क्षेत्र-उपयुक्तता
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उपयुक्तता हर क्षेत्र में अनिवार्य है नितान्त
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उपयुक्तता हर क्षेत्र में अनिवार्य है नितान्त
कहाँ किसे क्यों कैसे प्रयोग किया जाए, है प्रश्न विशाल।
कैसे बने प्रयोजनार्थ निपुण, उपयोगिता बढाने क्षेत्र की
जो उचित सदा वांछित, सब प्रयास हेतु उसी।
उचित और समुचित योग्य हेतु ही, युक्ति सब बनाई जाती
थोथे को झाड़ दिया जाता, अन्न दानों निमित्त ही कृषि की जाती।
व्यर्थता कैसे कम की जाए ताकि उत्पादकता-क्षमता बढ़े
कैसे हो वृद्धि - विकास, उचित मार्ग चिन्हित करे।
दिव्य दृष्टि ऐसी पाई जाऐ जो मंज़िल पर इंगित हो
ढूँढे जाए कैसे वे योद्धा, जो रण-कुशल एवं समर्थ हों।
हर पहलू में एक 'सर्वश्रेष्ठ युक्ति', जिसकी सदा ख़ोज है
समस्त विद्यालय, प्रशिक्षण केंद्र उसी लिए कृत-संकल्प हैं।
उपयुक्त, प्रशिक्षित, उपलब्ध बनाना, जग के भिन्न आयामों हेतु
मानव क्रियाओं को संग्रहित करना और उद्देश्य-मुखी सेतु।
क्या है विशेषज्ञता का दर्शन, कदाचित सर्वोत्तम बनना एक
बहुत आवश्यक है जग यापन के, हेतु विभिन्न कार्य-क्षेत्र।
सभी मानवों में हुनर का बढाव, विश्व को बनाएगा सुरमय
उद्देश्य परस्पर पूरक बनना, विविधता मात्र कार्य वितरण।
सबकी अपनी अभिरुचियाँ-शैली, एक-दूजे से कुछ अलग बनाती
अपनी दिशा में पारंगत होना चाहते, वह भी माना भली ही।
पर सोकर, प्रमाद में जन्म गँवाना तो बहुत समझदारी नहीं
महद संकल्प में समर्पित होना ही, मानव-जीवन की है कसौटी।
कैसे ढूँढते उपयुक्त पात्रों को, उन हेतु मारा-मारी सर्वत्र
सब योग्य मित्र चाहते, नव-प्रशिक्षुओं को योग्यों में बदल।
माना कुछ शिक्षित हो भी जाऐ, तो भी आवश्यकता दक्षता की
सतत तैयारी-वृद्धि, बड़ी भूमिका में भागीदारी सुनिश्चित करेगी।
कार्य में कुशल-प्रवीणता, अपने लिए सम्मान दिलाती
पर उस हेतु कार्य करना पड़ता, मुफ्त में श्लाघा न मिलती।
चेष्टा वृद्धि, न्यूनतम सततता, उस विधा में निखार लाती
सीखना सूक्ष्म दाँव-पेंचों को, जग-निर्वाह न इतना सरल भी।
क्या हो सीखने का ढंग, नहीं चलाना धूल ही लाठी
क्यों नहीं पूछ लेते सहकर्मी-ज्ञानियों से, कौन सा ढंग है ग्रहणी ?
एक समय सब अनाड़ी ही होते, पर चेष्टा कुछ देती सिखा
उपयुक्तता का मार्ग खुलता, उच्च विचार करते प्रतीक्षा।
सभी अपने क्षेत्रों में धनी, अपने कर्मों को बखूबी जानते
कहाँ, कैसे, क्या करना है, उचित पथ में ही ऊर्जा लगाते।
सूर्य का स्वभाव ऊष्मा, प्रकाश देना, चन्द्र शीतल रोशनाई बिखेरे
पुष्कर निर्मल जल से आनन्द देता, कुमुदिनी, कमल उसमें मुस्कुराते।
आम्र वृक्ष पर ही आम लगेंगे, कंटीली बद्री बेर ही देगी
पीपल, वट गहन छाया देंगे, सूक्ष्म बीज महद सम्भावना रखते।
चन्दन द्रुम सुगन्धि देता, बहुत मूल्यवान - कुछ ही पा सकते
पर हर वन में तो वे न पनपते, गुण कारण बड़ी माँग है रखते।
हर भुजंग मणि न रखता, हर गज मुक्तक न बाँटता
हर चलने वाला ज्ञानी न होता, हर वृक्ष छाया न देता।
हर शिक्षक पारंगत न होता, नचिकेता न होता हर विद्यार्थी
हर कोई न्यूटन, आइंस्टीन न बन पाता, तो भी कोशिश कुछ बनने की।
माना कुछ ही श्रेष्ठ होते, तो भी जग-निर्वाह सबकी जिम्मेवारी
स्व को योग्यतर बनाना, उपयुक्तता में वृद्धि कराती।
जीवन को समृद्ध बनाना गुणों में, स्व को तो देगा ही ढाढ़स
इस कायनात को भी बेहतर बनाएगा, अतः सब-मिल करें प्रयास।
किंचित संवाद स्व से स्थापित करें, महद लक्ष्य मस्तिष्क में बने
उपयुक्तता सुनिश्चित करें, हर ओर विकास पुष्प महकें।
धन्यवाद।
पवन कुमार,
25 अप्रैल, 2015 समय 20:15 सायं
25 अप्रैल, 2015 समय 20:15 सायं
(मेरी डायरी दि ० 19 मार्च, 2015 समय 10:29 प्रातः से )
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