Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Monday 15 June 2020

प्यार-प्रेम पथ

प्यार-प्रेम पथ
----------------- 


हम क्यूँ जल्दी करते, आपसी रिश्तों का भी न कोई ध्यान 
खुद में ही सुबकते रहते, कई खुंदकें दिल में रखी  पाल। 

अंततः इंसान हैं कौन, क्यों अपनों से मन की न सकते कह 
परस्पर के सुख-दुःख में सम्मिलन की होनी चाहिए पहल। 
क्यों सदा अपेक्षाऐं ही कि कोई निज आकर ही करे सलाम 
या पहल से तो छोटे हो जाऐंगे, जग के नाज़ो-नखरें अजीब। 

कई वहम पाल रखे मन में, दूजों की साधुता तो ख़्याल में न 
निज दर्द कहने का भी न साहस, अंदर से ही सुबकते बस। 
खुलकर ख़ुशी में न मुस्कुराते, यदा-कदा बस औपचारिकता 
नेता-अभिनेताओं के तो भक्त, पर निकटस्थों से है बिदकना। 

इतनी नीरसता क्यूँ जीवन में, क्यों न कोई बाल-मुस्कान सराहें 
इतना दिल कि भतीजे-भांजे, रिश्तेदार के बच्चों को प्रेरणा दें। 
परस्पर कद्र करनी चाहिए, पर बड़ाई करने भी साहस चाहिए 
दिल क्यूँ है संगदिल, जमाने संग बहो, शायद खुश रह सकते। 

क्यूँ अपेक्षाऐं जग से, शायद चाहते कि किंचित और अच्छा हो 
आशा कि बंधु खूब  तरक्की करें, खरा न उतरने  पर है क्षोभ। 
पर खुद कितना उन हेतु झोंकते, निवेश हिसाब  से ही उत्पाद
सफल निर्वाहार्थ सहयोग माँगता, खुंदकी से तो  बस खिंचाव। 

ये कैसे रिश्ते औपचारिकता भी न, साधन बाँटना  बात ही और 
कभी खट्टे-मीठे बोल भी न, शिकायत निर्वाह करना भी सीखें। 
क्या ज्ञानेद्रियाँ बस अनुभव हेतु, या अपने भाव भी कर दें प्रकट 
कहना-सुनना सहज प्रक्रिया, संवादहीनता निस्संदेह ही मारक। 

यूँ जीवन बीत रहा स्व-खिंचन में ही, पर शिकायतें भी न ज्ञात
बस कुछ उल्टा-सीधा सुन रखा, कई भ्रांतियाँ हैं स्व-निर्माण। 
एक सहज रिश्ता जो  सुलभ संभव, यदि मन-अहंकार  त्याग 
न कभी बात न लेना-देना, हमें क्या वे अपने को सोचते बड़ा। 

हम प्रेम पालें, परस्पर आदर करें, मन की बताऐं उनकी सुनें 
जीवन सदा भागता ही, क्यों न कहीं ठहर कुछ पल बाँध लें। 
आपसी लाभ भी लेना चाहिए, प्रयोजन हेतु बहिर्चरण जरूरी 
सीखना जरूरी जग  से निबटने हेतु, एक पथ प्यार-प्रेम भी। 

सारी जग खिंचा पूर्वाग्रहों में, सुबह से शाम तक शिकायत ही 
सब रिश्ते कुछ खिंचे से, बाप को बेटे से, बेटी को माँ से ग्रंथि। 
वह भी कोई  समस्या है न, यदि दृष्टिकोण सकारात्मक-हितैषी 
 कर्मठता - नियति जरूरी, सहयोग लेन-देन में न झिझक ही। 

उत्तम जग-स्थल निर्माण  दायित्व सबका, आओ सहयोग करें 
कुछ गुण कार्य-निष्पादन मूल्यांकन विवरणी के भी अपना लें। 
पहल-शक्ति एक सुगुण, उसके बिना अनेक  बाधित  रहते हैं 
बाल-सारल्य त्याग वयस्क समझने लगें,  दुनिया से  कट गए। 

बस अपने को सिकोड़े जा रहें, दुनिया से भी कई शिकायतें 
चलो है सुधार-आवश्यकता, पर कौन रोकता न बढ़ो आगे। 
जग मात्र हम जैसों का जमावड़ा, कह दो यदि कुछ कटु भी 
शिकवा छोड़ वृहद-हित सोचें, सफलता हेतु खटना पड़ता । 

जीवन डिज़ाइन होना ही चाहिए, अनेक पहलू साधना माँगते 
क्यूँ इसे दोयम रखे, कुछ और हिम्मत करके दुनिया लाँघ दे। 
क्यूँ फिर अल्प-संतुष्टि, जब कई राहें खुलीं मंजिलों हेतु  बड़ी 
अभी समय है  व्यवधान लाँघो, सोचने में भी है ऊर्जा लगती। 

कभी यूँ ही मुस्कुरा दो, लोग इतने भी न कर्कश अर्थ न समझे 
संकेत भी लेने  आने  चाहिए, कोई फालतू  तुम ऊपर न पड़े। 
दुनियादारी एक अजीब सर्कस, बनो एक प्रशिक्षक-सुप्रबंधक 
अनेकों ने है परिवेश महकाया, देखना शुरू करो मिलेंगे बहुत। 

ऐ जीवन, कृपा करो, रहम-दिल बनाओ, सर्व-दर्द समझ सकूँ 
सर्वजग एक कुटुंब सा बने, एक माली भाँति हर पादप सीचूँ। 


पवन कुमार,
१४ जून, २०२० रविवार, समय १२:०० बजे म० रा० 
(मेरी डायरी १३ जुलाई, २०१८ समय ८:३४ बजे प्रातः से) 
 


2 comments: