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The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Monday, 18 March 2024

दिशा बदली

दिशा बदली

    

दिशा बदली तो दशा बदलीएक विचार-ढ़ंग बदला तो दुनिया ही बदल गई

पर आश्चर्य यह सब मेरे कारण हुआमैं तो जमाने को दोष दे रहा था वैसे ही।

 

सर्वस्व निज कर में हीमैंने उत्तर दिशा से कुर्सी घुमाकर ली दक्षिण-पूर्व कर 

कहते हैं दक्षिण या पूर्व ओर मुख कर मनन करोतो लाभ होगा आश्चर्यकर।

वैसे भी बिस्तर पर लेटताप्रातः जल्द उठ भ्रमण-व्यायाम तो सेहत हुई श्रेष्ठ 

मन जरा सकारात्मक तो सर्वत्र आत्मरूप-दर्शनदूर हो गए वैमनस्य सब।

 

मैंने भोजन-मात्रा में जरा कमी कीउदर से अनावश्यक बोझ कम हो गया 

थोड़ी सी वसा-मात्रा खाने में अल्प की, तो हृदय-स्वास्थ्य प्रफुटित हो चला।

किञ्चित चाय कम पीनी शुरू कीउदर-अम्लता बहुत हद तक हो गई दूर

प्रातः उठ गुनगुना जल पीना शुरू कियापाचन-शोधन सब हो गया दुरस्त।

 

सुबह उठकर मुख धोकर नेत्रों पर लार मलनी चालू कीतो दृष्टि सुधर गई 

अपराह्न-भोजन बाद अल्प-निद्रा चाहे कुछ देर हीअनुपम ताजगी मिलती।

शयन-पूर्व रात को एक गिलास दूध पीना शुरू कियातो स्वास्थ्य सुधर गया

सुबह आवास को बुहारना शुरू कियातो एक स्वस्थ परिवेश का बोध हुआ।

 

चुनींदी कहावत-दोहे-शेर-कविता-गजल लोगों में बाँटीलोग सजदा लगे करने 

कुछ ग्रुपों से जुड़ा समरूचि-मित्रों केबहु ज्ञान-सहयोग-समझ पास लगी होने। 

थोड़ा हँसी-मजाकमुस्कुराना शुरू जो कियालोग खुश होकर पास आने लगे

लोक के हित  मन की क्या बात कह दीतो बड़ी आशा-आदर से देखने लगे।

 

कुछ थोड़ा साहस किया  पदानुरूप झिड़क दी, कार्य-अनुशासन दिखने लगा

समक्ष कार्यों में कुछ अधिक लीन हुआतो मुझमें अधीनस्थ-विश्वास बढ़ गया। 

निज पक्ष कुछ शालीनता से स्पष्ट कह दिए तो अन्य उन्हें सकारात्मक ही लेते 

दूजों को समझने की जरा कोशिश कीसारी दुनिया दिखने लगी एक दर्पण में। 

 

शरीर की कुछ योग-मुद्राऐं बनाई तो उन विशेष अंगों का भी होने लगा व्यायाम

सब संधियाँ तनय होनी चाहिएजिंदगी जीने हेतु स्वस्थ-बली होना आवश्यक।

प्रजाजनों से जरा मधुर-सवांद शुरू कियावे और अधिक सम्मान करने लगे 

पर ढ़ीठ-कर्मियों से कुछ कठोरता कीतो वे भी शनै उचित पथ आने लगे। 

 

जरा सा सार्वजनिक कल्याणार्थ सोचातो एकदम शासन-प्रबंधन बदल गया 

लोगों को सुढंग से परखना शुरू कियाउन्हें निज शैली अनुभव होने लगा। 

किंचित दृढ़ता दिखाई तो सुस्तों में बेचैनी बढ़ीया तो काम करेंगे या भागेंगे

दोनों चीजें निज हाथों में पर दोषारोपण सुधरोगे तो अति लाभ ही होंगे।   

 

सुबह उठकर थोड़ा चिंतन-लेखन शुरू कियावृद्धि हुई बौद्धिक क्षमता में

कुछ महापुरुष-चरित्र अध्ययन, तो थोड़े-2 जुड़कर अनेक पास  गए। 

एक का अन्वेषण-यत्न हुआ, तो अनेक अन्यों से इस बहाने हो गया परिचय

संगी-साथ बढ़ापरस्पर-निष्ठा वर्धितजरूरी तो नहीं सब सदा हों समक्ष।

 

एक पुस्तक-परिचय तो अनेक नाम समक्ष आएधीरे कड़ी सी बनने लगी

एक कदम अग्र बढ़ा तो पथ दिखादृष्टि निर्मल हो दूर तक देखने लगी। 

मनसितार तार झनकायाएक आश्चर्यजनक तरंग सर्वांग में हुई झंकृत

अभी अज्ञात था मैं भी थिरक सकताअपने से परिचय होना हुआ आरंभ।

 

अपनी अनेक शक्तियों से अबतक अनभिज्ञ थाएक दिन देख ली झलक

आश्चर्यजनक रूप से मन-बली बना, आत्म-विश्वास कौशल हुआ वर्धित। 

तन्द्रा में भी खुद से झूझने की कोशिश कीतो नव-विचार उदित होने लगे

समय-सदुपयोग होकुछ घंटे चुराए तो जीवन निर्माणार्थ उपलब्ध हो गए। 

 

संस्था-कारवाईयों में भाग लिया तो खुलती दिखाई दी अनेक रहस्य-परत 

अनेक आयाम-दृष्टिकोण से भिज्ञ हुआमानस-पटल किञ्चित हुआ संपन्न।

विनीत हो वरिष्ठों की बात सुननी शुरू कीतो उनका स्नेह-पात्र गया बन

कुछ देर वज्रासन में बैठासौष्ठव बढ़ादेह सशक्त  पाचन-बल वर्धित।

 

जैसे ही अधीनस्थों प्रति कुछ दयावान हुआवे दिल से सम्मान करने लगे

कथन हृदयस्थ करके पूरी शक्ति लगा, प्रदत्त कार्य-पूर्णता का यत्न करते।

किञ्चित अधिक काम करना शुरू किया, तो वे कायल होकर बिछने लगे

कीर्ति दूर तक पहुँचीहरेक वाँछित कर्म पूरा करने की कोशिश करते। 

 

मुझे असहजता आभास होते हुए भी, यह लेखन-क्रिया आगे बढ़ा हूँ रहा

इसी संहति में से ही कुछ उम्दा निकलेगाआशावादी हूँ सदा कुछ पाया।

माना मैंने बहुत कुछ सोचा इस स्वयं हेतुपरंतु कुछ को तो बिसरा दिया

तथापि ईमानदार-नेक यत्न हूँ करता, आत्म को सदा  सजा दे सकता।

 

माना भविष्य की न कोई सुधहाँ वर्तमान में पूर्ण झोंकने का करता यत्न

पर कुछ योजना तो बना सकतास्पष्ट देखने की पूरी कोशिश है संभव।

कैसे वर्तमान की सुस्ती को भगाऊँआँखों में नींद चढ़ी पर कलम सतत 

यह विचित्र विरोधाभासग्रीवा झुकाताफिर उठाकर हो जाता गतिरत।

 

किंचित यदि निज वित्तीय-प्रबंधन सुधार लिया, तो धनराशि जुड़ने लगी

व्यय के बाद अनिवार्य संचय तो नित लाभप्रदबाद में आएगा काम ही। 

संतान संग बैठ समय लगाना शुरूतो उनकी पढ़ाई ठीक से लगी होने

प्रोत्साहन से उत्साह वर्धन होताउद्देश्य कि वे अधिकतम तरक्की करें।

 

अभी बहु-विषयों पर ध्यान  दे पा रहाफिर अपने से कैसे सुधार होगा

किंतु प्रथम विषय-ज्ञान तो होफिर वाँछित को भी चिन्हित करना होगा। 

अज्ञात कितने आयाम हैं संभवक्या अपनी विषय-वस्तु बढ़ा सकता नहीं

बहु-आयामी ही प्रतिभा-नाम कमातेकुंभकर्ण  उठते नगाड़े सुनकर भी।

 

जरा निर्मोही हुए तो कबीर सम स्पष्ट दृष्टिसमक्ष जग यूँ  गया हथेली पर 

बहु-भाँति के सुवचन वदन से निकलेकौन सरस्वती उनमें करती ही वास। 

पर ऐसा क्या नैसर्गिक होता या नियति-वृत्ति ठीक कर लीराह निकली चल

दुकान खोलो ग्राहक भी  जाऐंगेप्रयास से सकल समाधान होंगे समक्ष। 

 

निज की मिथ्या-मुक्ति हेतु आदि कीअनुपम हल्कापन मन-देह में अनुभूत 

विश्व तो बहुत ऊल-जुलूल से पूरितनिज अग्रताऐं ही करनी होती चिन्हित। 

यह जीवन मेरा इसे सर्वश्रेष्ठ कैसे बनाऊँकुछ गुरुओ से तो लेने होंगे सबक

सारा जोर ढंग-तरीके परउनके प्रयोग करनेतब तो गाड़ी निकलेगी चल।

 

किञ्चित सामान्य से अधिक प्रयास, तो निश्चितेव चरम सफलता ओर गमन  

यह जीवन संवारना तुम्हारी जिम्मेवारी हैजो भी वाँछित ढूँढ़ ही लो उपाय।

'यह जीवन  मिलेगा दुबारा', अतः प्रत्येक पल पूरी तरह से जी जाए लिया 

एक वृहद-जीवंतता प्रतीक्षा करतीजो भी उचित संभव खड़े होलो अपना। 

 

 

पवन कुमार,

१८ मार्च, २०२४, सोमवार, समय ००:२७ बजे म० रात्रि 

(मेरी महेंद्रगढ़ (हरि०) डायरी २० अप्रैल, २०१७, वीरवार, समय :१७ बजे प्रातः से)


Thursday, 14 March 2024

जीवन वरदान

जीवन वरदान



हर दिवस एक नव-अनुभव लेकर आता, इस जीवन पर चढ़ाऐ एक लेप सा 

सब कुछ तो देह-आत्मा सराबोर हो जाते, अनेक संज्ञानों का मिश्रण होता। 


हम जब कोई सरोवर-तल देखते, कई मृदा-परतें एक के ऊपर चढ़ती जाती 

शनै: निचलियों पर अति-भार हो जाता, हाँ खोदे-कुरेदे तो पता चल जाता भी। 

समय संग प्रायः उनमें स्थायी बदलाव आ जाता , दबाव-ताप काम करते निज 

कायांतरण भी नित घटित, एक मामूली कोयला, हीरक में हो जाता परिवर्तित। 


रसायन विज्ञान क्रिया-प्रतिक्रिया है समझाती, परिवर्तनीय या अपरिवर्तनीय कुछ 

जल में लवण घोलो तो अदर्शित, सूख जाने पर उसके रवें दिखने हैं लगते पुन:। 

किंतु आटे की रोटी चूल्हे पर सिंकने के बाद पूर्व-स्वरूप यानि आटे में आती न 

हाँ सुखाकर पीस लो तो किंचित चूर्ण बन सकती है, गुण तो पूर्ववत न रहते पर। 


काठ की हाँडी बार-2 आग पर न चढ़ती, प्रथम बार में ही जलकर हो जाती भस्म 

प्लास्टिक-रबर को एक बार जला दिया, गैस व काला कार्बन ही शेष रहते बस।

गैस तो वायुमंडल में मिल है जाती, कार्बन भी शनै मिट्टी का एक अंग बन जाता

 अतएव सारी वस्तुऐं अन्य स्वरूप लेती रहती, कुछ भी जगत में नहीं है अछूता।


बृहद प्रकृति-प्रक्रिया में पुनरावरण भी, पर अनेक प्रक्रियाओं पश्चात दीर्घावधि में 

अति-विचित्र हैं ये समस्त जग-कवायदें, कुछ अंदाजा लगा लेता नर निरीक्षण से।  

किंतु विशेष वस्तु-स्वरूप में जो स्थायी परिवर्तन हो जाते, उनसे लौटना असंभव 

हाँ वैसी अन्य वस्तुऐं भी अन्य प्रक्रिया से गुजरती होती, किंतु आप मरे जग प्रलय।


तो जीवन भी अतएव एक वस्तु सम, उसके मुख्य दो अवयव, देह व आत्मा-प्राण  

माँ में गर्भाधारण से लेकर मृत्यु पर्यन्त यात्रा अति-दीर्घ, वे नहीं जो पूर्व में थे हम। 

विभिन्न दर्शित अवस्थाओं से गुजरते, कुछ समरूपता कारण उन्हें दिया नाम एक

किंतु जीवन-अवययों में सतत प्रभाव होने से, स्थायी परिवर्तन होते रहते हैं निरत। 


कुछ लचक भी, बीमार होकर कृष होते, स्वस्थ होकर पुनः बल-भार धारण कर लेते 

जैसे डाँट-फटकार का बुरा मानते हुए भी, कुछ देर बाद समझकर सामान्य हो जाते।

पर जो भी हम पर घटित उसका प्रभाव तो स्थायी, चाहे अति-सूक्ष्म मात्रा में ही होता 

शनैः हम इतने दृढ़-ढ़ीठ हो जाते हैं, खुद भी नहीं समझ पाते यह क्या-क्यों हो रहा। 


कुछ ऐसा मेरे या सबके संग हो रहा, पर अन्य-विषय में क्या बोलू, स्वयं को जानता 

हाँ और भी निज भाँति से अनुभव करते होंगे, वे ही जानें उनके मन आँगन में है क्या।

कितना चाहा-अचाहा निज इच्छा से या थोपा गया, बलात भी बहुत कार्य करने पड़ते 

मानव स्वच्छंद तो न अपनी कसरतों में, सब अन्य अपनी भाँति से प्रभाव जमाऐ हुए।


पर मैं क्यूँ कर्कश सा बनता हूँ जाता, कुछ सोच समझ कर कुप्रभावों को करूँ अल्प

हाँ कभी बार गुस्सा आता जो निकट-अव्यवस्था से, बोलना भी हो जाता स्वाभाविक।

पर ऐसा कब होता क्रिया तो करे व प्रतिक्रिया न होवे, यह दुनिया की रिवाज है नहीं 

वृद्ध का बालावस्था-प्रवेश असंभव, कपोत आँखें बंद कर ले तो क्या बिल्ली न आती। 


अब जीवन किसको कहें इसमें तो न अधिक मर्जी, परिस्थितियाँ अपनी भाँति ढ़ालती 

हाँ सिर पर जब पड़ती तो जैसे-तैसे बजाने लगते, स्वतंत्रता तो आत्म-निकट न अति।  

एक कूप मिला, उसी में हाथ-पैर हिला लो, प्रयास करते हो तो कुछ देर रहोगे जीवित

कुछ साथियों से लड़-भिड़ते भी, स्वयं से या अन्य-डर से सब भाँति के भय रहें दिख। 


सबके अपने कूप बस कारक बदल जाते, भिन्न परिस्थितियों से बनते विशेष व्यक्तित्व 

अच्छा-बुरा कुछ मैं यहाँ नहीं विचारता, मेरा विषय वर्तमान में इस मानव का है घड़न। 

किंतु प्रक्रिया समझना तो एक बात, क्या हम स्वयं पर होने वाले प्रभाव सकते हैं आंक

कुछ समझ-बूझ कर सुघड़ शैली बना लें, जिससे विलोम कारकों का कम हो प्रभाव।

 

हाँ किंचित ये धर्म-प्रवचन-संगोष्ठी-तर्क-मनन, नर के कटु-अनुभवों से त्राणार्थ के यत्न 

कितने सफल हो पाते हैं सिलसिले में, हाँ कुछ देर तो जादू को असर रहता अवश्य। 

फिर पुनः हम अपने वास्तविक रूप में आ जाते, वही भला-बुरा सा लगने लगता है

 हाँ जीवन-काल के कुछ भाग निर्मित, कुछ में तो यथासंभव सुकून अनुभव कर लें।  


मुझे भी निश्चय ही एक सुशैली अपनानी चाहिए, व्यर्थ कष्ट नहीं दूँ देह-आत्मा को इस

अपने परिवेश में किञ्चित सकारात्मक परिवर्तन कर लूँ, सुवास हो इर्द-गिर्द भी एक। 

यह जीवन वरदान उत्तम प्रकार से जीने हेतु, फिर न मिलेंगे ये अमूल्य वर्तमान पल  

तो कुछ व्यय करके भी उत्तमता ग्रहण कर लो, अच्छे अनुभव का कोई सानी है न।


तो प्रखरता से विचारो कहाँ सुधार आवश्यक है, ताकि अनुभव भी तथानुरूप लब्ध 

जितना बस में है उतना तो करो, शेष का भी कोई न कोई मिल जाएगा उत्तम हल।



पवन  कुमार,

14 मार्च, 2024 वीरवार, समय 9:28 बजे प्रातः 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० 3 मार्च, 2017 प्रातः 5:07 बजे से )



Sunday, 7 January 2024

चेतन-अवचेतन समन्वय

चेतन-अवचेतन समन्वय

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हाँ जब विपत्ति में तो सर्वोत्तम उपाय का अन्वेषण-यत्न करोगेकुछ बुद्धिमता उत्पन्न होगी 

नर बीच में संतुष्ट भी जब बहु विषय ध्यानाकर्षण-हस्तक्षेप चाहतेजो उसकी जिम्मेवारी। 

 

एक दृष्टांत कि एक युवक दार्शनिक सुकरात के पास प्रज्ञा-लाभार्थ पूछने हेतु गया उपाय 

कहते हैं सुकरात उसे सर-तीर ले गयाउसकी मूर्धा जल में डुबा दीउखड़ने लगी साँस। 

सुकरात ग्रीवा को मुक्त  कर रहेंयुवा हाथ-पैर मार रहासाँस रोक रहा पर है एक सीमा 

अंततः छोड़ासहज हो जवान के प्रश्न पर उत्तर कि विपत्ति-व्यग्रता हल खोज से जन्मेगी धी। 

 

हम अनेक व्यवधानों में पाशित होतेप्रायः कुवृत्तियाँ स्वामिनी बन जाती करती विव्हल 

हम कष्ट में पर हल नहीं खोज पा रहेंया कुवृत्ति-प्रभाव मनोबल से होने लगता प्रबलतर। 

स्वयं को मात्र असहाय मानने लगतेएक सोच बनती कि निर्बल हैं निकासी इस जाल से 

अनेक घर-जानें कुव्यसनों के कारण नष्ट-ढ़हाने लगतेंबहु जग-व्याधिमूल ये कुप्रवृत्तियाँ हैं। 

 

एक योग्य-चिंतक को चेतन-अवचेतन मन के सामंजस्य-समन्वयन का चाहिए प्रयास करना 

आजकल Joseph D. Murphy की पोथी 'The Power of Your Subconscious Mind' पढ़ रहा। 

लेखक अवचेतन मन-तहों की यात्रा कराताकहे कि ढंग से मांगो तो सही, जरूर ही मिलेगा 

वह जिन्न सा सदैव किसी आदेश-प्रतीक्षा मेंयह निज पर निर्भर इससे काम ले पाते कितना। 

 

किञ्चित अवचेतन वाहक है चेतन मन द्वारा निर्मित मंसूबें पूर्ण करने का वे परस्पर-पूरक 

हम सहयात्री सुदृढ़-सुहृद ही चाहते हैंदुःख-सुख में सांझीजब कष्ट में तो दिलासा दे एक। 

मन निश्चितेव व्यस्क-निर्मलसर्वहितैषीआगे-पीछे  ऊँच-नीच समझने वाला चाहिए होना 

निज अपदशा के परिष्कार में हो समर्थविचार-सक्षमसुजन सम समेकित व्यवहार वाला। 

 

सर्व विश्व-निधि अंतर्मन हीबस अचिन्हित होतीउकेरने  खनन-उपाय शक्ति की न्यूनता 

प्रश्न कि कैसे उसको चुनौतीनिर्मल मन ही मित्रकई दुर्धर आयाम-स्थितियों निर्गम चाहिए। 

यावत संभव निज मृदुलतम छवि-कल्पना  उस हेतु प्रयत्न  हैबहु सफलता नहीं अपेक्षित 

आओ-निकलोयुक्ति-बल योजन करोसक्षमों से यथेष्ट सहायता लें महत्तम लाभ सुनिश्चित।  

 

आज दिवस एक पुरातन-निरंतरता में सूर्य मानिंद ही नवोदय हैऔर मुझे दैदीप्यमान होना 

उस सम ही सदैव एक काल पृथक भूभागों पर पूर्ण शक्ति लगाअनुरूप प्रभावित करता।  

अतः आगे बढ़कर स्व सकल सामर्थ्य-बुद्धिइस विश्व-निखरण के सुयज्ञ में देनी चाहिए लगा 

अनेकों को ज्ञान-व्यवसाय दानउन्हें सुप्रयास-आवश्यकता हैपुनः मन प्रबल करें एकदा। 

 

 

पवन कुमार, 

जनवरी, २०२४, दिन रविवार, समय : बजे सायं काल

(मेरी ब्रह्मपुर, ओडिशा, डायरी दि० २२ दिसंबर, २०२३ दिन शुक्रवार, समय :३६ प्रातः काल)  

Friday, 3 November 2023

दीप्ति - दर्शन

दीप्ति - दर्शन 


किसी भी लघु-विराट कार्य प्रारंभ से पूर्व, नर को प्रथम कुछ सहज होना चाहिए  

उद्विग्नता से तो न अति भला, मात्र ऊर्जा अपक्षय ही, जबकि अनेक कार्य करने।  


नाम जीवन मात्र इसकी यापन-कला सीखने का, सदा यह-वह लगी रहती चिंता 

यदि कुछ सहज मनन कैसे क्या कुछ किया संभव, और सुलझें उलझी गुत्थियाँ।

किंचित दीप्ति-दर्शन भी, भिन्न विकल्प मनोदित, कुछ समाधान है जाता अटक 

सब आयाम ढ़कने से ही बात पूरी बनती, एक-२ करके अनेक काम जाते बन। 


स्वयं बहु आयामों से गुजरा, नित्य कर्म-अपेक्षाऐं समक्ष ही, हौले से भी निबटना 

माना कुछ अनुभव किंतु कैसे बहु-प्रयोग करते एक व्यापक लाभ सोच सकता। 

सब अपेक्षाऐं तो पूर्ण न शक्य, पर मन-वचन-कर्म से कुछ असहाय-मदद संभव  

अन्य-निर्भरता उद्देश्य न, व्यापक हितार्थ योग्य, शासन-सम्मत बनाना आवश्यक। 


अब नित्येव कुछ अन्वेषणा, अंततः योग्यता-मान करते तुम्हें किया पदासीन उच्च 

सफल परियोजना-निष्पादन दायित्व, संगियों को दिशा-निर्देश दिए जाने उचित। 

सकल कवायदें आत्म-प्रबंधन से शुरू, तब संबंधितों को कथन-झझकोरना-प्रेरणा 

स्पष्ट अनुभव कि बड़े जग-खेल में, स्व वक्ष के ऊपर से ही गुजरती बहु विफलता। 


इस खेल में तुम लघु-क्रीड़क, किंतु तव गति से ही पश्चग-कारवाँ बढ़ता आगे शायद 

अहम भूमिका मौका मिला, दृष्टि तुमपर, प्रधानाध्यापक सम दंड चलाने से का रोल। 

एक सेना सी में हो बाहर घोर समर है, किंचित तंद्रा का अर्थ बहुत बड़ा सा जोख़िम 

   अब सेनापति हो तो सब रण-कौशल, युक्ति-प्रबंधन सुनिश्चितता दायित्व, व निर्वहन।  


बहु पुस्तकें मनन-पठन कि जन सफल परियोजना-निष्पादन में सहायता करते बड़ी 

योग्यतानुसार ही कार्य लब्ध, अब आ गए तो समक्ष का समन्वय-कर्त्तव्य भी निज ही। 

माना स्वयं भी एक शृंखला में अन्य-निर्भर, कोई बड़ा संबल भी ढूँढ़ना पड़ता तथापि 

छुपने से तो कोई हल न, समस्या से सीधा भिड़ना होता, यथाशीघ्र हो समाधान भी। 


अब नव-स्थल के इस नवगृह-निवास शुरू, रहने-खाने-सोने हेतु बनाना पड़ेगा अनुरूप 

स्वच्छता-उपाय, नाश्ता-चाय आदि का प्रबंधन, ताकि देह-मन का स्वास्थ्य रहे उचित। 

विषय पूर्व स्वयं समझने पड़ते तभी दूजों से बात कर सकते, यह सब माँगे ऊर्जा-समय 

कोई भी बहाना न चले, फिर एक जगह स्थिर सा हो पूर्णबल संग उसे बना देना सफल। 



पवन कुमार, 

३ नवंबर, २०२३ शुक्रवार समय ११:२६ बजे रात्रि 

(मेरी ब्रह्मपुर डायरी दि० २८ जून, २०२३ समय ८:२६ बजे प्रातः)