Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Sunday 10 January 2021

निर्मल धारा

निर्मल धारा 

----------------

थोड़ा प्रकाश भी आवश्यक एक आशा हेतुअंधकार में प्राणी सशंकित ही रहता 

एक पथ प्राप्त गति हेतुमन कुछ आशान्वितचलो अधिक खतरा  अब दिखता। 

 

एक रोशनी-किरण भी अँधेरा चीरने में सक्षमअतः हममें आशा जगनी चाहिए ही 

नित सकपकाए-भीत-निराश-असमंजस  रहेंअंततः जीवन-पर्याय ढूँढने जरूरी। 

माना कई जग-व्यवधानलोग बहु-क्लेशग्रसितगरीबी-शोषण-अशिक्षा व्याप्त अति 

पर साहसी  समस्याओं से निबट लेतेजीवन सरल होतास्थिति सुधरती ही रहती। 

 

देखिए दुनिया विकास पथ परअनेक प्राण सुधर रहेलोग बढ़िया खा रहेंजी रहें दीर्घ

घोर निर्धनता घट रहीशिक्षा का स्तर-प्रसार बढ़ासंचार-तंत्र सशक्तजन निर्भीकतर। 

विभिन्न क्षेत्र-राज्य-राष्ट्रया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई संगठनआम मनुज की करते बात

किसी को दबाना अब कठिन, शासनों को उत्तर देना पड़ताअसहनीय अन्याय आज 

 

मैं मानता वर्तमान जग-व्यवस्था ऐसी जहाँ सब लोग शामिलवे अपनी नज़रों से देख रहे 

पहले से अधिक जागरूकसब शासकीय-देशीय-अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं से परिचित रहते। 

कई तरह के विचार-आयाम समक्ष आतेपरिपक्व बनातेएक निर्मल धारा में बहने लगते 

तब अड़ियलपनव्यर्थ श्रेष्ठता-भावबल-ज्ञान गर्व दुर्बल आरंभ,  नर परस्पर पास आते। 

 

एक आशा प्रबल चाहिए सब व्यवधानों से निर्गम संभवअब तक भी तो जैसे-तैसे जीवित

तुम जीवन कदापि हेय  समझोहाँ कई आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियाँ करे व्यथित। 

पर घबराने की किंचित भी  आवश्यकताकोई करुण सहाय  ही जाएगा समय पर 

हाँ निज हाथ जगन्नाथ चाहिएजब स्वयं खड़े होवो तो भाग्य भी खड़ा होगाजागो अतः। 

 

हमें व्याप्त थोड़े अंतरों का आदर करना चाहिएछोटी-मोटी पहचान की कद्र भी जरूरी  

हाँ निज को एक सम्मानित  पटल पर लाने हेतु बड़ी पहल होसस्ते  में  बैठना चाहिए। 

विश्व में लघु प्राणियों को भी स्व अधिकार रक्षा करते हुएदेखा जा सकता ही बड़े सहज 

कुत्ता भी अपनी गली में शेरनीड़ निकट जाने पर पक्षी शोर मचातेस्वार्थ समझते सब। 

 

यहाँ दबी-कुचली-त्रसित-दमित-संतापित-प्रताड़ित-निम्न जीवन बहुल मानवता खंड को क्या संदेश 

कि वे कदापि निज को  कमतर आंकेंमाना परिस्थितियाँ आज विषमपर भाग्य परिवर्तित सदैव। 

तुम्हें अंतः-स्थल में एक पूर्ण विश्वास रखना होगासुयोग्यों को प्रेरक मार्गदर्शक रूप में होगा देखना 

अपने दुराग्रह-ईर्ष्या-द्वेष-संकीर्णता तजएक उच्चतर मानव रूप में स्व-स्थापन निज दायित्व समझ

भली आशा का दामन पकड़उन्नतिपरक सकारात्मक दिशा में उत्साह-मनोबल संग बढ़ते है जाना। 

 

 

पवन कुमार,

१० जनवरी२०२१ रविवार समय :२३ बजे प्रातः। 

(मेरी डायरी २० अक्टूबर२०२० मंगलवार समय सुबह :०१ बजे से)      

2 comments: