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Monday 1 April 2024

फूंका जीवन फिर एक बार

फूंका जीवन फिर एक बार

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आज अपने आत्म में, मैं भ्रमित सा हो गया

विश्वास के संग से, कुछ विरक्त सा हो गया।


चाहकर भी बल अपने अंतः में न जुटा पाता 

पता नहीं क्यों भय, मन में घुस सा है आया। 

हालाँकि बिलकुल निश्चिन्त, सब शुभ होगा ही

लेकिन कभी-२ शायद, ऐसे क्षण आते हैं भी।


कभी साहस का दामन तो पकड़ा था हमने

फिर शक्ति का ह्रास, क्यूँ अनुभव मन में? 

क्या तुमने आत्म-विश्वास दिया बिलकुल खो

जो जरा सी यहाँ ठोकर लगी, और दिए रो।


शक्तिशाली को ही, यह जगत शीश नवाता 

फिर गरदन झुकी रही, तो जीना ही कैसा ?

फिर से फूंक दे उस अग्नि को इस स्वांतः में

जो कि पुन: तुम्हें पूर्ण ज्योतिर्मय ही कर दे।


उठकर प्रभु नाम ले, सबकुछ अच्छा कर देगा

नित रहो साथ तिहारे, नाम अमर वो कर देगा।

श्रेष्ठता -ध्येय बना, जीवन-सीढ़ी चढ़ते चला जा

देखोगे कुछ समय में ही, स्तर अति बढ़ गया।


कदापि न सोचो क्षीण तुम, वीरता-संवाद करो 

भागेगी पराजय मुख छुपा, यदि तुम संयम धरो।

अपने मन-मीत बनो तुम, सब अच्छा हो जाएगा

बंसी निज मधुर बजा, कन्हैया स्वयं तान देगा।



 पवन कुमार, 

१ अप्रैल, २०२४, ब्रह्मपुर ओडिशा समय १२:४८ म० रात्रि  

(मेरी डायरी २७ जनवरी, २००२, रविवार, समय ११ बजे रात्रि, 

क्लीव कॉलोनी, के.लो.नि.वि., शिलाँग - ३, मेघालय से ) 


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