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Sunday, 1 October 2023

खोजी प्रवृत्ति

खोजी प्रवृत्ति

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एक मिश्रित ध्वनि सा है यह जीवन, जहाँ गूँज है चहुँ ओर से 

मानव मन एकांत चाहता, पर बाह्य कारक प्रभाव हैं डालते। 

 

एक गाथा मैं लिखना चाहता हूँ, जो एक बिंदु पर केंद्रित हो 

पर धमकते इतर-तितर से अवयव, उपस्थिति जताते हैं जो। 

कैसे हम चले एक पथ पर ही, जब वह भी तो सीधा नहीं है 

कितनी ही भूलभुलैया, चतुष्पथ, मोड़  भ्रामक दिशाऐं हैं। 

 

मानव तो बस एक शिशु ही है, और अँधेरे में तीर है चलाता 

उसे तो पता नहीं जाना कहाँ, यूँ उद्विग्न सा चेष्टा किया करता। 

उद्वेलित तो है कुछ अनुमानने में दक्ष भी, पर गहन अँधियारा

'आगे कुआँ पीछे खाई' सी स्थिति में, अपना समय है बिताता। 

 

बहुत भविष्य तो अज्ञात, हाँ अन्य देख निज को सकते समझ 

सब निकृष्ट-आम-स्तुत्य यहाँ आऐं, उनके आयाम जग समक्ष। 

सब स्व प्रकार से समय बिताते, कृत्यों के अनुसार मिला फल 

माना कुछ में एकरूपता, निजी अनुभव तो स्व के ही हैं पर। 

 

माना कुछ शाश्वत-सत्य यथा जन्म, मृत्यु और मध्यम अवस्थाऐं 

मानव  अन्य जीव उनसे गुजरते, सब अभिमान धरे रह जाते। 

पर एक विशेष नर-मन में क्या चल रहा, कैसे महसूस करे दूजा 

  आगणन भले ही लगा ले, सकल युद्ध तो स्वयमेव झेलना पड़ता।  

 

तुम यहाँ बैठे कुछ करते, तेरा लेखा-जोखा कोई और रहा लिख 

कितने ही कारक नज़र गड़ाए, सतत तुम्हें देख रहे हैं एकटक। 

कब फिसले तो रगड़े कुछ मंशा, कुछ प्रयास भी सराहते माना 

अनेक उदासीन भी, यह तव प्राण जैसे चाहो व्यतीत करो वैसा। 

 

कुछ नियम बन गए प्रकृति में, 'जीओ और जीने दो' के स्वार्थ में 

मुझे कुछ व्यवस्थित होना पड़ेगा, निर्वाह करना जिम्मेवारी से। 

मुझे भी आवश्यकता औरों की, मैं स्वतंत्र नहीं कवायद में सब 

और बंधन यूँ चिपक जाते, नर बेड़ियों में केंद्रित हो जाता बस। 

 

माना ये आचरण- पक्ष, पर मन भी तो इस हेतु है प्रशिक्षित 

सत्यतः कुछ भिन्नता, उसने भी एक सोच-ढ़र्रा बना लिया पर। 

यहाँ कमतर उसकी क्षमता, जबकि बुद्धि सक्षम बहु चमत्कार 

निकलना होगा उसे पूर्वाग्रहों से, तभी तो होगा उच्च विकास। 

 

वही खोजी प्रवृत्ति हमें उपलब्ध से, अग्रवर्धन को करती प्रेरित 

हम विवेक से शक्यता अन्वेषते, कुछ पर कार्य शुरू देते कर। 

यह एकीकरण स्वयं का कूर्म भाँति, अपने को सिकोड़ है लेना 

नहीं हो ऊर्जा-अपव्यय, वही आयाम तो विकास-पथ खोलता। 

 

गूँजें तो अभी तक बहुत सुन ली, अब है काल शांतचित्त होने का 

बहु-अवस्था भ्रामक सा रहा, अब कुछ वयस्क होने की अवस्था। 

जगत तो सदैव अपने प्रभावों को तो, यूँ प्रक्षेपित ही करता रहेगा 

किंतु अपने कवच बद्धकरकर लो कुछ वचन अविचलन का। 

 

इसी मन-संसार पर निर्भर है, मेरा बाह्य और आंतरिक आचरण 

जप-तप करो निज को योग्य बनाओ, ऊर्जा का करो संचार नव। 

 जब भी समय लब्ध स्वयं में खो जाओ, स्वयं-सिद्धा सम करो कर्म 

जग में रहते भी जग से निर्मोही सा, कुछ करो असाधारण चिंतन। 

 

कुछ कर्ण व्यवस्थित, लघु-विश्व अनुकूलन, निज प्रति बनो अवक्र 

जगत को मत दो होने हावी, अपने कर्त्तव्यों में करो प्रमाद पर। 

उठाओ लेखनी, उकेरो कुछ बेहतर, वाणी का करो उपयोग मधुर 

आवश्यकता बात समझाने की, बल-प्रतिभा करो आत्म-विकसित। 

 

 

पवन कुमार, 

अक्टूबर, २०२३, रविवार, समय ११:२६ बजे रात्रि 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी २७ नवंबर, २०१४ गुरुवार, समय :२० बजे प्रातः)


Sunday, 10 September 2023

दिवस-तैयारी

दिवस-तैयारी


चलो आओ, हम इन भोर के कुछ सुपलों का सत्संग ले लें 

आज अपनी दिवस यात्रा से पूर्व तैयारी का ही सबक ले लें। 


अरुणोदय तो कुछ समय बाद ही, पूर्व दिशा से होगा दर्शित 

अभी उषाकाल में चंद्र कटार जैसा, सर के ऊपर रहा दिख। 

सितारें तो शनै-२ एक-२ करके, नभ से ओझल से हो रहे हैं 

भानु का प्रकाश जैसे सबको, अपने आगोश में ही लेगा ले। 


निशा में शशांक माना हर रोज नहीं,  रात्रि का ईश है तो भी 

चांदी सी अनुपम चाँदनी बिखेरता, जी स्वयं में है अमूल्य ही। 

बहुत नर, जीव-जंतु हेतु रात्रि बनती गतिमय व जीवन-स्पंदन 

जीवन-विकास में सहायक, प्राकृतिक उपहार है देता अनेक। 


सूर्य तो हमारा नक्षत्र है, व हम जीवित इसकी कांति-ऊष्मा से 

सारे विकास-चक्र की यह धूरी, और पृथ्वी के लिए वरदान है। 

दिवस-स्वामी तो है ही, चन्द्रमा भी प्रकाश से चमकता इसके 

अनंत उपकार हैं इसके हमारे ऊपर, जो हम द्वारा अदेय हैं। 


अनेक प्राकृतिक उपहारों से ही, हम अब तक विकसित हुए 

निश्चतेव निज अग्रजों का ही संग, जीवन को समृद्ध किए हैं। 

माना एक आदान-प्रदान से भी, हमारा पथ तो सुगम बनता 

पर महानर दान में श्रद्धा रखते, क्योंकि उनका भंडार भरा। 


सत्यमेव हमारा कर्त्तव्य है, हम भी बनें हृदय-स्वामी विशाल 

एक-दूजे हेतु जितना संभव, पूरे यत्न से करें जगत-कल्याण। 

बनाए सब लोगों को पूर्ण सक्षम हम, ताकि वसुधा-क्षमता बढ़े 

तत्पर रहें अपने कर्त्तव्यों हेतु, व निर्वाह में कोई प्रमाद न रखे।


आओ हम सब प्रत्येक समक्ष क्षण का भरपूर उपयोग कर लें 

जितना अधिकतम संभव, उसमे कोई कसर नहीं बाकी रखें। 


पवन कुमार,

१० सितंबर, २०२३ रविवार, समय २३:१५ रात्रि   

(मेरी डायरी १७ नवंबर, २०१४ सोमवार, समय ६:१५ बजे प्रातः)

Monday, 28 August 2023

जीवन - परियोजना

जीवन - परियोजना

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कुछ व्यवस्थित-अनुशासित व केंद्रित हो, बिखरी वस्तुऐं करो संग्रहित 

मनुज-जीवन अति लघु, कर्म अधिक, लापरवाही हेतु कोई नहीं समय। 


निज बिखरी-छितरी ऊर्जाओं को वश में करें, और कुछ क्षमता जोड़े 

अति बड़ी परियोजना जीवन, आधुनिक प्रबंधन-आयाम स्थापित करें। 

यहाँ प्रत्येक ईंट दुरस्त करना, उचित संरचना में भली प्रकार से लगें 

गुणवत्ता जाँचे-परखे, ताकि वह न्यूनतम आयु सुचारु रूप से जी ले। 


सुसज्जितकरण-कारीगरी, भवन-निर्माण का हुनर, सीखो आयाम भिन्न 

जीवन चले तो एक रथ भाँति, उसका स्वास्थ्य-गति बढ़ानी होगी फिर। 

इसके अश्वारोही हों साहसी, सुयोग्य-प्रशिक्षित, मार्ग-बाधाओं से न डरें 

निर्भय मन-स्वामी इसका हो सारथी, एक सुनर भाँति चहुँ-दिशा विचरें। 


तुम स्व-कृत्यों को तब लिपिबद्ध करो, व वाँछित सामग्री एकत्रित करो 

ढूँढ़ो सकल उपकृत्य समाहित करने, और हर पग को सुनिश्चित करो। 

यदि प्रशिक्षण तुम्हारा है त्रुटिरहित, बाद में परिणाम मनानुरूप होंगे ही 

तुम निज-उन्नति हेतु मार्ग-प्रशस्तिकरण में, अपनी कोई न छोड़ो कमी। 


स्वानुशासन सबसे बड़ा औजार यहाँ, वही तो औरों को भी करता प्रेरित 

दल-सहयोगी बनें सुयोग्य जब, काम के होंगे तो सहायतार्थ आऐंगे स्वयं। 

समय-ऊर्जा-समझ सबमें बाँटनी होगी, महत्तम यथासंभव लाभान्वित हों 

उदार-मृदुल नृप के राज्य में सब सुखी होते, न्याय सभी में तो बाँटना हो।  


कलंदरों सम तू भी बन एक साहसी नर, समस्त मानवता निज की बना 

निज कर्मों पर रख एक नज़र पैनी तब, उत्तर सब तुमको स्वयमेव देना। 



पवन कुमार, 

२८ अगस्त, २०२३ सोमवार, समय ६:४१ बजे सायं 

(महेंद्रगढ़ डायरी ३१ अक्टूबर, २०१४ शुक्रवार, समय ९:३५ बजे प्रातः)