Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Monday 29 June 2020

ख़ानाबदोशी-खोज

ख़ानाबदोशी-खोज
----------------------


एक ख़ानाबदोश सी  जिंदगी, निर्वाह हेतु हर रोज़ खोज नए की
सीमित वन-क्षेत्र, कहाँ दूर तक खोजूँ, शीघ्र वापसी की मज़बूरी। 

कुदरत ख़ूब धनी बस नज़र चाहिए, यहीं बड़ा कुछ सकता मिल 
अति सघन इसके विपुल संसाधन, कितना ले पाते निज पर निर्भर। 
पर कौन बारीकियों में जाता, अल्प श्रम से ज्यादा मिले नज़र ऐसी 
दौड़-धूप कर मोटा जो मिले उठा लो, भूख लगी है चाहिए जल्दी। 

मानव जीवन के पीछे कई साँसतें पड़ी, चैन की साँस न लेने देती 
क्या करें कुछ विश्राम भी न, होता भी तो बाद में न रहता ज्ञात ही। 
मात्र वर्तमान में ही मस्त, भोजन जल्द कैसे मिले ज़ोर इसी पर ही
घर कुटुंब-बच्चे प्रतीक्षा करते, आखिर जिम्मेवारियाँ तो बढ़ा  ली। 

जिंदगी है तो  कई अपेक्षाऐं भी जुड़ी, बिन चले तो जीवन असंभव
फिर क्या खेल है प्राण-गतिमानता, निश्चलता तो मुर्दे में ही दर्शित। 
किसे छोड़े या अपनाऐं, सीमाऐं समय-शक्ति, प्राथमिकताओं की 
सर्वस्व में सब असक्षम, हाँ क्रिया-वर्धन से कुछ अधिक कर लेते।  

दौड़ शुरू की तो देह  दुखती, सुस्त तो व्याधियाँ घेरती अनावश्यक
 व्रत करो तो कष्टक अनुभव, बस खाते रहो तो पेट हो जाता खराब। 
 पूर्ण कार्यालय प्रति समर्पित तो घर छूटे, सेहत हेतु भी होवो संजीदा 
घर-घुस्सा बने रहे तो बाह्य दुनिया से कटे, बस उलझन करें क्या ? 

अकर्मण्य तो अपयश पल्ले, करो तो जिम्मेवारियाँ सिर पर अधिक 
शालीन हो तो लोग हल्के में लेते, सख़्ती करो तो कहलाते गर्वित। 
ज्यादा खुद ही करो तो  अधीनस्थ निश्चिंत हो जाते, काम हो  जाता 
अधिक दबाओ तो रूठ जाते, थोड़ा कहने से भी  मान जाते  बुरा। 

 कटुता का उत्तर न दो तो कायर बोधते, समझाओ तो डर अनबन का  
सहते रहो तो अन्य सिर पर धमकता, जवाब दो तो लड़ाई का खतरा। 
संसार छोड़े तो भगोड़ा कहलाते, चाहे वहाँ भी न मिलता कोई सुकून 
जग में रहना-सफल होना बड़ी चुनौती, हर मंज़िल माँगती बड़ा श्रम। 

सुबह जल्दी उठो तो मीठी नींद गँवानी, पड़े रहो तो विकास अल्पतर 
यदि मात्र कसरत में देह तो बलवान, पर दिमाग़ी क्षेत्र में जाते पिछड़। 
जब वाणिज्य में हो तो झूठ बोलते, सारे चिट्ठे ग्राहक को दिखाते कहाँ 
शासन से बड़ा कर छुपा लेते हो, आत्मा एकदा भी न कचोटती क्या? 

कदापि न परम-सत्य ज्ञान में सक्षम, कुछ जाने भी तो सार्वभौमिक न 
जग समक्ष पूरा सच रखे तो अनेक लोग शत्रु बन जाऐंगे अनावश्यक। 
लोग खुद में ही बड़े समझदार हैं, जो अच्छा लगता वही सुनना चाहते 
बुद्धि को अधिक कष्ट न देना चाहते, आत्म-मुग्धता में ही मस्त रहते। 

धन तो  युजित आवश्यकता-क्षय से, विलास-सामग्रियाँ एक ओर रखें 
सदुपयोग भी एक कला, पहले दिल तो बने उत्तम दिशा में हेतु बढ़ने। 
जब स्वयं विभ्रम में, दुनिया की कौन सी चीज बदल देगी सकारात्मक
नकारात्मक तो खुद ही हो जाएगा, अंतः-चेतनामय क्रिया आवश्यक। 

एक तरफ नींद नेत्र बंद हो रहें, किंतु चेतन गति हेतु कर रहा बाध्य 
एक अजीब सा युद्ध खुद से ही, हाँ विजय उत्तम पथ की अपेक्षित। 
अपने में ही कई उलझनें, अन्यों के अंतः तक जाना तो अति-दुष्कर 
कैसे किसे कितना कब क्यों कहाँ समझाऐं, सब निज-राह  धुरंधर। 

अभी प्राथमिकता स्व से ही उबरने की, चिन्हित तो कर लूँ पथ-लक्ष्य
  बड़ा प्रश्न कर्मियों की सहभागिता का, सब तो यज्ञ-आहूति में आए न। 
बहुदा लोग तो बस समय बिताते हैं, तेरी इच्छा में क्यों सहभागी बनें 
जब तक बड़ा हित न दिखता, क्यों अपने को तेरी अग्नि में झोकेंगे। 

कुछ मेधा हो तो जग समझोगे, अपने ढंग से बजाते लोग ढ़फ़ली 
   किसी भी बड़ी परियोजना हेतु, कर्मियों का मन से जुड़ना जरूरी। 
वे उतने बुरे भी न बस कुछ स्वार्थ, व्यर्थ पचड़ा न चाहते, दूर रहो 
तुम यदि अग्रिम तो यह सफलता, कि अधिकतम अपना समझे। 

चलिए यह थी ख़ानाबदोशी खोज, खुद से जैसा बना खोज लिया 
यह पड़ाव था पूर्ण दिवस-यात्रा शेष, आशा वह भी उत्तम होगा। 
बुद्ध ने मध्यम-पथ सुझाया, हाँ कुछ तो ठीक है हेतु आराम-गुजर 
पर क्या चरमतम तक पहुँच सकते, उसकी खोजबीन जरूरत। 

परम  गति चाहते हो तो होवो पूर्ण-समर्पित, इसमें अतिश्योक्ति न
परिश्रम उत्कृष्ट श्रेणी का, मात्र दूजों को ही देख न रुदन  उचित। 
माना कुछ अन्य संग लगा दिए, उनका तुम पूरा साथ-सहयोग लो 
वे भी तेरी शक़्ल देखते, कुछ जिम्मेवारी देकर फिर नतीज़ा देखो। 

खुद से ही कई अपेक्षाऐं जुड़ रही हैं, अच्छा भी है तभी तो  सुधरोगे 
 कुछ योग्य शरण में आओ, सीखने के जज़्बे बिना कैसे आगे बढ़ोगे। 
खुद से श्रम में कमी न हो,  सहयोगियों को भी पूर्णतया जोड़ लो पर 
कोशिश वे भी संगति से उपकृत हों, योग्यता बढ़नी चाहिए निरंतर। 

सुभीते जीवन-चलन हेतु आवश्यक, नीर-क्षीर भेद करने का प्रज्ञान 
फिर उचित हेतु कष्ट लेने में भी न झिझको, झोंक दो विक्रर्म तमाम। 
तन-मन विक्षोभ की किंचित भी न परवाह, सब आयाम बस लक्ष्य के 
प्रक्रिया में अति ताप-दबाव सहना पड़ता, गुजरे तो आदमी बनोगे। 

एक अत्युत्तम लक्ष्य बना लो जिंदगी का, अभी समय है पा हो सकते 
विगत से भी सक्षम बने हो, कमसकम मन-बुद्धि-देह तो साथ दे रहे। 
किसी भी क्षेत्र में  संभव है उन्नति, जग तो अपना करता रहेगा काम 
तेरा कर्मक्षेत्र ही है कुरुक्षेत्र-युद्ध, पर जीतना तो है लगाकर ही जान। 

मंथन हो जय-संहिता के शांति-पर्व सम, भीष्म -व्याख्यान राजधर्म   
जीवन-सार संपर्क दैव  से प्राप्त, पर सदा उत्तम हेतु रहो कटिबद्ध। 
जीवन में सब  तरह के पक्ष सामने आते, पर न डरो बस चलते रहो 
जीवन समेकित ही  देखा जाएगा, अविचलित हुए कर्मपथ में बढ़ो। 

धन्यवाद कलम ने आज यह यात्रा कराई,  इसी ने बड़े कर्म करवाने
यही मस्तिष्क की कुञ्जी, कर्मक्षेत्र में बढ़ने को यही प्रेरित करती है। 
कल्याण इसी से होगा इतना तो विश्वास, समय बस प्रतीक्षा रहा कर 
इसका संग, न कोई ग़म, जहाँ ले जाएगी जाऊँगा, सब होगा उत्तम। 


पवन कुमार,
२९ जून, २०२०, सोमवार, समय ६:१७ सायं  
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी ९ अगस्त, २०१७ मंगलवार, ८:०७ बजे प्रातः से) 
   

11 comments:

  1. Rajender Lamba : Sir well Saïd n nicely explored thoughts👍🏻

    ReplyDelete
  2. रामदत्त: आपका ये स्किल अब देखने को मिला । बहुत अच्छा।👍👍👏🏻👏🏻

    ReplyDelete
  3. Vishal Srivastva : Very nice sir

    ReplyDelete
  4. Sagar Mehra : Nice read with positive notes woven around daily experience with finesse!

    ReplyDelete
  5. बलवान सिंह आर्य: 📜बहुत ही सुंदर शब्दावली और छंदावली का संग्रह ... अतिसुक्ष्म मानवीय मूल्यों का संदेश,कर्म,
    श्रम,अर्थ-वाणिज्य,दक्षता,बल,
    धर्म,और मर्म से गुजरता वात्सल्य जीवन के पंचम सुर में मधुर गीत सुनाता....अति मनभावन रचना...आपकी यात्रा सुमधुर और सुहानी हो..✒️

    ReplyDelete
  6. Trivedi AK: You have evolved Pawan. My compliments.Yes now I sense you are in meditation while you open down poetry or prose. Please do publish now. It is GRACE of higher level of consciousness. May you evolve further.

    ReplyDelete
  7. This is because of your blessing Sir. I only try. Thanks & regards. 🙏🏼🙏🏼

    ReplyDelete
  8. Honest experieces

    ReplyDelete
  9. Surender Maggu: Honest experieces. Tried commenting on blog itself.. somehow was not able to do.Good read sir. Regards🙏🙏

    ReplyDelete
  10. नईमुद्दीन नैन: अकर्मण्य तो अपयश पल्ले, करो तो जिम्मेवारियाँ सिर पर अधिक
    शालीन हो तो लोग हल्के में लेते, सख़्ती करो तो कहलाते गर्वित।
    ज्यादा खुद ही करो तो अधीनस्थ निश्चिंत हो जाते, काम हो जाता
    अधिक दबाओ तो रूठ जाते, थोड़ा कहने से भी मान जाते हैं बुरा।

    कटुता का उत्तर न दो तो कायर बोधते, समझाओ तो डर अनबन का
    सहते रहो तो अन्य सिर पर धमकता, जवाब दो तो लड़ाई का खतरा।
    संसार छोड़े तो भगोड़ा कहलाते, चाहे वहाँ भी न मिलता कोई सुकून
    जग में रहना-सफल होना बड़ी चुनौती, हर मंज़िल माँगती बड़ा श्रम।

    Mind blowing

    ReplyDelete