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Thursday, 14 March 2024

जीवन वरदान

जीवन वरदान



हर दिवस एक नव-अनुभव लेकर आता, इस जीवन पर चढ़ाऐ एक लेप सा 

सब कुछ तो देह-आत्मा सराबोर हो जाते, अनेक संज्ञानों का मिश्रण होता। 


हम जब कोई सरोवर-तल देखते, कई मृदा-परतें एक के ऊपर चढ़ती जाती 

शनै: निचलियों पर अति-भार हो जाता, हाँ खोदे-कुरेदे तो पता चल जाता भी। 

समय संग प्रायः उनमें स्थायी बदलाव आ जाता , दबाव-ताप काम करते निज 

कायांतरण भी नित घटित, एक मामूली कोयला, हीरक में हो जाता परिवर्तित। 


रसायन विज्ञान क्रिया-प्रतिक्रिया है समझाती, परिवर्तनीय या अपरिवर्तनीय कुछ 

जल में लवण घोलो तो अदर्शित, सूख जाने पर उसके रवें दिखने हैं लगते पुन:। 

किंतु आटे की रोटी चूल्हे पर सिंकने के बाद पूर्व-स्वरूप यानि आटे में आती न 

हाँ सुखाकर पीस लो तो किंचित चूर्ण बन सकती है, गुण तो पूर्ववत न रहते पर। 


काठ की हाँडी बार-2 आग पर न चढ़ती, प्रथम बार में ही जलकर हो जाती भस्म 

प्लास्टिक-रबर को एक बार जला दिया, गैस व काला कार्बन ही शेष रहते बस।

गैस तो वायुमंडल में मिल है जाती, कार्बन भी शनै मिट्टी का एक अंग बन जाता

 अतएव सारी वस्तुऐं अन्य स्वरूप लेती रहती, कुछ भी जगत में नहीं है अछूता।


बृहद प्रकृति-प्रक्रिया में पुनरावरण भी, पर अनेक प्रक्रियाओं पश्चात दीर्घावधि में 

अति-विचित्र हैं ये समस्त जग-कवायदें, कुछ अंदाजा लगा लेता नर निरीक्षण से।  

किंतु विशेष वस्तु-स्वरूप में जो स्थायी परिवर्तन हो जाते, उनसे लौटना असंभव 

हाँ वैसी अन्य वस्तुऐं भी अन्य प्रक्रिया से गुजरती होती, किंतु आप मरे जग प्रलय।


तो जीवन भी अतएव एक वस्तु सम, उसके मुख्य दो अवयव, देह व आत्मा-प्राण  

माँ में गर्भाधारण से लेकर मृत्यु पर्यन्त यात्रा अति-दीर्घ, वे नहीं जो पूर्व में थे हम। 

विभिन्न दर्शित अवस्थाओं से गुजरते, कुछ समरूपता कारण उन्हें दिया नाम एक

किंतु जीवन-अवययों में सतत प्रभाव होने से, स्थायी परिवर्तन होते रहते हैं निरत। 


कुछ लचक भी, बीमार होकर कृष होते, स्वस्थ होकर पुनः बल-भार धारण कर लेते 

जैसे डाँट-फटकार का बुरा मानते हुए भी, कुछ देर बाद समझकर सामान्य हो जाते।

पर जो भी हम पर घटित उसका प्रभाव तो स्थायी, चाहे अति-सूक्ष्म मात्रा में ही होता 

शनैः हम इतने दृढ़-ढ़ीठ हो जाते हैं, खुद भी नहीं समझ पाते यह क्या-क्यों हो रहा। 


कुछ ऐसा मेरे या सबके संग हो रहा, पर अन्य-विषय में क्या बोलू, स्वयं को जानता 

हाँ और भी निज भाँति से अनुभव करते होंगे, वे ही जानें उनके मन आँगन में है क्या।

कितना चाहा-अचाहा निज इच्छा से या थोपा गया, बलात भी बहुत कार्य करने पड़ते 

मानव स्वच्छंद तो न अपनी कसरतों में, सब अन्य अपनी भाँति से प्रभाव जमाऐ हुए।


पर मैं क्यूँ कर्कश सा बनता हूँ जाता, कुछ सोच समझ कर कुप्रभावों को करूँ अल्प

हाँ कभी बार गुस्सा आता जो निकट-अव्यवस्था से, बोलना भी हो जाता स्वाभाविक।

पर ऐसा कब होता क्रिया तो करे व प्रतिक्रिया न होवे, यह दुनिया की रिवाज है नहीं 

वृद्ध का बालावस्था-प्रवेश असंभव, कपोत आँखें बंद कर ले तो क्या बिल्ली न आती। 


अब जीवन किसको कहें इसमें तो न अधिक मर्जी, परिस्थितियाँ अपनी भाँति ढ़ालती 

हाँ सिर पर जब पड़ती तो जैसे-तैसे बजाने लगते, स्वतंत्रता तो आत्म-निकट न अति।  

एक कूप मिला, उसी में हाथ-पैर हिला लो, प्रयास करते हो तो कुछ देर रहोगे जीवित

कुछ साथियों से लड़-भिड़ते भी, स्वयं से या अन्य-डर से सब भाँति के भय रहें दिख। 


सबके अपने कूप बस कारक बदल जाते, भिन्न परिस्थितियों से बनते विशेष व्यक्तित्व 

अच्छा-बुरा कुछ मैं यहाँ नहीं विचारता, मेरा विषय वर्तमान में इस मानव का है घड़न। 

किंतु प्रक्रिया समझना तो एक बात, क्या हम स्वयं पर होने वाले प्रभाव सकते हैं आंक

कुछ समझ-बूझ कर सुघड़ शैली बना लें, जिससे विलोम कारकों का कम हो प्रभाव।

 

हाँ किंचित ये धर्म-प्रवचन-संगोष्ठी-तर्क-मनन, नर के कटु-अनुभवों से त्राणार्थ के यत्न 

कितने सफल हो पाते हैं सिलसिले में, हाँ कुछ देर तो जादू को असर रहता अवश्य। 

फिर पुनः हम अपने वास्तविक रूप में आ जाते, वही भला-बुरा सा लगने लगता है

 हाँ जीवन-काल के कुछ भाग निर्मित, कुछ में तो यथासंभव सुकून अनुभव कर लें।  


मुझे भी निश्चय ही एक सुशैली अपनानी चाहिए, व्यर्थ कष्ट नहीं दूँ देह-आत्मा को इस

अपने परिवेश में किञ्चित सकारात्मक परिवर्तन कर लूँ, सुवास हो इर्द-गिर्द भी एक। 

यह जीवन वरदान उत्तम प्रकार से जीने हेतु, फिर न मिलेंगे ये अमूल्य वर्तमान पल  

तो कुछ व्यय करके भी उत्तमता ग्रहण कर लो, अच्छे अनुभव का कोई सानी है न।


तो प्रखरता से विचारो कहाँ सुधार आवश्यक है, ताकि अनुभव भी तथानुरूप लब्ध 

जितना बस में है उतना तो करो, शेष का भी कोई न कोई मिल जाएगा उत्तम हल।



पवन  कुमार,

14 मार्च, 2024 वीरवार, समय 9:28 बजे प्रातः 

(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० 3 मार्च, 2017 प्रातः 5:07 बजे से )



Sunday, 7 January 2024

चेतन-अवचेतन समन्वय

चेतन-अवचेतन समन्वय

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हाँ जब विपत्ति में तो सर्वोत्तम उपाय का अन्वेषण-यत्न करोगेकुछ बुद्धिमता उत्पन्न होगी 

नर बीच में संतुष्ट भी जब बहु विषय ध्यानाकर्षण-हस्तक्षेप चाहतेजो उसकी जिम्मेवारी। 

 

एक दृष्टांत कि एक युवक दार्शनिक सुकरात के पास प्रज्ञा-लाभार्थ पूछने हेतु गया उपाय 

कहते हैं सुकरात उसे सर-तीर ले गयाउसकी मूर्धा जल में डुबा दीउखड़ने लगी साँस। 

सुकरात ग्रीवा को मुक्त  कर रहेंयुवा हाथ-पैर मार रहासाँस रोक रहा पर है एक सीमा 

अंततः छोड़ासहज हो जवान के प्रश्न पर उत्तर कि विपत्ति-व्यग्रता हल खोज से जन्मेगी धी। 

 

हम अनेक व्यवधानों में पाशित होतेप्रायः कुवृत्तियाँ स्वामिनी बन जाती करती विव्हल 

हम कष्ट में पर हल नहीं खोज पा रहेंया कुवृत्ति-प्रभाव मनोबल से होने लगता प्रबलतर। 

स्वयं को मात्र असहाय मानने लगतेएक सोच बनती कि निर्बल हैं निकासी इस जाल से 

अनेक घर-जानें कुव्यसनों के कारण नष्ट-ढ़हाने लगतेंबहु जग-व्याधिमूल ये कुप्रवृत्तियाँ हैं। 

 

एक योग्य-चिंतक को चेतन-अवचेतन मन के सामंजस्य-समन्वयन का चाहिए प्रयास करना 

आजकल Joseph D. Murphy की पोथी 'The Power of Your Subconscious Mind' पढ़ रहा। 

लेखक अवचेतन मन-तहों की यात्रा कराताकहे कि ढंग से मांगो तो सही, जरूर ही मिलेगा 

वह जिन्न सा सदैव किसी आदेश-प्रतीक्षा मेंयह निज पर निर्भर इससे काम ले पाते कितना। 

 

किञ्चित अवचेतन वाहक है चेतन मन द्वारा निर्मित मंसूबें पूर्ण करने का वे परस्पर-पूरक 

हम सहयात्री सुदृढ़-सुहृद ही चाहते हैंदुःख-सुख में सांझीजब कष्ट में तो दिलासा दे एक। 

मन निश्चितेव व्यस्क-निर्मलसर्वहितैषीआगे-पीछे  ऊँच-नीच समझने वाला चाहिए होना 

निज अपदशा के परिष्कार में हो समर्थविचार-सक्षमसुजन सम समेकित व्यवहार वाला। 

 

सर्व विश्व-निधि अंतर्मन हीबस अचिन्हित होतीउकेरने  खनन-उपाय शक्ति की न्यूनता 

प्रश्न कि कैसे उसको चुनौतीनिर्मल मन ही मित्रकई दुर्धर आयाम-स्थितियों निर्गम चाहिए। 

यावत संभव निज मृदुलतम छवि-कल्पना  उस हेतु प्रयत्न  हैबहु सफलता नहीं अपेक्षित 

आओ-निकलोयुक्ति-बल योजन करोसक्षमों से यथेष्ट सहायता लें महत्तम लाभ सुनिश्चित।  

 

आज दिवस एक पुरातन-निरंतरता में सूर्य मानिंद ही नवोदय हैऔर मुझे दैदीप्यमान होना 

उस सम ही सदैव एक काल पृथक भूभागों पर पूर्ण शक्ति लगाअनुरूप प्रभावित करता।  

अतः आगे बढ़कर स्व सकल सामर्थ्य-बुद्धिइस विश्व-निखरण के सुयज्ञ में देनी चाहिए लगा 

अनेकों को ज्ञान-व्यवसाय दानउन्हें सुप्रयास-आवश्यकता हैपुनः मन प्रबल करें एकदा। 

 

 

पवन कुमार, 

जनवरी, २०२४, दिन रविवार, समय : बजे सायं काल

(मेरी ब्रह्मपुर, ओडिशा, डायरी दि० २२ दिसंबर, २०२३ दिन शुक्रवार, समय :३६ प्रातः काल)  

Friday, 3 November 2023

दीप्ति - दर्शन

दीप्ति - दर्शन 


किसी भी लघु-विराट कार्य प्रारंभ से पूर्व, नर को प्रथम कुछ सहज होना चाहिए  

उद्विग्नता से तो न अति भला, मात्र ऊर्जा अपक्षय ही, जबकि अनेक कार्य करने।  


नाम जीवन मात्र इसकी यापन-कला सीखने का, सदा यह-वह लगी रहती चिंता 

यदि कुछ सहज मनन कैसे क्या कुछ किया संभव, और सुलझें उलझी गुत्थियाँ।

किंचित दीप्ति-दर्शन भी, भिन्न विकल्प मनोदित, कुछ समाधान है जाता अटक 

सब आयाम ढ़कने से ही बात पूरी बनती, एक-२ करके अनेक काम जाते बन। 


स्वयं बहु आयामों से गुजरा, नित्य कर्म-अपेक्षाऐं समक्ष ही, हौले से भी निबटना 

माना कुछ अनुभव किंतु कैसे बहु-प्रयोग करते एक व्यापक लाभ सोच सकता। 

सब अपेक्षाऐं तो पूर्ण न शक्य, पर मन-वचन-कर्म से कुछ असहाय-मदद संभव  

अन्य-निर्भरता उद्देश्य न, व्यापक हितार्थ योग्य, शासन-सम्मत बनाना आवश्यक। 


अब नित्येव कुछ अन्वेषणा, अंततः योग्यता-मान करते तुम्हें किया पदासीन उच्च 

सफल परियोजना-निष्पादन दायित्व, संगियों को दिशा-निर्देश दिए जाने उचित। 

सकल कवायदें आत्म-प्रबंधन से शुरू, तब संबंधितों को कथन-झझकोरना-प्रेरणा 

स्पष्ट अनुभव कि बड़े जग-खेल में, स्व वक्ष के ऊपर से ही गुजरती बहु विफलता। 


इस खेल में तुम लघु-क्रीड़क, किंतु तव गति से ही पश्चग-कारवाँ बढ़ता आगे शायद 

अहम भूमिका मौका मिला, दृष्टि तुमपर, प्रधानाध्यापक सम दंड चलाने से का रोल। 

एक सेना सी में हो बाहर घोर समर है, किंचित तंद्रा का अर्थ बहुत बड़ा सा जोख़िम 

   अब सेनापति हो तो सब रण-कौशल, युक्ति-प्रबंधन सुनिश्चितता दायित्व, व निर्वहन।  


बहु पुस्तकें मनन-पठन कि जन सफल परियोजना-निष्पादन में सहायता करते बड़ी 

योग्यतानुसार ही कार्य लब्ध, अब आ गए तो समक्ष का समन्वय-कर्त्तव्य भी निज ही। 

माना स्वयं भी एक शृंखला में अन्य-निर्भर, कोई बड़ा संबल भी ढूँढ़ना पड़ता तथापि 

छुपने से तो कोई हल न, समस्या से सीधा भिड़ना होता, यथाशीघ्र हो समाधान भी। 


अब नव-स्थल के इस नवगृह-निवास शुरू, रहने-खाने-सोने हेतु बनाना पड़ेगा अनुरूप 

स्वच्छता-उपाय, नाश्ता-चाय आदि का प्रबंधन, ताकि देह-मन का स्वास्थ्य रहे उचित। 

विषय पूर्व स्वयं समझने पड़ते तभी दूजों से बात कर सकते, यह सब माँगे ऊर्जा-समय 

कोई भी बहाना न चले, फिर एक जगह स्थिर सा हो पूर्णबल संग उसे बना देना सफल। 



पवन कुमार, 

३ नवंबर, २०२३ शुक्रवार समय ११:२६ बजे रात्रि 

(मेरी ब्रह्मपुर डायरी दि० २८ जून, २०२३ समय ८:२६ बजे प्रातः)    



Monday, 23 October 2023

सहकार - भावना

सहकार - भावना 


 

एक सर्वविदित उक्ति प्रज्ञा-उदित हो, हमारे अस्तित्व में निरत सहयोग बहु अवस्थित 

सब संगी, अवर-वरिष्ठ संग चलें, प्रेरणा-प्रयास निपुणता-कर्मठता में करेगी परिणत। 


एक विस्फरित विज्ञ चक्षु दूजे संग मिल चौड़ा दृष्टिपटल बनाए, बहु वस्तुस्थिति-ज्ञान दे 

एक हाथ क्षीण पर दूजे से मिल बड़ा बोझ उठा लेता, परस्पर कुछ काम भी बाँट रखे। 

यदि पूरा देह-भार एक ही पाँव पर तो थकेगा, दोनों चलकर सुदूर देश-यात्रा पूरी करें 

अपंगता से क्षमता निश्चितेव घटती, पूर्णता से निश्चिंतता सी, चाहे हम सम्मान  करते। 


शिष्य की सदा गुरु-जरूरत, शिशु को जनक का संग-दुलार, जीवन-दायक परवरिश

सब प्राणीगण परस्पर सहयोग से ही प्रगतिरत हैं, बाँटे ज्ञान से सतत ही हैं लाभान्वित। 

एक वानर दल वीथि-किनारे जंगल या पार्क में है, लोग खाना-फल आदि रख देते वहाँ 

वे भी स्व कला-दृश्यों से जन-मन बहलाते, बाल-कपि की तो अति-सुंदर अटखेलियाँ। 


बड़े नगर-चतुष्टों पर लोग पक्षी-गिलहरी आदि हेतु अनाज-दालें, मक्की-दानें रख देते 

झुंडों में उनकी जरूरत अनुरूप उदरपूर्ति, निश्चिंतता सी, नीड़ जाकर गीत गुड़गुड़ाते। 

कई स्त्रियाँ प्रातः ही चींटी-बिलों समीप आटा-अन्न रख देती, उनका भी हो प्राण सुलभ 

कई साधु खग-कुत्ते-बिल्ली-गिलहरी हेतु पार्क-गली पास या छतों पर जलपात्र देते भर 


संकट में दरिद्रों की भोजन-वस्त्र-औषधि-पुस्तकों द्वारा चाहे अल्प ही, मदद की जाती 

धन-साहस-प्रेरणा से उन्हें कुदशा-दलदल का निर्गम-युक्ति हर स्थल देखी जा सकती। 

अनेक छात्रवृत्तियाँ निम्न-आय अभिभावक-होनहारों हेतु दत्त, जीवन होता परिष्कृत ही 

ये अस्पताल-विद्यालय, अनाथाश्रम-धर्मशाला, लंगर, जलकूप-वृक्ष सब सहयोगार्थ ही। 


कुछ लोग नदी-तीर मीन-मगरों हेतु खाना रख देते, रुग्ण वन्य जीवों का होता ईलाज भी 

हम घरों में पालतु कुत्ते-बिल्ली-पक्षी आदि रहते हैं, जो एक सदस्य भाँति सम्मानित ही 

कई सामाजिक-सुरक्षा उपाय शासन-सहृदयों द्वारा, बहु विश्व-संस्थाऐं जन-हितार्थ निरत 

भावार्थ आपसी-सहायता का, वरिष्ठ-अवरों का भी आशीष-धन्यवाद सुवचनों से सुकून।


अतः नर अगर्वित ही रहे, सब काल-चक्र पाश में, इसकी दशा बदलती, जरूरत सबकी 

कोई सदा बली , जीवन बहु-आयामी है, बहु स्थल निम्नबल ही, अतः विनम्रता जरूरी। 

शुभ जीवन-कलाऐं सीखें, सिद्धि सकारात्मक दृष्टिकोण माँगे, सर्वहित में अपना भी भला 

समृद्धि से तो भला ही है, चरित्र ऐसा हो सब सहकार करना चाहें, निज दिखे निष्पक्षता 



पवन कुमार,

२३ अक्टूबर, २०२३ सोमवार समय २२: ५८ रात्रि 

(मेरी चेन्नई डायरी ११ मार्च, २०२३ मंगलवार से)