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Sunday 18 October 2020

शिव-ध्यान

शिव-ध्यान 

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आज महाशिवरात्रि-अवकाशपर कार्यालय खोला आवश्यक कार्य निबटाने हेतु 

कुछ पश्चात ऑफिस जाना५० मिनट घर में चलकर कलम पकड़ी बतियाते हेतु।

 

अभी चलते- शिव की मुद्रा में ध्यान लगाश्वास निरुद्ध कर अडिग बैठे रहते 

स्तंभ भाँति उनकी देह कसी हुईपर फक्कड़ हैं शरीर पर कोई ध्यान  है। 

अल्प-भाषण पर रूप अति-प्रेरककोई  स्वार्थी चाहपूरे विश्व का है चिंतन 

सत्य कि जग में सतत अनेक अपुण्य घटितभगवान भी प्रायः बेबस दर्शित। 

 

शापों की पुरा-कथाओं में तो बहु विश्वास लेकिन कि अनेक क्रूर कर्म हो रहें 

क्या लोग अपराध मर्जी से करतेया अज्ञानता का भूत रोपित किया किसी ने। 

 अनेक तुम्हें मानते हैंपूजा भी करतेसब भाँति टोटके करते भगवान नाम पर 

पर फिर क्रूरता कहाँ से  जातीविश्व-बंधुत्व भाव का लेशमात्र भी असर न। 

 

मैं मानव द्वारा महात्माओं की परम गुण परिभाषा से तोनिश्चित ही हूँ प्रभावित 

उनमें कुछ तो स्वाभाविक गुणविस्तृत विश्व-कल्याण के बारे में सोचते सदैव। 

यह अन्य कि सर्वस्व एक के  बस मेंएक रावण मरता तो दस और का जन्म 

एक सतत युद्ध है विचार-धाराओं मेंमारक-हिंसा भी कोई  बन पाई हल। 

 

कहीं और भटक जाताकोई शेष कर्म याद  जाताफिर व्यस्त हो जाता 

फिर भूल सा जाता क्या लिख रहामुख्य तत्व से हटकर बाजू में चला जाता। 

एकाग्रता आवश्यक सुपरिणाम हेतुफिर आज का विषय तो है ईश सान्निध्य 

उसे शब्दों में समेटना चाहताफिर वह उतना ही जितना समाने का है बल। 

 

शिव एक प्राचीन योगीभारत-धरा पर अनेक कथाऐं प्रचलित उनके विषय में 

पुरा-समय में अनेक शिवालय बनाए गएयोगीगण ध्यान में आराधना करते। 

फिर पूजा-अर्चना किंचित बाह्य दिखावाअंतः तक पता  कितना पाते पहुँच 

सिर्फ नमस्ते से ही ईश प्रसन्न हृदय निर्मल होचलना होगा बताए मार्ग पर। 

 

शिव-धाम कैलाशअमरनाथकेदारनाथहिमालय पर हीदांपत्य बनारस में 

प्राचीन बाबा विश्वनाथ मंदिर वाराणसी  मेंबहुत पुरानी नगरी मानी जाती है। 

उज्जैन में प्राचीन महाकाल मंदिरनर्मदा पर ओंकारेश्वरलोग श्रद्धा से हैं जाते 

सोमनाथमल्लिकार्जुन स्वामीभीमाशंकरत्र्यंबकेश्वरनागेश्वररामनाथस्वामी

बैद्यनाथगृश्नेश्वर समेत १२ ज्योतिर्लिंग भारत में स्थापितआदि देव पूजे जाते। 

 

कथाऐं तो सब ईश्वरों के विषयों में हैंमानता वे काल्पनिक या इतिहास पुरुष 

निश्चित ही उनमें आम नर से अधिक गुणलोग श्रद्धा से हो जाते हैं आकर्षित। 

गुणी मनुष्य भी एक दूजे का आदर करते हैंतो अधिक महत्त्वपूर्ण हो है जाता 

पश्चात आने वाली पीढियाँ उन्हें अति-पुण्य मान लेतीईश तक का दे देती दर्जा। 

 

मेरा अर्थ है जो सबका सोचेसहायक बनेसबमें समता भाव भरे वही ईश्वर है 

हम पुरातन चरित्रों में खोजतेपर वे निज काल में हम से या किञ्चित ऊर्ध्व थे। 

आज भी कुछ चरित्रों को ईश तक का स्तर देतेकई बाबाओं की मूर्ति पूजते 

उन्हें साक्षात अवतार मान लेतेवचन को अटल  कोई वंचना स्वीकार  है। 

 

जब शिव का ध्यान करता हूँउनके मस्तक की तीसरे नेत्र छवि उभर आती 

इसी को शायद षष्टि इंद्रि कहतेया दोनों नेत्र बंद हो तीसरे में समा जाते हैं। 

अब कितने समय कोई एक ध्यान में रह सकतामनन की कसौटी है किञ्चित 

अंतरम क्षण कितने कम ढूँढ पाताउनमें निरत हो रख पाता हूँ एकाग्रचित्त। 

 

कहते हैं तू ही जन्मकपालक   संहारकसब हैं जीव तुम्हारी प्रकृति अधीन

तू ही मातापृथ्वी शायद तव ही दर्शित रूपसब अवस्थाऐं तुम द्वारा उद्धृत। 

फिर ब्रह्मांड तो अति विशाल नभ में सितारों-ग्रह दर्शनसुदूर  जा सकते पर 

कुछ रहस्य-भेदन अभी हैं सक्षमअनेक परतें खुलनी शेषकोशिश जारी पर। 

 

कुछ तो जग-विधान होगामान्यताऐं नितांत भ्रामकविज्ञान की भी अल्प दूरी तय

अति पुराकाल में तो आज  जा सकते हैंहाँ देख-समझ अनुमान लगा लेते कुछ। 

सब संस्कृतियों की निज मान्यताऐंलेकिन किसी को पूर्ण सत्य से  मतलब कोई 

कौन बुद्धि पर जोर दे गूढ़ हेतुस्कूल-पुस्तकें तो पढ़ी  जातीमेधावी बस यूँ ही।  

 

फिर पढ़ना मात्र अक्षर ज्ञान तक  सीमितनर को चाहिए दूर-दृष्टि का साहस

भ्रांतियाँ सदा टूटती रहनी चाहिएवृहत संपर्क से ही अनंतता का खुलता मार्ग। 

भगवान मात्र उस अनंत रूप की परिभाषाजो विस्तार करे वही गुरु है परम

जीवन इतना भी सरल कि अपने आप इसमें हो आमूल वाँछित परिवर्तन। 

 

चिंतन-विवेचन-अध्ययन-परीक्षण-सारग्रहणता सीखूँतो कुछ हो वृहद संपर्क 

जग आगमन तो करना पड़ेगासस्ते में  छोड़ूँगा सब अग्नि गुजर बनूँ कुंदन। 

 

पवन कुमार,

१८ अक्टूबर२०२०रविवारसमय :४९ बजे अपराह्न  

(मेरी डायरी १४ फरवरी२०१८ समय :३९ प्रातः से)   

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