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Sunday 28 October 2018

श्री बाणभट्ट-कृत कादम्बरी : प्रणय-कथा (पूर्व-भाग) : परिच्छेद -१

श्री बाणभट्ट-कृत कादम्बरी : पूर्व – भाग
( हिंदी- भाष्यांतर )

परिच्छेद - 

स्तुति है उस अजन्मे, स्रष्टा, पालनहार एवं संहारक की जो त्रिरूप त्रिगुण है, जो वस्तुओं के जन्म में क्रिया, उनकी निरन्तरता में कल्याण और उनके संहार में तिमिर दर्शाता है।

महिमा त्र्यंबकम के चरण-रज की, जो बाणासुर के मुकुट द्वारा आदर-स्पर्श है, इससे भी अधिक यह रावण के दस मुकुट-मणि वलयों को चूमती है, जो देव-दानव अधिपतियों के मस्तकों पर शोभायमान है, और हमारा क्षण-भंगुर जीवन नष्ट करती है।

कीर्ति उस विष्णु की, जो दूर से ही प्रहार-संकल्प करके, यद्यपि स्व-क्रोध से प्रज्वलित नेत्रों से एक क्षण दृष्टि डालकर अपने शत्रु का वक्ष-चिन्हित करता है जैसे कि यह भी स्वयं ही फट जाएगा।

मैं विभूषित मौखरियों द्वारा सम्मानित गुरु भत्सु के चरण-कमल में नमन करता हूँ, जिनकी चरण-पादांगुलियाँ निकटवर्ती नृपों के शीर्षों के एकत्रित मुकुटों द्वारा निर्मित पादपीठ पर घिसने से पीतवर्णी हो गई हैं।

कौन है वह खल जो अकारण रिपुता से भीत होगा, किसके मुख में निंदा-सर्प विष सम सदा ही निगलने में बहुत ही कठिन नहीं है ?   

खल शृंखलाओं (बेड़ियों) सम कर्कश गुंजायमान होते हैं, गहरे घाव करते हैं और चिन्ह छोड़ते हैं, जबकि साधु-जन मणि-जड़ित नूपुरों भाँति सदा मधुर-ध्वनियों द्वारा चित्त प्रसन्न करते हैं।

दुर्जन में विनीत शब्द कण्ठ के नीचे तक नहीं जाते हैं जैसे राहु द्वारा अमृत-ग्रास। उत्तम नर उन्हें निरंतर अपने उर में धारण करता है जैसे हरि अपनी विशुद्ध मणि को।

रमणीय वाणी की सौम्यता से मृदु एक कथा उर में निर्मल रस-भाव उत्पन्न करती है, यह सहज अनुभूति संग अपने स्वामी के अधिकार में स्वतः ही प्रफुटित होती है जैसे कि एक नव-वधू।       

कौन वाणी की निर्मलता में सज्जित और दमकते शब्द-दीपों द्वारा प्रदीप्त उपमाओं एवं कथाओं द्वारा सम्मोहित नहीं होगा, कथन-निरूपण से गुँथी रुचिर कथाऐं क्या चम्पा-कली की चमेली-कुसुमों संग बनी माला सम नहीं है ?

एक बार वात्सायायन कुल में उत्पन्न कुवेर नामक एक ब्राह्मण था जिसकी समस्त विश्व में उसके गुणों के कारण कीर्ति थी, वह सज्जनों का मार्गदर्शक था। उसके चरण-कमल बहुत से गुप्तों द्वारा पूजित थे, और वह ब्रह्मा का एक अंश मात्र ही प्रतीत होता था।

उसके मुख पर सरस्वती निवासित थी क्योंकि इसमें समस्त विकार वेदों द्वारा शमन कर दी गए थे; उसके ओष्ट यज्ञभाव से पवित्र थे, तालु सोम से कटु था और वह स्मृति एवं शास्त्रों द्वारा प्रसन्न था।

उसके आवास में बालक भयभीत थे क्योंकि जैसे ही वे साम यजुर्वेद की ऋचाऐं दुहराते थे, पिंजर-बद्ध शुक-सारिकाओं (तोता-मैना) द्वारा हर शब्द पर झिड़क दिए जाते थे, जो उन शब्दों से सम्बन्धित प्रत्येक विषय में पूर्ण प्रवीण थे।

उससे अर्थपति उत्पन्न हुआ जो द्विज-स्वामी था, जैसे ब्रह्माण्ड (विश्व-डिम्ब) से हिरण्य-गर्भ जन्मा, जैसे क्षीरसागर से इंदु या विनता से गरुड़। जैसे ही उसने दिन-प्रतिदिन प्रातः अपना विस्तीर्ण प्रवचन प्रकट करना प्रारम्भ किया, श्रवण-इच्छा लिए शिष्यों के नए दल उसको नव-महिमा देने लगे जैसे कर्ण पर नूतन चन्दन-पल्लव।

असंख्य यज्ञों के मध्य महावीर अग्नियाँ प्रज्वलित करके अर्पित भेंटों से सुसज्जित यज्ञ-वेदी के स्तम्भों को कर में उठाने से वह वैसे ही सुगमता से विजयी हो जाता था जैसे देव-नगरी में एक गज-दल।

उचित समय पर उसे चित्रभानु नामक पुत्र प्राप्त हुआ जो श्रुति एवं शास्त्रों में पारंगत, नेक यशस्वी पुत्रों में स्फटिक सम कांतिमान था जैसे पर्वतों में कैलाश।

उस श्रेष्ठ पुरुष के गुण शशि की एक इकाई सम, यद्यपि निर्दोष, ज्योतिर्मय एवं दूर तक पहुँच कर शत्रुओं के हृदय में भी गहन प्रवेश कर जाते थे, जैसे नरसिंह के पैने नख।

अनेक यज्ञों का कृष्ण धूम्र आकाश-देवियों की भ्रूओं पर अलकों भाँति उठता था अथवा तमाल-शाखों सम वधू-कर्णों पर, और त्रिवेद अध्ययन ने उसकी कीर्ति को अतिरिक्त कांतिमय बना दिया था।

जब सोम यज्ञ की थकन से उसके ललाट पर उत्पन्न स्वेद सरस्वती के बद्ध कमल-हस्तों द्वारा पोंछा जाता था और जब सप्त-विश्व उसकी कीर्ति-रश्मियों से दीप्तिमान हो गए थे, तब उससे एक पुत्र बाण उत्पन्न हुआ।

तथापि मूक शब्दों में भी मन अपनी निरी मूढ़ता-तिमिर द्वारा अपनी मूल-मंदता में अंध जिसने सामान्यतया कभी तर्क-चातुर्य रसास्वादन नहीं किया, उस ब्राह्मण द्वारा अन्य दो कथाओं (वासवदत्ता एवं बृहत्कथा) और यहाँ तक कि कादम्बरी को मात देते हुए इस कथा का विधान किया गया।
....... क्रमशः ........  

भाष्यांतर

द्वारा 
पवन कुमार,
(२८ अक्टूबर, २०१८ समय १८:०३ सायं)

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