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Sunday, 20 August 2023

स्वच्छ भारत

                                                                   स्वच्छ भारत

                                                                                   


ऐ बंदे, जग में आ ही गया है, तो जीना सीख ले कुछ 

बहुत उम्र बिता दी है तूने, कब तक यूँ रहेगा अबूझ।

 

सर्वव्यापी का कुछ चिंतन, तुम्हें अग्र बड़ी राह दिखाऐ 

कैसे संभव अनुपम यहाँ, सबकी फिर युक्ति लगाए।   

कुछ महाजनों ने आचरण में, चिंतन संग कर्म है जोड़ा 

व समस्त विकास प्रसारण, उसी कर्म में स्पंदित हुआ। 


कैसा चाहते स्वरूप जग का, बहुत कुछ हम पर निर्भर 

माना एकाकी कुछ दुर्बल, एकता में अति बल निहित। 

यहाँ एक साँझी सोच का महत्त्व, पर प्रेरक सन्मति देते 

और चमत्कार होते जाते, जहाँ मनुज बड़ा है ठान लेते।


बहु तंद्रा छुपी, व यदा-कदा तो हिलाने पर भी न डुलते 

पर निज बदहाली ज्ञात, निदान है प्रमाद-अंत करने में। 

वपु-मन रखो जीवित दशा में, और सदा ध्येय का ध्यान 

पर सब प्रमाद-उपालंभ, टालना आदत हैं प्रगति-बाधक। 


देखिए, जो सदा चलते रहते, उन्हें मिल ही जाती है मंजिल

वरन एक अनुपम अनुभव लब्ध, जो स्वयं में है महत्त्वपूर्ण। 

चाहे कुछ देख-भोग ले, सर्वांगीणता से तो रूबरू होवें पर 

आओ निज दशा बदलें, बहुत बदहाली व कंगाली ली सह। 


उन्होंने बनाया एक परिवेश मनोरम, जहाँ सबके मन रमते 

स्वच्छ भारत की कल्पना, महात्मा गांधी राष्ट्र हेतु हैं करते। 

आज उन्हीं स्वप्नों में योग हेतु, शासन ने सब कार्यालय खोलें 

सब बनें भागी इस अभ्युदय-उन्नयन में, सर्वत्र खुशहाली है। 


आओ जुटें सर्वदा, विराट स्वच्छता-यज्ञ में इस, लगाऐं वृक्ष 

औरों महत्तमों को संग में लें, ताकि मन-तन हों पुलकित।  



पवन कुमार,

(२० अगस्त, २०२३, रविवार, ६:३७ बजे सायं)  

(महेंद्रगढ़, २ अक्टूबर, २०१४ वीरवार, समय ८:५५ बजे प्रातः)


Monday, 3 July 2023

लिपिकर - कर्म

लिपिकर - कर्म 

हाथ में लेकर इस नई डायरी की लेखन-यात्रा शुरू, अज्ञात भावी कालखंड की होगी साक्षी 

मनुज-चिंतन उसका ही रूप, वर्णन-अभिव्यक्ति बन एक अमित-मानवतार्थ समर्पित होती 


ये लिखित डायरियाँ भी एक- करके मेरा संपूर्ण व्यक्त करा रही, माना कुछ छुपा भी लेता 

तथापि कमसकम एक सोच तो प्रस्तुत करती, विश्व प्रति एक दृष्टिकोण मुखरित हो जाता। 

यहाँ-कहीं भी एकाकी अपने से जूझता सा, इस तूलिका माध्यम द्वारा कुछ बाहर देता कर 

माना चिंतन भी अपनी भाँति इस विश्व को प्रभावित कर रहा,  स्वयं अन्यों द्वारा प्रभावित। 


चलिए यह डायरी नई है, प्रथम लेखन कार्य जो हो रहा इसमें, अतः होना चाहिए स्वागत ही  

यह सौभाग्यशाली है कि कुछ मनन-प्रयास किया जाएगा, किञ्चित कालजयी भी सकती। 

लेखन भी सकल विश्व-निरूपण का लघु अंश ही हैअन्य बात कैसे अग्रवर्धन किया जाएगा 

यह भी मनसा वचसा की एक प्रस्तुति है, कर्म द्वारा ही होगी इसकी समुचित उपयोगिता 


वस्तुतः लेखन तो एक विचार-प्रवाह जो सब मानवों में है, माना प्रस्तुति कुछ ही पाते कर 

सच में सभी निज भाव नित्य प्रकट करते, यदि कलमबद्ध हो जाए तो किंचित बने लेखन 

पर कलम ही  बस प्रस्तुतिनी, अन्य कलाओं चित्रकारी-शिल्प सी द्वारा नर व्यक्त करता 

हरेक विपुल जग स्वयं में समाए, यदि कुछ अंश भी समुचित व्यक्त कर पाए तो सुभीता। 


एक प्रश्न है विचारक कैसा हो, क्या निकट-आवश्यकताऐं छोड़ विचारे मात्र परम को ही 

जब अपनी माता मरणासन्न और तुम देवी-दर्शन हेतु देशाटन करोनहीं अत्युत्तम कोई 

यह सर्वोचित कि नर का एक महद साध्य हो, और उस हेतु अपनी ऊर्जा बचानी चाहिए 

कई बार समस्या-समाधानार्थ पृथक भाँति विचार चाहिए, एवं युक्तियाँ अपनानी पड़ती। 


वस्तुतः लेखन का श्रेष्ठ लक्ष्य मात्र विचार मात्र रहकर, व्यवहार रूप में एक प्रयोग होना 

माना अन्यों संग देखा-परखा जाएगा, यदि विश्व को जँच गया तो शायद जाए भी अपनाया 

किसी लिपिकर का अपने विचारों को ही श्रेष्ठ मानना उचित , हाँ आप कर सकते प्रस्तुत 

हाट में सब तरह के सामान, सभी मेहनत-लग्न से हैं, किंतु सबकी गुणवत्ता तो एक सी  


यहाँ चाहे निज प्रतिभा भी हो, लेखन-लक्ष्य तो निज को सर्वश्रेष्ठ चिंतक स्थापन कदापि  

इच्छा बस माखनलाल चतुर्वेदी भाँति 'पुष्प की अभिलाषा' सी, नरता हेतु कर्म-वस्तु बनूँ। 

मेरे देश-समाज में विकास की अनेक आवश्यकताऐं हैं, उनमें तुम्हारा चाहिए सहयोग 

मात्र बुद्धिरस में नहीं रह प्रयोग-कड़ी बन, नर विकास करते मुख्यधारा में हों सम्मिलित 


विश्व में 'संतुलित दृष्टिकोण' एक समुचित शब्द, सब छोटे-बड़े-मध्यम आयाम समा सकते 

अर्थात एक वेशभूषा या भंगिमा-रूप में नहीं है, उठकर सब प्रकार के काम करने पड़ते।  

माना सबकी प्राथमिकताऐं चाहे निज दलों तक बहु सीमित हैं, पर सब साधने पड़ते संपर्क 

विशेष बीमारियों हेतु वैद्य तथैव विद्या पारंगत-समर्पित चाहिए, तभी हो सकता उत्तम पथ्य 


काँटा चुभा तो तुरंत निकाल फेंको, ताकि अग्रिम काल कष्टमय रहे मन वहीं अटके 

मनुष्य को निकट परिवेश शुभ्र बनाना चाहिए, ताकि दुर्गंध फैले सब सुख से रह सके। 

यदि परिवेश दुर्बल तो उसे समुचित सबल-शिक्षित-विकसित बनाना भी नर का ही कर्त्तव्य 

माना अकेले से ही  सर्वसंभव, पर कई आऐंगे सहायतार्थ, कर्मठ की प्रतीक्षा रहती नित्य 


कुछ पूर्व अंबेडकर-कथन पढ़ा, संघर्ष करते समय यदि मृत्यु भी हो तो भी वह है श्रेयषकर 

भावी पीढ़ियाँ उससे कुछ अर्थ अवश्य निकाल लेगी, संघर्ष अग्र बढ़ाते हुए पा लेंगी मंजिल 

किंतु तुम यदि दब्बू-दमित रहना ही पसंद करते हो, तो मुक्ति की कभी नहीं पाओगे चिंतन 

अकर्मण्यता माने निज भावी हेतु विधर्म, आज अटपटा लग सकता पर दीर्घकालिक शुभ्र 


एकदा मित्र शैलेंद्र ने कहा बड़े मस्तिष्कों का मनन, भावी पीढ़ियों के भविष्य हेतु दीर्घकालिक 

दर्शन-विचार पर काम करते चाहे तुरंत सफलता भी दर्शित, तथापि शनै मंजिल ओर वर्धन। 

अतः एक प्रज्ञ नर का मनन-दर्शन श्रेष्ठ दूरगामी बनना चाहिए, प्राप्ति हेतु योजनाऐं निर्मित भी 

डरकर कोटर में दुबके रहना नहीं जीवन, पुरुषार्थ से ही जग में सौभाग्य-लकीरें खिंचा करती। 


असल वस्तु अपना दर्शन कार्यान्वयन में लाना, तुम स्वयं में ही इकाई अपितु संपूर्ण मानवता 

निज भौतिक साधन-सुविधाओं से भी अधिक, दमितों के बौद्धिक-दैहिक स्वास्थ्य की हो चिंता। 

सर्वप्रथम उन्हें स्वयं को हीन मानना तुरंत अंतिम करना चाहिए, अन्य-दत्त विशेषण अस्वीकार 

     व्यवहारिकता उचित थोड़ा सहना भी बुरा, पर निज-निकृष्ट स्वीकृति आत्मा प्रति अपराध।      


जगत में अनेक राजनैतिक प्रपंच है, लोगों की एक विशेष प्रकार से मानसिकता पूर्व बनी होती 

नेता सत्ता-लोलुप हैं, प्रजा-तमस में उन्हें मतलब, हाँ काम चलाऊ विकास-रेवड़ियाँ फेंक दी

किंतु सत्य प्रगति स्वमन-प्रवर्धन है, माना वह भी एक न्यूनतम विद्या-सुविधा होने पर ही चलता 

तो भी कुछ चेतना तो है, उत्तम स्वार्थ देखते हुए विचार-गति बढ़ाओ, उचित से सीखो परखना  


माना हम बहु प्रलोभन-पाशित, अन्य फुसलाते भी, परंतु प्रत्येक संपर्क से एक पाठ ले हो सकते 

जरूरी अन्य को पूर्ण स्वीकारें, विवेक से देखें कहीं अनावश्यक छद्म शत्रु तो प्रस्तुत करते। 

अज्ञानता-विनाश हो, होनहारों को समुचित पोषण, ध्यान, शिक्षा-प्रशिक्षण देकर बनाओ सुयोग्य 

तथोपरि मन से सुदृढ़-सशक्त हों, सुनने-कहने-सहने का विवेक आए, व समस्या सुलझाए धर्म्य। 


हर समाज में सुविचारक हैं, अपना लेखन-प्रवाह सतत रखते, अनेकों को नित्य सद्प्रेरणा देते 

हर पहलू पर उचित प्रकाश डालने की कोशिश करते, माना पाठक रूचि अनुरूप समझते। 

उनकी भी आलोचनाऐं होती रहती हैं, कुछों को शायद इस तरह का काम भी दलों ने रखा दे 

किंतु सुपरिवेश बनाना निर्मलचित्तों का दायित्व, समाज को निर्मम-अवस्था में छोड़ सकते। 


पर पूर्व क्यों बीमारी लगाई जिसने सब संक्रमित कर दिए, कुछ को ग्रसित रहने में मजा आता 

विश्व में तुम्हीं समाज कि बहु-स्तर बना दिए, हरेक निज से निम्न ढूँढ़ने में गर्व अनुभव करता। 

निचले पायदान पर बैठे तो सबकी अच्छी-बुरी सुनते हैं, और सबसे अधिक उनपर ही प्रतिबंध 

फिर यदि सहने-घुटने की आदत पड़ गई तो मौन में हित मानते,  लड़ना लगता भरा जोख़िम 


रोगी को थोड़ा सा भी छेड़ दो तो चीख पड़ता है, एकनेत्र को काना कह दो तो बुरा जाता मान 

एक टाँग वाले को लंगड़ा कहा तो क्रुद्ध हो जाता, मूर्ख को यदि वैसा कहा तो सिर भी दे फोड़ 

अतः निरोग-सर्वांग होना महत्त्वपूर्ण, पर उससे भी श्रेष्ठ कथन-पूर्व लोगों में होनी चाहिए संवेदना 

आत्मीयता संग पीड़ितों-दमितों से बात हो तो वे बुरा मानेंगे, तव उपस्थिति का आदर होगा। 


खुद से कहता तो भी एक कुछ पढ़े-लिखे हो, किंचित बुद्धिसंपन्न भी, अतः अधिक है दायित्व 

समाज के उचित दिशा-दान में तव सहयोग चाहिए ही, लोग भले ही जानते उन्हें है जरूरत 

कुछ काल हेतु निज मान की ही चिंता त्यागो, देखो हर जगह प्रज्ञावान भी हैं, साथ देते उचित का 

सुविचार-प्रस्तुति करते रहो, चेतना बड़ी रोशनी है, देखने लगे तो  रहेगी आपकी आवश्यकता 


चलो कुछ ऐसे स्वयंसेवक खड़े करो जो एक मिशन भाँति काम करें, समाज की बदल दें दुर्दशा 

फिर प्रयास से सर्वस्व ही संभव है, कुछ ही विगत वर्षों में समाज देश में बड़ा परिष्कार हुआ।  

सकारात्मकता तो नित्य ही चाहिए, कोई समस्या इतनी बड़ी  कि टिकी रह सके पुरुषार्थ समक्ष 

समाज-देश को प्रगति-बुलंदियों पर ले जाना है, अब इस दिशा में यथासंभव जरूरी करो प्रयास 


महत्तम व्यय सुशिक्षा में ही हो, लोग तकनीकें सीख सुयोग्य बनेंगेतलाश भी लेंगे रोजगार-अवसर 

लोग स्वावलंबी होंगे तो दमन-टोटके अप्रभावी, रुढ़ि-कुरीतियाँ कम तो विश्वास झलकेगा स्वयमेव 

वे अच्छे-बुरे का उचित अंतर समझेंगे तो प्रगति-शुचिता-सुव्यसन-विद्या आदि में ही बहु रूचि लेंगे 

सब ही समकक्ष तो छोटे-बड़े का भेद न्यून, मनुज को मनुज समझकर एक सुहृदयता अपनाऐंगे। 


आज इस प्रथम-दिवस डायरी से लेखन आदि है, अनेक नव प्रयोग-संभावनाऐं इसमें स्थल पाऐंगी 

अतिशीघ्र स्थिति-स्थान परिवर्तन होगा, पूर्व डायरी निराशा से निकाल सकारात्मक तल पर लाई। 

अवश्यमेव इससे भी नव चिंतन-सोपान प्रगति हेतु प्रस्तुत, बहुमुखी चित्त विश्व-हितार्थ होगा समक्ष 

एक निर्मल छवि स्वयं हेतु प्राप्त हो, वरिष्ठों का आशीर्वाद, संगी-स्नेह अवरों की शुभेच्छा लब्ध। 



पवन कुमार,

३ जुलाई, २०२३ सोमवार समय ७:५९ बजे प्रातः 

(मेरी चेन्नई डायरी शुक्रवार दिनाँक ७ अप्रैल, २०२३ समय ८:५३ बजे सायं से)   


Friday, 26 May 2023

ऋतु-बदलाव

ऋतु-बदलाव 


एक चेष्टा प्रकृति से रूबरू होने की, बसंत बीतता ग्रीष्म में हो रहा आगमन 

  माना २-३ दिन से नभ मेघाच्छादित, सूर्यदीप धुँधला सा तथापि ताप-अनुभव। 


आज प्रातः उषा संग पार्क में देखा, गेंदे-पौधों की पंक्तियाँ उथली सी थी पड़ी 

कुसुम अब सूख रहें, ऊपर बीज आना शुरू हो गया, शनै- जाऐंगे मर ही। 

उपवन में पुष्प-सौंदर्य निश्चितेव प्रभावित होगा, छोटे पौधे शीघ्र प्रभावित होंगे 

जड़ें गहरी होने से बड़े वृक्ष दीर्घ युवा रहतेंबाह्य गर्मी-सर्दी सब झेल हैं लेते। 


अब आधा अप्रैल बीत चुका है, पिछले लगभग एक माह से घर में ही रह रहा 

महामारी कोविड-19 कारण, शासन ने 20 मार्च से लॉकडाउन लगाया हुआ। 

कुछ क्षेत्र खुल रहें कार्यालय जाना होगा, एक तिहाई स्टाफ आने के हैं आदेश 

शायद 3 मई बाद सब कार्यालय शुरू होंगे, कुछ खतरे वाले स्थल छोड़कर। 


मोटे तौर पर प्रकृति ने छह ऋतुऐं बनाई, पर हर दिन में कुछ ना कुछ बदलाव 

कई कारक स्थलों की भौगोलिक स्थिति अनुरूप, भिन्न रूप से डालते प्रभाव 

भूगोल-ज्ञान से ज्ञात, कारक हैं अक्षांश-देशांतर, समुद्र से दूरी तल से ऊँचाई 

अतएव मरुथल-पठार-पर्वत-खेत हैं, मानवकृत कारक शहर-सड़क आदि भी। 


हम 21 मार्च को इक्विनोक्स मानते, दिवस-रात्रि अवधि 12-12 घंटे की एक सम 

सूर्य की पौं फटने और उसके अस्तंगत के मध्य समय को दिवस हैं कहते हम 

अतएव सूर्यास्त उदय के बीच रात्रि हैसंध्या समय सूर्यास्त गोधूलि के मध्य 

हर पल निज में विचित्रता समेटे हुए, स्थूल तौर पर हम कुछ विभाजन देते कर। 


भू के उत्तरी गोलार्ध में 21 मार्च वाले इक्विनोक्स दिन कोहम कहते वसंत विषुव

अब अपसौर बिंदु दक्षिणी गोलार्ध छोड़, उत्तरी गोलार्ध ओर बढ़ता होता प्रतीत। 

दक्षिण गोलार्ध में यह शरद, इसे वहाँ जानते ऑटोमन इक्विनोक्स या शरत विषुव

23 सितंबर को इसका उल्टा है, भूमध्य रेखा सूर्य केंद्र के सामने होती बिलकुल। 


आजकल उत्तरी गोलार्ध में दिवस बढ़ रहे, यहाँ 21 जून तक अह्न-अवधि बढ़ेगी 

अर्थ कि सूर्य अधिक समय धरा-स्थल रहता, तो गर्मी भी अवश्य अधिक होगी। 

भू निज अक्ष से 23.5 झुकीसूर्य उत्तरी गोलार्ध में 23 दिसंबर से 21 जून तक 

अतएव 21 जून से 23 दिसंबर बीच समयसूर्य समक्ष रहता दक्षिणी भू-गोलार्ध  


अतः हर अमुक दिवस रात्रि की अवधि, एक निश्चित अंतराल में रहती बदल 

स्थिति बदलने से प्रकाश-उष्मा के कारणप्रभाव स्वाभाविक प्रतिपल दिन पर 

एक वर्षकाल में पूर्ववर्तियों से समरूपता सी, ऋतुऐं आती कमोबेश निज काल 

हमने गृह-आवास बना लिए, कृत्रिम परिवेश द्वारा अल्प है ऋतु-प्रखरता प्रभाव।  


आज दिनांक यानि 16 अप्रैल' 2020 को दिल्ली में सूर्योदय 5:54 बजे प्रातः हुआ है 

778' पूर्व में शाम 6:47 बजे अस्त है, 282 पश्चिम, 12:53 मिनट कुल अह्न-घंटे।  

चंद्रमा बस 37% दर्शित ही, उदय-काल रात्रि में 2:13 बजे 115 दक्षिण पूर्व दिशा  

रोज दिशा बदलता है, कल दोपहर 12:57 बजे 247 पश्चिम दिशा में अस्त होगा।  


अभी दोपहर के 12:12 बजे, और सूर्य 72 ऊँचाई पर और दिशा 174 दक्षिण है 

और यह दिवस-अवधि बीते कल की अपेक्षा, 11 मिनट 37 सेकण्ड अधिक की है 


यह लघुतम दिवस अर्थात 22 दिसंबर 2019 की अपेक्षा 2 घंटे 33 मिनट ज्यादा लंबा 

ऐसे ग्रीष्म-सक्रांति यानि सबसे बड़े दिन 21 जून की अपेक्षा, 1 घंटा 4 मिनट छोटा 

तात्पर्य कि दिन-अवधि तब 3 घंटे 37 मिनट बढ़ेगी, लघुतम दिवस-अवधि की अपेक्षा

तब दिवस काल 13 घंटे 37 मिनट का,  यानि लघुतम दिन है 10 घंटे 23 मिनट का 


स्थूलतया कह सकते, 6 महीने में लगभग साढ़े 3 घंटे का समय छोटा या बड़ा होता 

और उत्तरी गोलार्ध में 23 दिसंबर सबसे ठंडा दिन, 21 जून सबसे गर्म दिन होगा 

दिल्ली में 1 जून को औसत महत्तम ताप 40-41C, दिसंबर में 22-23 C होता यह 

अतएव न्यूनतम मई-जून में 25-28 C, मई दिसंबर-जनवरी में 7-8 सेल्सियस। 


उपरोक्त से स्पष्ट कि सर्वस्व अस्थिर ही,  प्रति दिवस कुछ कुछ परिवर्तन अवश्य 

यह और बात हम अधिक ध्यान दे पाते, स्थूलतया मात्र एक ही मौसम लेते समझ। 

परिवर्तन तथानुरूप प्रभाव डालते,  हमारी दैहिक-मानसिक-सामाजिक स्थिति पर  

जलवायु-ऋतुऐं सभ्यता-जीवनों पर घना असर डालती, शुरू बदलाव थोड़ी दूरी पर 


खिड़कियों से भिन्न समय पृथक प्रकाश मात्रा आती, सर्द- ठिठुरनगर्मी में झुलस जाते 

गर्मी में जल-बिजली की माँग बहु बढ़ जाती, इनकी किल्लत भी, उमस से हाँफ जाते। 

 तब पंखे-कूलर-वाताकूलन से राहत मिलती,  बहिर्कर्मियों हेतु तो वृक्ष-छाँव ही वरदान 

सर्दी में जम से जाते, घर से निकलने का मन , मोटे-गर्म कपड़े पहनने से ही राहत। 


तो आओ सब दिन मजा लें, प्रकृति-अनुकंपा को हृदयानुभूत कर, बनाऐं सामंजस्यता 

बस एक चेतन जीव भाँति व्यवहार हो, तब एक नवरंग उत्पन्न करेगी हरपल-विचित्रता


 

पवन कुमार,

२६ मई, २०२३ शुक्रवार समय ७:३४ बजे प्रातः

(मेरी डायरी दि० १६ अप्रैल, २०२० वीरवार समय ११ बजे प्रातः से)