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Monday 5 September 2022

मन - उड्डयन

मन - उड्डयन 

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चलो देखते कितनी उड़ान हो सकती, कहते हैं मनन की सीमा कोई  

अनेक बाह्य आवरणों से यह पूर्वाच्छादित, गुह्य स्वरूप दर्शन सरल। 

 

उड़ान तो नभ में ही है संभव, विस्तृत गगन समक्ष मात्र पक्षों को है संभालना 

वक्ष में बल,  पूर्ण साहस दृष्टि पैनी, दूर-विचक्षण की मन में प्रबल लालसा। 

एकान्त-प्रेम, लक्ष्य प्रखर, परत-दर-परत रहस्योद्घाटन, उन्मादी सा मानस 

मंजिल-स्पर्श बललग्नशील, अभीक, पूर्ण व्यक्तित्व, मानस से तट पर वास। 

 

निगूढ़ शून्यता, मात्र आत्म ही, किसी बाह्य से किंचित द्वेष-कुत्सा या भय

निज कार्यक्षेत्र, पूर्ण शक्ति-प्रयोग, जितनी अधिक गति वर्धित तथैव उत्तम। 

अनेक बाधाऐं मध्य में, निबटना भी कला, हर क्षुद्र विचार पर देना ध्यान 

समय-ऊर्जा महत्त्वपूर्ण, सदुपयोग से सुरम्य राह खुले अनुपम से मिलनार्थ। 

 

मेरी सीमाऐं क्या मात्र मनन-लेखन तक ही हैं, या कहीं अग्रिम भी संभावना 

क्यूँ अटके आकस्मिक आयामों में, या स्वयं ही अवाँछित विषय उठा लेता। 

सतत प्रवाह बाधित, किसी रमणीय-लक्ष्य में लगती ऊर्जा यूँ बाहर छितरित 

पर अभी प्रण मात्र स्व में लोपन का ही, कुछ श्रेष्ठ अंतः से हो जाए निकसित। 

 

यह उड़ना क्या है बस एक संकुचन सा, साँप ने है स्वयं को केंचुली में लपेट रखा 

कूर्म बाह्य खोल में लिपटा, झाऊ मूसा अंतः-अंगों को कांटे सम बालों में समेटता। 

घोंघे ने शंख-कोकला पहन रखा, पंछी तो लघु बस पंख उसको बड़ा सा दिखते  

विशाल महल में नृप एक लघु कक्ष के पलंग पर सोता, बड़ा फटाटोप ऊपर से। 

 

शरीर तो विशालाकार पर मन-बुद्धि तो मस्तिष्क-ललाट पर ही समक्ष बसती 

मन भासित चेतन-अवचेतन में व्यस्त सा, विचक्षण रूप भी दिखा जाता कभी। 

यह दिव्यात्मा भी देह में  कहीं छुपी सी रहती, नाद करती मैं यहाँ चिहुककर  

नीली व्हेल की प्राणियों में महदतम देह, सोचती तो सूक्ष्म मन से ही होगी पर। 

 

सब निज मनन-स्तर पर विकसित, पर अनिवार्य  प्रत्येक पकड़ ले कलम 

सभी जीव स्व भाँति विकसित, मानसिक श्रेणी पर वे एक स्तर है संभव। 

बौद्धिक उपलब्धियों की तुलना यहाँ , पर मानव- में अनेक विविधताऐं 

जब किञ्चित भी मति प्रयोग शुरूज्ञान-वैभव की अविरल धारा लगे बहने। 

 

एक महाकाय दानव लेकिन जान तोते में, इसी तरह हम सबका है हाल कुछ 

ऊपर से अति रुक्ष-कर्कश-वीभत्स प्रतीत, अंतः अतीव मृदु संवेदनशील पर। 

पहलवान एक विशाल डील-डौल बना लेता, पर दिल तो उसकी नन्हीं बच्ची में  

यह जग सब गुड़ियों का खेल सा, चाहे-अचाहे व्यस्त रहते छोटी-बड़ी चीजों में। 

 

एक बड़ी हथिनी से नन्हा शावक जन्मता, बड़े जतन-प्रेम से सहेज-पालन करती 

निज बच्चे की देह आकार का ध्यान है, तथापि बछड़े को भी चतुर समझती। 

प्रेम-स्नेह-वात्सल्य-दुलार-आत्मीयता ऐसे भाव हैं, तुलना करते बस जुड़ जाते 

आपसी मृदुल-संबंध अहसास से जीवंतता आती, स्वार्थ तज हम निर्मल बनते। 

 

माँ नन्हे-मुन्ने में ही खोई रहती, उसका ही ध्यान ही किञ्चित काम एक बस 

पवित्र-स्नेहिल दृष्टि उसे आत्म-रूप ही तो मानती, माना कि एक छोटी रूह।

चंचलता मन में रहती बस काम से मतलब, मन-निकटता में ही प्रमुदित 

बूढ़े माँ-बाप देख एक जैसे होने का अहसास होता, कोई भी दूरी समक्ष। 

 

तब स्वार्थ तजना आना चाहिए, अपनी औलाद प्रति यदा-कदा क्यूँ विरोध  

कर्कश सा हो संतति से विद्वेष की सोचते, जैसे वे हैं तुम्हारा एक भाग। 

नर-हृदय इतना विपुल तो होना ही चाहिए, संतानों का करें भले से पालन  

माना सबका निज कमाई से भरण-पोषण हो, पर कुछ तो कर्त्तव्य-तात। 

 

संबंधी, बंधु-मित्रों पर ध्यान देना चाहिए, उनके जीवन में भी हो कुछ  प्रगति 

जो भी आर्थिक-सामाजिक-नैतिक संबल दान संभव, उदार हो खोल दो मुष्टि। 

एक की उन्नति का निकटस्थों को लाभ मिलना चाहिए, आखिर वे जाऐं कहाँ 

उन्हें सक्षम-निर्माण में सहयोग-आवश्यता, श्लाघ्य क्षीण-पक्ष प्रति नेत्र मीचना। 

 

तुम अपना विराट स्वरूप पहचानो, बिना प्रमाद भयरहित होकर काम करो 

लोक की तुमसे बड़ी आशा, अपना प्रेम तो बिखेरो, संग सुयोग्य करो उनको। 

वे भी योग्य बन निज पैरों पर खड़े हों, जीवन प्रति बनाए सकारात्मक रुख  

सर्व नियम जन-स्वावलंबन के, अवरोध हटा राह सुगम कर चलो अवरुद्ध। 

 

आओ बड़ा सोचें परिवेश सुधारे, हर किसी को पनपने का प्रदान हो अवसर 

नीति-निर्माण में सहयोग हो, अमल भी जरूरी, सुनिश्चित करो जो श्रेष्ठ संभव। 

 

 

पवन कुमार,

सितंबर, २०२२ सोमवार, समय :१५ बजे प्रातः  

     (मेरी महेंद्रगढ़ डायरी ११ सितंबर, २०१८ मंगलवार प्रातः :५३ बजे से

                                                                                                                                                                                                                                                                 


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