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The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Sunday, 5 June 2022

देश-दशा परिवर्तन

देश-दशा परिवर्तन 

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सचमुच यह भारत देश-समाज प्रगति माँगता, बातें कम व कर्म पर हो ध्यान अधिक 

इसे विकसित बनने हेतु समग्र प्रयास चाहिए, यदि उत्साह तो संग चलेगा भी विश्व। 


दुनिया में अनेक सफल उदाहरण हैं, 

कुछ १०० वर्ष पूर्व सिंगापुर समुद्री डाकूओं से भरा एक बैक-वाटर कुख्यात सा टापू था

प्रधानमंत्री ली क्वान ने १९५९ में देश की कमान थामी, 1990 तक कायाकल्प कर दिया। 

माना यह एक नगर राष्ट्र है, जहाँ बड़े देशों की अपेक्षा विकास करना है अधिक संभव 

पर विज्ञान-तकनीक क्षेत्रों में इसने महत्वपूर्ण काम किया, स्वयं को बनाया विकसित। 


निश्चित ही एक बड़ी जनसंख्या को योग्य बनाने की देश के योग्य नेताओं का दायित्व 

वे अपने समाज-देश हेतु एक निर्मल स्वप्न देखते, जी-जान लगा पूरा करने का यत्न। 

कलात्मकता है एक प्रमुख विधा, प्रतिबद्ध तंद्रा त्याग कार्यरत तो दर्शित सुपरिणाम 

जब राष्ट्र-उत्पादकता वृद्धि तो समृद्धि स्वतः ही, पर मात्रा संग गुणवत्ता भी प्रधान। 


दूजे महायुद्ध बाद जर्मनी-जापान थे भुखमरी-कगार पर, एक दशक में कायाकल्पन 

आज जापान  एक सफलतम राष्ट्र, यद्यपि प्राकृतिक सुनामी-भूकंपों से नित बाधित। 

किंतु गुणवत्ता पर अचूक ध्यान, हर जीवन-गतिविधि पर नागरिक देश प्रति समर्पित 

विज्ञान-तकनीकों संग उत्तम-निर्माणों पर बलनिज उत्पादों हेतु बनाया एक स्थल। 


जर्मनी तो भारी मशीनरी-निर्माण में अति प्रगतिशील, सारी दुनिया में उत्पाद निर्यात

बेल्जियम-बायोतकनीक अति उत्कृष्ट श्रेणी की, नागरिक राष्ट्र-नाम न करते धूमिल। 

चीन ने गत 500 वर्ष की निर्धनता हटाई है, ८-१० % की दर से अर्थव्यवस्था रही बढ़ 

गाँवों का शहरों में प्रभावी पुनर्निर्माण, शीघ्र ही विकसित राष्ट्रों में होगा सम्मिलित। 


निकट सफल संस्थाओं को भी देखोकार्य-उत्पादकता में गर्व संग लाती उत्कृष्टता 

उनके कर्मी पूर्ण प्रतिबद्ध, समय का गुणवत्ता से प्रयोग, श्रेष्ठजनों की सुनते सलाह। 

सचमुच वरिष्ठतम को अति संयमित-कर्मठ-प्रेरक बनकर सुसमाधान चाहिए करना

अवर भी वैसा करते अनुसरण, चाहे मितभाषी हो पर आचरण का प्रभाव पड़ता। 


अमेरिका तो विकसित है, माना उसके विद्यार्थी विज्ञान-गणित में न उत्कृष्ट अति 

पर चीन-ताइवान-भारत आदि से कार्य-क्षेत्रों हेतु वह लेता सेवाऐं प्रतिभावानों की। 

देशों का सुभविष्य है विज्ञान-तकनीक में, मात्र नकल न कर मूल-अन्वेषण श्रेयस 

जितनी अधिक श्रम है, उतना ही रंग, देश-दशा सुधारने का जिम्मा तुम्हारा भी। 


देश-दुनिया अति-प्रगतिरत, पर कुछ समाज अब भी लोगों को रखना चाहते मद्धम 

पर भूख-अशिक्षा से मुक्ति से ही उन्नति संभव, कुछों की समृद्धि नितांत विकास न। 

बड़े नेता-प्रशासन कर्त्तव्य कि मात्र अल्पों ही न तरक्की, बल्कि सर्वजन  हो चिंतन 

श्लाघ्य तो स्वार्थ त्याग जनसेवा में ही रत, नाम संभवतया धन से अधिक महत्त्वपूर्ण। 


एक लघु संस्था की इकाई-प्रमुख रूप में, वरिष्ठ व अन्यों से मिल करना होता कर्म 

यहाँ महत्तम है बड़ी अपेक्षा कि स्वयं से ही अति माँग कर सुपरिणाम करूँ प्रस्तुत। 

मात्र भावुक न रह आयामों पर होवे काम, व्याप्त सुस्ती-उपेक्षा-छद्मता हो नगण्य 

माना कथन से लोगों को पीड़ा, किंतु लोकप्रियता-खेल न कि उल्ट-पुल्ट हो सहन। 


मुझे ऊर्जा-संचयन करना आना चाहिए, शीघ्र मोबाईल देखने की प्रवृत्ति हो कम  

कुछ क्षणों में अति कुछ न बदल जाएगा, संयम से हस्त-कार्य पर हो ध्यान विपुल। 

ऐसा प्रतीत कि कुछ अवर बस आनंद लेते, शरीर-मन पर न देना पड़े अधिक कष्ट 

पर यह सिलसिला नितांत हेय, सहज पर प्रभावी ढंग से विकासार्थ करो प्रबंधन। 


माना विश्व सच में है अति विचित्र-जटिल, पर योग्य निज प्रयासों से करते सरल 

महत्त्वपूर्ण है कार्यों को उत्कृष्ट स्वरूप देना, जुड़े हुओं को करना अंतःप्रेरित। 

एक कटु सत्य है, कुप्रवृत्तिरत तो मलिन-निकृष्ट तंत्रों का न चाहते नितांत सुधार 

लघु सर्वहित- बात भी लोभों पर कुठारघात सी है, अतः मात्र चाहते अटकाना। 


मैंने भी इस भारत-धरा पर जन्म लिया, एक कुल-समाज विशेष में हुई परवरिश 

इस प्रति है पूर्ण प्रतिबद्धता, नव विकास-सोपान चढ़ाने हेतु पूर्ण होवूँ प्रयासरत।  

पर विडंबना है कि मात्र न हो विचार, प्रतिदिन निरंतर प्रगति हेतु हो बड़ा यत्न 

परिश्रम-देवी है भाग्य-श्री से अधिक बलवती, वाँछित बल से स्थिति परिवर्तन। 


संस्था-रूपांतरणार्थ कुछ युक्ति-आवश्यक, हल तो सीखने-प्रयोग करने होंगे 

सुवाचन शिक्षा हो, सहयोग-वृत्ति आनी होगी, वाँछित आयाम अपनाने होंगे। 

इच्छा कि जग-प्रगति में महद गति से हूँ सम्मिलित, नई तकनीकें  हों प्रयोग  

जीवन-महाघड़न निश्चितेव है बड़ी चुनौती, सशक्त-प्रखर बन सीखूँ  निर्वहन। 


पवन कुमार,

५ जून, २०२२ रविवार, समय २२:२७ रात्रि  

(मेरी डायरी १६ अप्रैल, २०२२ समय ६:४२ प्रातः से )    

Sunday, 1 May 2022

समन्वित धारा

समन्वित धारा

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कैसा देश, पूर्वाग्रहों या अल्पज्ञान से स्वघोषित प्रभावी कुविचार उवाच 

कई उदार तो चिंतित होंगे ही, चरम-पंथी परिपाटियों का करते उल्लेख। 

 

कई विवादास्पद लेख रोजाना समक्ष, समाज के अग्रणी महानुभावों द्वारा 

परहेज न करते या यूँही बोल दिया, प्रतिक्रिया क्या होगी उन्हें भी ज्ञात ना। 

सुर्ख़ियों में रहना प्रयोजन, या कुछ समूहों को हासिए पर रखने का स्वार्थ  

या आम नर सम निज मत रखते, हम प्रतिक्रिया दे उन्हें देते अधिक भाव। 

 

कल एक विख्यात मंदिर प्रमुख ने दूरी को कहा महिलाओं से रजो-धर्म समय 

बोले कि अगले जन्म में नर बैल बनेगा, औरत कुतिया के रूप में लेगी जन्म। 

यह बिना देह संरचना-क्रिया समझे टिपण्णी देना सा, धर्म की दुहाई ऊपर से 

लोग बस मौन प्रवचन सुने कोई प्रश्न न हो, परम-ज्ञान का धर्ता उन्हें मान लें। 

 

अभी एक विद्यापीठ में छात्राओं के शौचालय में मासिक-धर्म जाँचन की चर्चा थी 

एक बड़े समूह प्रमुख ने शिक्षित महिलाओं में अधिक तलाक की बात कही। 

जैसे कि आमजन-गरीब-अबला-पिछड़ों की आर्थिक-बौद्धिक प्रगति से हो चिड़  

कैसा दर्शन, सचेत लोक बना आपसी मान न सिखाते, स्वार्थों की ही बात बस। 

 

दक्षिणपंथ-कटि तो टूटी व्यवहार में, पर प्रजा अद्यतन मात्र क्षुद्र स्वार्थ-लिप्त 

जब अन्य पर अत्याचार हो तो मौनव्रत, अपने लघु से कष्ट पर पड़ते बिलख। 

जब निज अस्मिता प्रहारित तो नभ सिर पर, अकर्मण्यता आरोपित शासन   

नियम-भंग कर दंडदान की प्रवृत्ति, पर-समूह में शादी पर पुत्री-हत्या तक। 

 

जब स्वदलीय दूसरों-गरीबों की बेटियों की अस्मत लूटते, तो मौन चक्षु बंद 

कभी न लगता उनको समझाए, ऐसी कुचेष्टाओं से समाज में विकृति उत्पन्न। 

कुछ तो स्वयं में अति-अव्यवस्थित, मति में कई भाँति के प्रखर भाव उदित 

पर बंधुजन भी भटकने में सहयोग देते, पर औरों के प्रति रहें अति-कर्कश।

 

आओ सब मिलकर ऐसा यत्न करें कि सब प्राणीजन रहें व्यवस्थित-सम्मानित 

निज अपेक्षा सम ही अन्य से व्यवहार करें, तब समन्वित धारा बहे अबाधित। 

 

पवन कुमार,

०१ मई, २०२२ रविवासर, समय १७:०० अपराह्न 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० १९ फरवरी, २०१९ , मंगलवार, समय ९:१६ से )

      

          

Sunday, 20 February 2022

कर्म-सिद्धांत मनन

कर्म-सिद्धांत मनन



सुयश प्राप्ति भाग्य-अनुकंपा या आशीर्वचन है, मनुज को बस सहज होना माँगता

अपनी ओर से तो कसर न छोड़े, फिर कुछ मिलेगा ही, जैसे बोवोगे वैसा मिलेगा।

 

कर्म-सिद्धांत अति-सरल दर्शन, शीघ्र समझ आता, तथापि प्रक्रिया-पेचीदिगियाँ कई

सर्वस्व बड़े मेले में धकेला, सब निज झुनझुने बजा रहें, किसी को न सुन रहा कोई।

कह सकते एक बड़ी प्रतिद्वंद्विता सी, लोग स्व प्रवृत्तियों अनुसार इधर-उधर दौड़ रहें

स्वार्थ उत्तम उस हेतु बुरा, पक्षपात-असत्य आचार, सब छल-प्रपंच जटिलता बढ़ाए।

 

चलो कर्म-सिद्धांत पर चर्चा-यत्न करते, मनुज को मान्यताऐं संभालने की है जरूरत

अपनी निकट-परिस्थितियों में ही प्रायः उलझा, पूर्ण-परिप्रेक्ष्य शायद ही कभी दर्शन।

जो तुम हेतु अच्छा अन्य उससे विपरीत प्रभावित हो रहा, यहाँ हानि तो वहाँ है लाभ

कौन सर्वोत्तम कर्म सर्वहित में कि समस्त कायनात का भला हो, मुश्किल पहचान।

 

वस्तुतः हम अल्प-बुद्धि प्राणी हैं, घोर स्वार्थों में घिरें, मात्र अपने ही लाभ की सोचते

व्यापार बढ़ाना चाहते जो किञ्चित उचित भी, पर अन्य के लाभ-द्वार रुद्ध ही होते।

कार्यालय-फैक्ट्री-खेत-गाँव बनने शुरू हुए तो वन-क्षेत्र हानि, अनेक प्राणी विलुप्त

समुद्र-दोहन तो अनेक मत्स्य-कच्छप-सरीसृप-व्हेल-सील आदि पर विलोम असर।

 

हर चीज की एक कीमत जो चुकाना माँगती है, उसमें तुम्हारा क्या रोल बात अलग

वर्षा है तो किसान प्रसन्न भूमि में जल रिसेगा, फसलें उठ खड़ी हो जाऐंगी एकदम।

उधर मृत्ति-कुंभकार, भट्टे वाले परेशान हैं सब मिट्टी हो गया, पानी हो गया सारा श्रम

अमीर वातानुकूलित घरों में आराम करते, गरीब अति गरमी-सरदी से मरते बेहाल।

 

एक प्रक्रिया से लाभ में, दूजा हानि में, यहाँ बड़े संस्थान तो वहाँ मूलनिवासी उजड़े

एक जीव दूजे का भक्षण है, हम अनेक जीवों को नित्य निर्दयता से मारकर खाते।

नरभक्षी या जंगली-खूँखार से हम कतई भी न कम, परोक्ष-अपरोक्ष हिंसा ही करते

फिर धर्म-गुण आवरण का मुखौटा पहनते, जबकि सब भाँति के अवगुणों में फँसे।

 

यहाँ शक्ति-प्रदर्शन, निर्बल लोगों पर सब अस्त्र चलते, अबलाओं की लुटती अस्मत

सब प्रपंच सर्वत्र, निरीहों को ही घेरते, बली प्रायः सामना करता या छेड़ते ही न हम।

पेड़ कटते, भवन बनते, अनेक जंतु-पंछी-कीटों का डेरा स्थायी रूप से जाता उजड़

जनवृद्धि से विलोम प्रभाव, CO2 स्तर बढ़ा, गर्मी से समुद्र-तल उठा, किनारे रहें डूब।

 

प्रायः कर्म एक अमुक द्वारा कृत ही मानते, पर सामूहिक तौर पर भी घोर अन्याय रत

या तो असमझ या मात्र स्वार्थ ही, अन्य की न परवाह या वह क्या करे हमें न मतलब।

यहाँ सर्वस्व विषयाश्रित, लघु उद्देश्यों तक सीमित, भविष्य या प्रतिक्रिया-परवाह न भी

हमारी दुनिया कुछ चंद स्वार्थ-जमावड़ा है, सब परस्पर होड़ में, आगे निकलें कैसे ही?

 

मान सकते कि हम दो स्तरों पर काम करते, एक व्यक्तिगत व दूसरा सामूहिक स्तर

निज विद्या-प्रशिक्षण, परम-परांगत गुण आदि अनुरूप ठीक-गलत करते विश्लेषण।

पूर्णतः तो नितांत न जानते व न कोशिश करते, जैसा समझ आया व्यवहार लिया कर

प्रायः हम चीजों संग बह जाते कोई अडिग मूल्य नहीं रखते, वर्चस्व हेतु करते सर्वस्व।

 

जग में उम्र-अनुभव संग संयत का यत्न है, कमी बावजूद थोड़ा शुभचरण-यत्न करते

कुछ मन में मान लेते ठीक ही करते हैं, स्वयं को उचित करने का हर उपाय ढूँढ़ते।

बाह्य दुनिया तो हमें अपनी वक्र दृष्टि से आँकती, उसे मानो सब प्रपंच समझ आ रहें

किंतु वह प्रायः सकुचाती, क्योंकि अतएव सकल भाँति के गुण-दोषों में फँसी पड़ी है।

 

कुछ दार्शनिक सब व्यवहारों पर चिंतन करते हैं, कुछ समानता ढूँढ़ने की कोशिश

उनको यह विश्व-शैली स्पष्ट दिखती, घटनाओं पर प्रतिक्रिया को उससे जोड़ते फिर।

मनुज यदि सरल तो घोर क्लिष्टता में न पाशित, तो अधिकांशतः जीवन भला गुजरता

प्रपंचकारी तो अनेक मन-वितृष्णाओं में फँसा रहता, कहीं न कहीं अटक ही जाता।

 

प्रकृति की भी कुछ दया, डर या समझकर हम उत्तम सर्वहित व्यवहार करने लगते

वस्तुतः अंतःज्ञान है कि हम निर्बल, एक नियमाधीन, व अस्तित्व-रक्षा का यत्न करते।

किंचित सद्नीयत देखकर ही प्रकृति हमारी मदद करती है, उसे सौभाग्य सकते कह

वास्तव में तो व्यवहार उत्तम ही होना चाहिए, सद्कर्मों को यश मिलना स्वाभाविक।

 

कुछ विवेक-प्रखरता चाहिए, महद स्तर पर दृष्टि-प्रयास, तो बड़ा हित-स्थापन संभव

इस विराट यज्ञ में अपनी भूमिका बनाओ, अंतः में सुभीता करने का होगा अनुभव।

यथासंभव विसंगतियों से बचो, प्रकृति संग खड़ी होगी, बड़ा हित ही होगा हस्त-सिद्ध

यश तो सुकर्म से ही प्राप्त है, कुछ करते रहो, अपनी और यथासंभव बनोगे उत्तम।

 

 

पवन कुमार,

२० फरवरी, रविवार समय २२:३२ बजे रात्रि

(मेरी डायरी १० जुलाई, २०२१ शनिवार, समय ६:४९ बजे प्रातः से)


Wednesday, 26 January 2022

मार्ग प्रशस्ति

 मार्ग प्रशस्ति

एक चिंतक सी बुद्धिआत्म से प्रज्ञा-उदय का यत्नएक कवि का हृदय

पूर्ण ब्रह्मांड-मननसर्वप्राणी हित की बातअपने क्षुद्र स्वार्थों से बाहर। 

 

भावी लेखन-मनन का स्वरूप तो नितांत अज्ञातचेष्टा है सर्वोत्कृष्ट की पर

अद्यतन तो अंधकार में कुछ उल-जुलूल लिखा जा रहाउसी में हूँ व्यस्त। 

पर संतुष्टि तो कुछ श्लाघ्य करने से ही मिलेगीयही मेरे मन का है संवाद

जिंदगी में बहु आयामकौन से स्पर्श होंगेयह मात्र भविष्य को ही ज्ञात। 

 

जैसे बड़े पुस्तकालय प्रवेशबहु-विषयों पर विशारदों द्वारा सुकृत अनेक पोथीं 

हर ग्रंथ पर विश्रुतों ने पूर्ण जीवन लगा दियाएक सिद्धांत-अन्वेषण में वर्षों लीन। 

जब नर में कुछ पूरित होता तो छलकने भी लगताकुछ काव्य-लेख बन जाता  

अंतः-रिक्त तो कथन-अशक्यपर कदाचित उसे शिकायत-लहजे में कह देता। 

 

प्रायः मैं अपढ़ा साबड़े धीमान-कार्य देखकर विस्मृत, पर हूँक सी कुछ लूँ पढ़ 

यहाँ तो सर्वस्व ही नवीन-अदर्शित है, जो भी पढ़ लिया वही पूँजी जाती है बन। 

कुछ श्रम कर बुद्धि पर जोर देकर समझावह भी पूर्ण का मात्र एक लघु अंश 

माना संतुष्टि मात्र भी नहीं हैपर इससे मार्ग प्रशस्ति अन्य आयामों हेतु महद। 

 

लेकिन विषय अनेकानेक हैंयदि शीर्षक भी लिखूँ तो भी सारी उम्र में  संभव 

प्रत्येक पोथी में कई अध्यायअपने में विपुल-अनूठे, काफी ज्ञान-अनुभव संग। 

मेरी समस्याऐं कईअल्प भाषा-ज्ञान हीमाना आजकल कुछ अनुवाद उपलब्ध 

अमुक लिपियों-सभ्यताओं का प्रथम ज्ञान ही पारंगतता तो दूर तक  लक्षित। 

 

पर जिज्ञासा सीसुधीजनों के चरण-समीप बैठूँशायद ककहरे समझा दे कुछ 

हाँ वह भी निज लघुता कारण अल्प ही समझतापर जितना लब्ध उतना उत्तम। 

एक गुरु-सेवा में ही लोगों की उम्र बीत जातीछोटे समाधानार्थ भी वहीं टकटकी 

   सीमित कालकितना सीखूँगा विचारणीय प्रश्नपर रोध  हो चाहता अनेक छूनी। 

 

निस्संदेह सामान्य से अधिक कर्म होंतत्परता करोमन-देह अनुरूप यत्न करना पड़ेगा 

कोई कूप पास  लाएगाप्यासे हो तो उठोढूँढ़ो, बाल्टी-रस्सी उठा खींचोजल मिलेगा। 

कुछ भी मुफ्त हर चीज की कीमत चुकानी होगीयथाशीघ्र समझ लो उतना ही लाभ 

पर निज मूल्य भी तुम्हें जानना चाहिएबहुत कुछ कर सकते होइच्छा तो करो जाहिर। 

 

ठीक है जग में अधिक जबरदस्ती ना कर सकते, पर अपनी अपेक्षाऐं तो बता सकते 

जब स्वयं गंभीर तो अन्य भी वैसे ही देखेंगे, देह बली तो अन्य अनावश्यक भिड़ेगा। 

सारी जग-कवायदें योग्य बनाने कीकई श्रेणियाँ शून्य-मूढ़ से लेकर चरमोत्कर्ष तक 

यह निज पर निर्भर किस स्थिति पहुँचना चाहते, कितना साहस झेलने का पथ-कष्ट। 

 

समस्या बहुतर ज्ञान-सोपान स्पर्श की, मेहनत करूँयोग्यों के पैर दबा लो 

सर्व मूढ़ता-अविवेक जलाओजो शेष रहे वह निर्मल-कल्याण स्वरूप हो। 

कुछों ने भ्रम फैलाया चर्चा ही हो, चुपके से काम करो लोभ पूर्ति होती रहे 

अशिक्षित-अयोग्य रखना कुछ शासक चाहते, कोई प्रश्न करे, जयकारे लगें। 

 

जरूरी कि जिसे गुरु मानते हो, वह इतनी सरलता से सब कुछ दे सिखा

पर सत्य कि वह चाहे तुमसे तो कुशल हो, परम की सूची में हो सकता। 

नियति अनुरूप ही शिक्षक मिलते, जैसे केजी, प्राथमिक, मध्य, माध्यमिक, स्नातक 

फिर स्नातकोत्तर, MPhil, PhD आदि उपाधियाँसिखाने-पढ़ाने वाले गाइड पृथक। 

 

पूर्ण जीवन ही विद्यार्थी काल, स्तर बदलते, भूत-आवश्यकताऐं बदल लेती नवरूप 

पर स्वयं सदा अधूरा ही, उपाय से थोड़ा प्राप्त भी लेते, तो भी स्वयं में है अपर्याप्त। 

पर भूख तो सदा वर्धित, यह बिन पेंदे का कुआँ कभी भरेगा ही , खाली ही रहता 

होना भी चाहिए क्योंकि तभी क्षुद्रता-ज्ञान होता, और प्राप्त कर सकते हो कितना। 

 

पर सुफल भी तो प्रदर्शित हों, योग्यता से प्राप्त आयामों को लगाना जनहित 

पर जीवन अपेक्षाओं पर ही चलता रहता, अज्ञान-श्रृंखलाऐं टूटती रहती सब। 

हमें निश्चितेव लोगों के भले काम आना चाहिए, उत्पादकता कर्मों से आएगी 

अंततः जीवन-लक्ष्य भी लोकहितार्थ एक रज बनना ही, अन्य तो मध्य-कड़ी। 

 

तो जितना यत्न हो सके पूरा करोजितने भी ज्ञानकण उठा सकते, उठाओ 

मन-सुस्ती तो नितांत भी रखो, अपनी तरफ से पूर्ण झोंकने का यत्न करो। 

यह शतरंज-खेल हार-जीत स्वीकारनी होगी, एक व्यवहारिक दृष्टिकोण संग  

पथ अवश्य मिलेगा, योग्यतानुसार गंतव्य होगा, अडिगता से सफलता लब्ध। 

  

पवन कुमार,

२६ जनवरी, २०२२ बुधवार, १९:०५ बजे सायं 

(मेरी डायरी दिनांक १८ अप्रैल, २०२१ रविवार समय १०:४२ बजे प्रातः से)