, उठाओ 

मन-सुस्ती तो नितांत भी रखो, अपनी तरफ से पूर्ण झोंकने का यत्न करो। 

यह शतरंज-खेल हार-जीत स्वीकारनी होगी, एक व्यवहारिक दृष्टिकोण संग  

पथ अवश्य मिलेगा, योग्यतानुसार गंतव्य होगा, अडिगता से सफलता लब्ध। 

  

पवन कुमार,

२६ जनवरी, २०२२ बुधवार, १९:०५ बजे सायं 

(मेरी डायरी दिनांक १८ अप्रैल, २०२१ रविवार समय १०:४२ बजे प्रातः से)  

 


Sunday, 16 January 2022

पुनर्रचना

 पुनर्रचना 

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मन ऊँचा करो साधो ! क्यों सदा फँसे रहते बीत गई बातों में ही  

वर्तमान आगामी पर ध्यान दो, कुछ निखरना तो संभव उनमें ही। 

 

क्यों मन का दायरा बढ़ाते हो, चरम मनुज-पराकाष्टा पहचानो एक 

यूँ ही दोयम रह सकते, अपनी बेड़ियाँ काटो, राहें दिखेंगी अनेक। 

क्यों पूर्वाग्रहों के चक्कर में ही पड़ते हो, जो हो चुका बीत गया है वह 

सभी ने बहु कष्ट सहे हैं, निज यातनाओं को ही याद रखोगे कब तक। 

 

माना अतीत अत्यंत विस्मृत है, कुरूप भी, चेतना की आँच अस्पष्ट सी 

कुछ नायक स्मृति-पटल से हटें, लिखित इतिहास तो पढ़ सको कि। 

नित्य कुछ जुल्म अब भी घटित दिखते, नर इतिहास से जोड़ लेते जल्द ही 

प्रयास तो वृहद समाज निज स्तर पर हों, समरसता उन्नति से ही आएगी। 

 

अनेक लोग उन्नति कर बड़े आगे बढ़ रहें, क्यों मात्र पुरातन का ही रुदन 

मत सोचो कि भूत या वर्तमान में क्या हो, अपितु कहाँ तक सकते पहुँच। 

लोगों ने कुटुंब-गाँव-राज्यों-देशों की काया पलट दी, बना दिया विकसित 

आदि मानव से आजतक का सफ़र, सभ्यता-विकास दीर्घकाल ही संभव। 

 

प्रत्येक विषय एक विकास -प्रक्रिया, उन महीन आयामों को समझो तो सही 

निज को बलात अपढ़ रखना फिर विद्वता-आशा भी, एक अति विरोधाभास ही। 

निज को तत्पर तो करो बहु दायित्वों हेतु, कोई मानता परिश्रम करना पड़ता 

विश्व एक प्रतियोगिता अभ्यर्थी तो बनो, जय-पराजय का खेल बाद में शुरू होता। 

 

क्यों मूढ़वत हिंसा में विश्वास करते, निज ऊर्जा सहेज विकासार्थ करो प्रयोग 

तुम्हें बड़ी परियोजना में शामिल होना होगा, निज मन की मनवा सकोगे तब। 

सब दबे-कुचले-निर्धन समाज भी दिवस-कांति देखें, सूरज बड़ी आशाऐं देता  

मन को कभी मायूस होने देना, माना कुछ प्रपंच भी हैं पर ठीक हो जाएगा। 

 

वृहद-दर्शन करो निज को कभी निम्न समझो, सार्थक संवाद करना सीखें  

जानें तर्क-विमत पथ भी, मंडेला, किंग लूथर, ओबामा, अंबेडकर, गांधी से। 

महानता कदापि लड़ाई से आती, तुम कुतिया के पिल्लों सम लड़ना छोड़ो 

निज अल्प ऊर्जा का उचित-पर्याप्त प्रयोग हो, मौन उन्नति-क्रांति भी श्रेयस ही। 

 

देखो इस जीवन में अनेकानेक विरोधाभास हैं, शुरू करो जग का सम्यक दर्शन 

कुछ दुर्जन विभाजन चाहते कि समन्वय हो, अकेले से निपटना शीघ्र संभव। 

लोभ-स्वार्थ सर्वव्यापक हैं मैं नकारता, अपुण्य-मंशा भी कुछ जगत-नरों की 

पर आत्म सुरक्षा उपाय ज्ञान भी चाहिए, क्यों बलि-भेंट बनते हो बकरी भाँति?

 

तुम शीघ्र मौनरत उन्नत हो इतना निपुण बनो, कि एक जरूरत अनुभूत हो 

क्यों नित्य अकुशल बने रहते हो, जल्दी से निपुण कर्मी में परिवर्तित होवों। 

संसार में कई उत्तम व्यवसाय भी तो हैं, निज हेतु भी खोलो उनके प्रवेश द्वार 

गहन श्रम-संघर्ष-ज्ञान-धैर्य शासन का संग, कई व्याधियों का है उपचार। 

 

तुम्हारे नायकों संग पूर्व वर्तमान में भी, कहीं- हुआ देखा जाता अत्याचार 

पर तुम सबसे घृणा-डाह-भय  कर सकते, उचित शैली से रखो तो संवाद। 

विश्व में सब बुरे सक्षम सहायता भी करते, पर सहज विश्वास कैसे पनपे 

संवेदनशील संग लेना सीखो, निकट सहायता करो, राह खुलेगी निश्चितेव। 

 

थोड़ा ध्यान से तुम देखो कैसे नर ने भाग्य पलटें, क्या कारण तुम उबरते 

कुछ विभव तो तुम तक भी आया, पर विकास-गति बढ़ाओ, शांत बैठें। 

अनेक बाधाऐं वीथि में आऐंगी, पर विषम परिस्थितियाँ भी रहती सदैव  

वीर सब कालों में निज राह बना लेते, छुपकर डर से बैठ जाना पौरुष न। 

 

शासन पर सब के दबाव, माना कुछ अधिकारी पूर्वाग्रह-ग्रसित भी संभव 

पर कई धाराऐं जग में सदा बहती रहती, तुम उचित अनुरूप का लो संग। 

संवेदनशील तो होना पड़ेगा, जबतक स्वयं ही संभलोगे तो कौन देगा संग 

खुद को एक नृपवत मानो, बुद्धि-पटल विकसित करो, निर्णय लोगे सम्यक। 

 

विश्व एक विपुल मानव-संघात, निज घावों से पीड़ित, तुम्हारी परवाह क्या 

लेकिन ध्यान करना जानते हो, तो निज संग उनकी भी कर सकते सेवा। 

स्व दृष्टिकोण उच्च बुद्ध सम मानवपरक रखो, सब हम जैसे हैं, सीख लो 

बस जहाँ हो काम भली से करो, कई दरवाजे बंद हैं साहस से खोल लो। 

 

आओ मनुजता के विशाल पुञ्ज, अपने को ललकारो, क्षीणताऐं करो अल्प 

महान खोजें-अविष्कार, सभ्यता, दर्शन-मनोविज्ञान, उन्नति प्रतीक्षा रही कर। 

 


पवन कुमार,

१६ जनवरी, २०२२ रविवार, समय १७:४३ बजे सायं 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी २९ अगस्त, २०१८, बुधवार समय :१४ बजे प्रातः से)