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Sunday 10 May 2015

तमन्ना

तमन्ना 
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मेरे मन की गुंजन, कुछ जीवन स्पंदित कर दे 
वसंत सुरभि आकर मन-मस्तिष्क पुलकित कर दे। 

बैठा हूँ असमंजसता में आकर कोई पुनः जगा दे 
जाग जाऊँ, आऊँ होश में, ऐसी कोई ललक जगा दे।  
कुण्डिलिनी सोई पड़ी है, उसकी शक्ति कोई दिखा दे 
स्व-पहचान पा जाऊँ, आकर कोई दर्पण दिखा दे। 

महबूब-मिलन की तमन्ना, कभी आकर पूरी कर दे 
मिलन के आनंद-अहसास का परिचय करा दे। 

उचित प्रयास एवं बुद्धि का संयोग करा दे 
निरंतर चलायमान रहूँ, तन्द्रा को दूर भगा दे। 
जीवन जीने का पथ उचित कोई समझा दे 
मन में रहे सदा विवेक, उत्साह को संगी बना दे। 

मैं तेरा और तू मेरा, आओ सब भेद मिटा दे 
समस्त दूरी पटे, सब जग को एक घर बना दे। 
मम आकांक्षाओं को पर लगा, सब भीत को दूर भगा दे 
दुर्बलताओं का कर बलिदान, क्षमता-आकार बढ़ा दे। 

यूँ न लेटा रहूँ शव सम, जीवन-सार तू समझा 
किंकर्तव्यमूढ़ता से हटा, सब कर्तव्य याद दिला। 
जीवन सार्थक तभी बनेगा, प्रश्नचिन्ह चित्त से हटे
कुछ बाकी रहे तो उत्तरों को समक्ष ला दे। 

करूँ जीवन-विस्तार, विभिन्न कलाओं का हो सार 
अच्छा साधक बन जाऊँ, पूर्ण करूँ कुछ तो पसार। 

पवन कुमार,
10 मई, 2015 समय 16:16 अपराह्न 
(मेरी डायरी 10 मार्च, 2013 सायं 6 बजे से )  

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