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Sunday 1 July 2018

कठिन मूल-भेदन

 कठिन मूल-भेदन
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सृष्टि-चलन एक महातंत्र, बहु कारक, सतत घटित, अनेक रहस्य विस्मयी 
कौन जग को पूर्ण मनन में सक्षम, प्राणी क्षीण-चिंतक, विचार मात्र सतही। 

विशाल सृष्टि, बहुल-विस्तृत अवयव, चिर-दूरी मध्य, स्पष्ट संदर्भ भी न दर्शित 
सब अपनी जगह नन्हें जग में मशगूल, न स्वयं कष्ट चाहते, औरों में रूचि न। 
एक जड़त्व सा प्रकृति में, शेल्फ्स पर पड़ी पुस्तकें अपने से न कहती पढ़ लो 
काफी समय से सम-स्थिति में भित्ति पर लटका तार, न कहता ठीक कर दो। 

कह सकते कुछ वस्तुऐं निर्जीव, कुछ सजीव, उनमें भेद किञ्चित दृष्टि-गोचर 
जीवन-शास्त्र कृत अंतर सूचीबद्ध, प्राणी-जगत वनस्पति-जीव में है विभक्त।  
वे फिर विभिन्न श्रेणियों में बाँटे गए, जब तक स्पेसिस तक न हो जाय चिन्हित  
कुछ संबंध भी दर्शाया उनके मध्य, पर इतना बड़ा जग सर्व न संभव समझ। 

सब वृक्ष निज-स्थल तिष्ठ, हवा संग झूम लेते, प्राकृतिक सर्दी-गर्मी सहन करते  
स्पंदन सा तो है चाहे दर्शन असुलभ, पुराने पत्ते पीत होकर स्वतः पतित होते। 
नवांकुर प्रवेशित, फूल-फल निर्माण, शनै प्रक्रिया, ध्यान दें तो कुछ ज्ञान संभव 
अंतः गति-प्रक्रिया अति-जटिल, वैज्ञानिक लघु-रहस्य समझने में लगाते जीवन। 

हर निज में महारहस्य, मूल-भेदन कठिन, विज्ञान निश्चितेव प्रखर-जाँचन ग्राही
यहाँ तक कि एक रेत-कण में भी पूरी कायनात है, कई तत्वों का बना वह भी। 
कई भौतिक-रासायनिक क्रियाऐं उस या मातृ-घटकों पर, जिससे अद्य स्वरूप 
कौन मृदा कहाँ दबी, ठोस बनी, जल-वायु प्लावित, घर्षण से पाषाण बना कण।  

समक्ष काष्ट-फ्रेम की ग्लास जड़ित खिड़की, वर्तमान रूप में कहाँ इतना सरल 
किस्म, मूल तत्व, थोथी-ठोस, कितनी सीजन, साफ या गाँठे, बाहर से रंजित।  
इसके अंदर चिटकनी-हैंडल लगे, जोड़-कब्जें, एक घर्षणमयी गुण, कस लेते 
कील-पेंच भी अति-उपयोगी पुर्जे, लसलसे संग विभिन्न भाग परस्पर जोड़ देते। 

गिर्द भिन्न वस्तु-पदार्थ-तथ्य-स्थिति का अपूर्ण ज्ञान ही, जग तो और अति-विस्तृत 
भीत-पलस्तर, रंग-रोगन, फर्श-टाईलें, कुर्सी, सूती-गर्म वस्त्र, रजाई सब समृद्ध। 
देह-मन रचना, आंतरिक प्रक्रिया, कई छोटे-बड़े अंग, हर की पृथक बनावट-गुण 
कर्रेंट, मोबाईल-कम्प्यूटर, चश्मा-कलम, भाण आदि, निकट-समझ अति-विरल। 

फिर भी चलते है जितना बनता है, कोशिश करो, 
अपनी कमजोरियाँ जानने के बाद ही ताकत आती है। 


पवन कुमार,
०१ जुलाई, २०१८ रविवार, समय १८:१३ सायं 
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी दि० २८ मार्च, २०१८ समय ९:४१ प्रातः से )  
   

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