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Saturday, 29 August 2020

हमारी लूना

हमारी लूना

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एक  पिल्ली हमारे घर में आई, और  प्रवेश हुआ आनंद

लैब्रेडोर प्रजाति की वह कृष्ण श्वान-कन्या, वय दो मास। 

 

२२ अक्टूबर, २०१४ सांय जब कार्यक्षेत्र महेंद्रगढ़ से घर पहुँचा,  

यह घर थी, बेटा सात्विक उसका पड़ौसी-मित्र तुषार थे वहाँ 

वह अति प्रिय संवेदनशील, जैसे पूर्व से ही सबको जानती थी 

पुत्री सौम्या भी वहाँ थी, एक दिन पूर्व अपने हॉस्टेल से आई थी। 

 

सात्विक ने बताया  हमारी ही है, किसी NGO ने उपहार दी है 

 शहर में  कई कुत्ते-प्रेमी हैं, इच्छुकों को बेहतर ध्यान हेतु दे देते। 

उत्तम नस्लियों का तो बहु बाजार-मूल्य, पर कभी मुफ़्त भी प्राप्त

ये जीव बड़े मिलनसार, और वस्तुतः मानव के हैं बहुत  निकट 

 

इसका नाम रखा था लूना, जो अतीव प्रिय और चपल थी 

हाथ-पैर मुँह से चाटती, झूठे ही काटने का नाटक करती। 

सौम्या को कुत्तों से बड़ा प्रेम है, काफी दिनों से पिल्ला लाने को रही थी कह 

सात्विक हाँ मिलाता, उसे भी खेलना-बातें करना अच्छा लगता उनके संग  

 

उषा भी उत्साहित थी, और बच्चों की ख़ुशी में शामिल थी 

मैं भी कुछ पशु-प्रेमी सा, मिलने पर बना लेता हूँ दोस्ती 

प्रेम एक ऐसी भाषा हैभले से समझते हैं जिसे जीव सब

एक दूजे के प्रति जिम्मेवारी वातावरण को बनाती मधुर 

 

सौम्या उसे अपने कक्ष में रखती, उसका पूरा ध्यान रखती 

बाहर घुमाने ले जाते, जहाँ वह मल-मूत्र त्याग कर्म करती। 

शिशु ही तो है ध्यान माँगती, समझने संकेत संवाद-भाषा

बच्चे सम उसका ध्यान रखना, यदि गृह-सदस्य है बनाना। 

 

अगले दिन मैं प्रातः उसे घुमाने ले गया सैक्टर- के पार्क 

हमने वहाँ दो चक्कर लिए, और बड़ी प्रसन्नचित्त थी वह 

सोसाइटी के बच्चे हिलमिल गए, जैसे वह उनमें ही एक है 

संग खेलना-दौड़ना-पुकारना, बनाता एक मनोहर दृश्य है। 

 

भले ही अभी तक कुत्ता  पाला, पर संपर्क तो बचपन से ही मेरा 

रूचि  सब पालतुओं में, पर उनका मल-त्याग कुछ भद्दा लगता। 

जब हम छोटे बच्चे थे तो पिल्लों के लिए घरों से मल्लौटा माँगते थे 

'दे दो मल्लौटा, थारे घर के बाहर झोटा' कुछ ऐसे संवाद बोलते थे 

कुतिया माँ पिल्लों को दूध पिलाने हेतु अतिरिक्त ऊर्जा मिलती। 

 

रविवार तक तो छुट्टियाँ सब घर पर थे, अतः कोई चिंता का विषय

शनिवार शाम सात्विक-तुषार संग गया सैक्टर- के पशु-क्लिनिक 

डॉ० इंद्र सिंह ने लूना को जाँचा, व संक्रमण-बचाव हेतु लगाया टीका 

कुछ कैल्शियम मल्टी-विटामिन शीशियाँ, सुझाव सहित दी थमा। 

 

बच्चे उत्साहित पर मैं उषा कुछ चिंतित, कार्य-दिवसों में कैसे चलेगा 

सौम्या  कॉलेज में, मैं महेंद्रगढ़ और उषा-सात्विक अपने विद्यालयों में। 

उस  समय  नन्हीं लूना का ध्यान कौन रखेगा, कौन बाहर घुमाएगा उसे 

खैर खाने-पीने की तो कोई न चिन्ता, पर नन्हीं जान अकेली रहेगी कैसे?

 

मन में कई विचार कि सात्विक की नानी या मौसी के पास छोड़ दें 

पर सौम्या तो मात्र भी तैयार न, कि अन्य के पास भेजा जाए उसे 

तब उषा के आगमन तक नीचे गार्ड के पास रखने का दिया सुझाव 

पर वह बहुत संभव नहीं क्योंकि वे हमारे तो नहीं हैं  निजी चाकर 

 

सुबह जल्द जाने की मजबूरी, सब अति-व्यस्त, लूना की होती चिंता 

सोमवार महेंद्रगढ़ आया, उषा ने लूना को सौम्या के कमरे में छोड़ा। 

दोपहर को जब उषा घर आई, कक्ष में लूना मूत्र-गंदगी से  बेहाल थी 

बड़ा मार्मिक दृश्य, बेचारी कूँ-कूँ करती, अकेले तो थी  रह सकती 

 

परसों सौम्या घर पर आई और लूना को लेकर थी बहुत चिंतित 

अपनी मम्मी पर गुस्सा थी कि हम लूना को  रख रहे हैं उचित 

पर  समझती भी यह सब मजबूरी, तथापि प्रेम-वश विव्हल थी 

कल कॉलेज से छुट्टी की, कुछ उपाय लूना को छोड़ने का कहीं 

 

परसों रात बड़ी परेशान थी, मैंने दो बार बात कीसमझाया 

कहा हम भी चिंतित हैं, पर उपाय तो कुछ करना ही पड़ेगा। 

छोटी बच्ची पर अत्याचार, असावधानी तो पाप ओर धकेलती 

अगर घर पर एक सदस्य भी रहता, तो फिर कोई चिंता थी। 

 

कल दोपहर सौम्या लूना को अपने संग ही हॉस्टल ले गई 

कहती किसी पैट- केयर में दूँगी, दिसंबर में ले आऊँगी। 

रात मैंने उससे बात की, उसकी मन-पीड़ा में शरीक हुआ 

बड़ा बुरा लग रहा पर लाचार, अतः यही उपाय मंजूर किया। 

 

सात्विक से भी बात की, जब संभव होगा पिल्ला रखेंगे अवश्य 

हमें ख़ुशी होगी यदि अपने बच्चों की ख़ुशी में शामिल हों हम 

बकौल उषा सोसाइटी के बच्चे लूना प्रति बड़े ही उत्साहित थे

उन्हें भी बड़ा कष्ट लग रहा, क्योंकि वह तो प्रिय ही इतनी है। 

 

सामने A-६०४ के मि० डे का बेटा सोनू, जो प्रायः हमारे घर ही रहता 

  साल का वह लूना से हिलमिल गया, उसकी रस्सी लेकर है चलता 

शुरू में तो वह डर रहा था, लेकिन अब कुछ दोस्ती सी थी हो गई 

एक सप्ताह का आनंद अंत में, एक  महद पीड़ा देकर गया है ही 

 

उस लूना की मधुर स्मृति, चिरकाल तक रहेगी हमारे जीवन में 

मुझे मालूम मुझे अब कभी मुलाकात भी होगी या न उससे 

पर कामना  जहाँ भी रहे खुश  रहे, एक अच्छी देखभाल मिले 

अंततः हमारी ख़ुशी उसी सब में है, जो सर्वहित से जुड़ी हुई है।

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(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी २९ अक्टूबर, २०१४ समय :२० बजे प्रातः से



                                       और उसके बाद वर्तमान स्थिति ---------------------------------


हुआ यूँ कि सौम्या ने लूना छोड़ी ही नहीं, उषा ने कष्ट से लूना को पाला 

उसे घर  छोड़ती, कभी कोई छुट्टी लेता, वर्ष भर सफाई का काम बड़ा। 

फिर जैसे-तैसे एक दूसरे को समझा, लूना ने भी काफी नियंत्रण किया 

अब घर की एक पूर्ण सदस्या, पूर्णतया सबको निज पाश में ले है रखा। 



पवन कुमार,

२९ अगस्त, २०२० समय :२२ बजे प्रातः :


Monday, 17 August 2020

इंद्रधनुषी रंग

इंद्रधनुषी रंग
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शाखा का सिहरना, मलय का बहना, पत्ते झड़ना, हिम-नद का सरकना
चिड़िया का गीत, समुद्र का उफान, सूरदास का गायन, बूढ़े का सम्मान।  

रक्त-प्रवाह, श्वास का चलन, उर की धड़कन, उत्सर्जन तंत्र, श्रवण-नयन
कंचन-चमक, कंगन खनक, रसिक धुन, झूझने की ललक, गौरव-पथ। 
तप्त हृदय हूक, लुहार की फूँक, निशाना अचूक, मनीषी चिंतन-दर्शन 
वीर की हुँकार, उद्यमी प्रयास, अजातशत्रु सी मैत्री, भृत्य का सेवाभाव। 
 
 प्राची का सौंदर्य, सरोवर का नीरव, चंद्र का उदय, सूर्यास्त की लालिमा 
सूर्य की ऊर्जा, पृथ्वी-धीरता, आकाश की विस्तृता, सुरम्य की भव्यता। 
कस्तूरी की महक, चंदन-हींग-इलायची की सुगंध, तुलसी की पवित्रता
हल्दी-औषधि, त्रिफला सा सेवन, खीरे-पपीते-शीताफल सी सुपाच्यता। 

द्रौपदी का चीर, राँझे की हीर, राम की पीर, मीठी खीर, पावस का नीर
प्रेमी की चाह, प्राणी-साँसत, युवा का साहस, पंछी  की उड़ान, गंभीर। 
कष्टों  का जाल, देह का विश्राम, पथिक की थकान, दरिया का फैलाव
दिन-प्रकाश, धाँस की फाँस, क्रोध के दुष्परिणाम, अहंकार का नाश।

मौत का डर, तूफान में फँस, बगुले का ध्यान, भुजंग विष, बिच्छू का दंश
चकुवा-युग्ल, वानरी सी संतति-प्रेम, हस्ती सा घ्राण-बल, भेड़ सी नकल। 
 चितैरे मृग-नैन, भ्रमर-नृत्य, डॉल्फिन सी मित्र-सहायता, सर्वत्र-वासी मूषक
अजा बुद्धि व जिज्ञासा, मृग छावे का जन्म के २० मिनट में चलना आरंभ।  
 
हारमोनियम संगीत, शंख-ध्वनि, ढ़ोलक थाप, मृदंग नाद, बांसुरी की लय 
बीन की लहर, शहनाई  धुन, डुगडुगी की गड़गड़, खज्जरी की खनखन। 
 वीणा-सुर, घड़े की ढप, इकतारा तान, जल-तरङ्ग टनक, मंजीरे की ख़नक 
सितार सप्त-सुर, भोंपू का शोर, मन में गुनगनाहट, मित्र  फुसफुसाहट। 

गर्मी जलन-प्यास, भूमध्य रेखीय प्रदेशों की उष्ण, दक्षिण वृत्त में सर्दी पर 
पावस-बादर बरसें, हरियाली, भू-सुवास, भादों की उमस, इंद्रधनुषी रंग।  
शरत में रमणीयता-मस्ती, हेमंत पतझड़, शाली कटना, दिवाली की ख़ुशी
गृह-द्वार स्वच्छ, परस्पर बधाई, गले मिलते, भेंटें स्वीकारते, प्रसन्नता सी। 

शिशिर  में माघ-पौष की ठंडक - ठिठुरन, सर्वत्र शीत, दिन लंबे-रातें छोटी
जीव ऊष्मा चाहते, क्रिसमस-पर्व, साईबेरिया-आर्कटिक ध्रुवों में अति सर्दी। 
वसंत में वानस्पतिक सौंदर्य विस्तरित, सर्वत्र उल्लास-समृद्धि, होली का रास
उपवनों में बहार, सर्दी में कमी, आम्र-अंकुर, जीव-पादपों में चरम उल्लास। 
 
अमेरिका-जापान, द० कोरिया, प० यूरोप, यूनान विकसित, नभ-चुम्बी भवन
तकनीक समर्थ, उच्च जीवन-स्तर, शिक्षित प्रजा, सुविधाऐं, खोज-अंतरिक्ष। 
कई विकासशील जिसमें भारत-चीन भी एक, आगे  बढ़ने का यत्न कर रहें 
कई एशियाई-अफ़्रीकी-द०अमेरिकी अर्ध-विकसित, गरीबी-कहर झेल रहें।

महानता अंश, कर्मठता का दक्ष, सच्चरित्रता का अक्ष, संपूर्णता का कक्ष
मौलिकता का प्रयोग, वैज्ञानिक का उद्योग, किसान-कमेरे का सतत श्रम।
प्राणी सहयोग, कर्मठता का योग, उपयोगी निर्माण, सबका साथ-विकास
वसुधा-कुटुंबकम, परस्पर प्रेम, प्राकृतिक संतुलन व समन्वय सहेजना।   

गीता ज्ञान, तुलसी का मानस, मानस रस, रावण का ज्ञान, भर्तृहरि त्याग
शबरी के बेर, कृष्ण सी मैत्री, रंतिदेव सी करुणता, शंकर सा ब्रह्म-ज्ञान।  
ज्योतिबा फुले सी शिक्षा, राममोहन राय व विद्यासागर सा समाज-सुधार
सुकरात बुद्धिमता, बुद्ध सौम्यता, कबीर की फक्कड़ता, नव-संविधान।  


पवन कुमार,
१७ अगस्त, २०२० सोमवार, ६:२६ बजे प्रातः 
(मेरी  महेंद्रगढ़ डायरी २९ सितंबर, २०१९ शुक्रवार, २०१९ समय ९:०७ बजे प्रातः से)

Sunday, 9 August 2020

अनंत-चिंतन

अनंत-चिंतन 
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मेरी अनंतता के क्या मायने, या कुछ यूँही लिख दिया  एक शब्द
जीव तो स्व में ही सीमित, क्या सूझी स्वयं को कह दिया अनंत। 

अनंत तो नाम न पर अनेकों का, कुछ मनन से ही होगा नामकरण 
या सीमित को अनंत-दिशा हेतु, यहीं मत रुको अति दूर है गंतव्य। 
यदि निराश बैठे रहे, माँ से चिपके, घर-घुस्सू रहे तो कैसे हो प्रगति 
हदें तो बढ़ानी होगी, हर पोर में संपूर्णता की ललक चाहिए जगनी। 

नर-वपु में खरबों कोशिकाऐं पर एक प्राण तत्व, मिल गति-शक्ति देते 
पर क्या यह अल्प उपहार - नकारे या सस्ते में लें, अमूल्य स्वयं में है। 
हमने कुछ वस्तु-पण लगा दिया, जबकि निर्माण में लगी ऊर्जा अथाह
पर उपलब्धता व क्रय-शक्ति अनुसार करते सीमित मूल्य निर्धारण। 

पर प्रयुक्त अनंत शब्द का क्या हो अर्थ, सोचा कभी मेरी क्या सीमाऐं
या हूँ अन्तः विपुल जलधि या ब्रह्मांड प्रारूप, अद्यतन अजान जिससे। 
कुछ तो मैं भी अद्वितीय पर शायद चिन्हित न, क्षुद्र पहचान में ही मग्न 
यह न उचित, निज-संपदा परिचय से ही एक महत्ता हो सकती प्राप्त। 

अनंतता चिंतन से भ्रमितचित्त हूँ, और अन्वेषण श्रम, छूटता सा कुछ
अर्थात संभावनाऐं तलाशो, कुछ अवश्यमेव काम की होगी अनुरूप। 
सदा तो बहाने न  बना सकता, परम जीवन-तत्व कर से फिसल रहा 
क्यूँ संशय में हो - कोई न सहायतार्थ आएगा, कुछ झंझाड़ना पड़ेगा। 

स्वान्वेषण एक  अनवरत प्रक्रिया, पर शून्यता प्रतीतित क्षुद्र परिधि में 
फिर चाहूँ कि  अनंतता से संपर्क हो, हलचल मचा देता प्रति रोम में। 
रूमी तो न गुरु शम्स तबरीजी से मिल हद-परिचय, यहाँ सब सफाचट 
कब-किससे संपर्क हो अदर्शित, कथन-अशक्य, स्थिति में सी विक्षुब्ध। 

इस अनंतता के क्या अर्थ संभव, भिन्न आयाम नाना समयों पर उभरते 
शक्ति कितनी संभव है, सम कद-काठी वाले एक  सुदृढ़ -सौष्ठव बने। 
अनेक प्रातः भ्रमण करते, व्यायामशाला जाकर विभिन्न कसरतें  करते 
पसीना बहाते, फेफड़ों में पूरी हवा भरते, हृदय में रक्त-प्रवाह बढ़ाते। 

स्वच्छ्ता व बल निर्णय मन में स्थापित, क्रियाऐं ऐसी कि रहें पूर्ण स्वस्थ 
यूँ निद्रा-तंद्रा में न हो समय व्यतीत, पूर्ण जीने का एक लक्ष्य हो निर्माण। 
एक नियमित दिनचर्या स्वास्थ्यमुखी, तो कुछ दिन में दिखोगे सुंदर-बली 
यह भी सत्य है कि लोग एक व्यक्तित्व अंकन करते शरीर पुष्टता से भी। 

चाहे हम टायसन बनने में न समर्थ, तो भी सकते अनेकों से बली बन
पर यहाँ अन्यों से न प्रतिस्पर्धा, बस एक पूर्ण-स्वास्थ्य करना अनुभव। 
अर्थात एक ऐसा पथ चुनें जिसमें निज भी हित, उत्तम-अनंतता में पथ 
हदें सदा वर्द्धित होगी, अनंतता अर्थ भी दर्शित सामर्थ्य से अग्रचरण। 

माना दिमाग़ में परिमित कोशिकाऐं, तथापि क्या है समुचित सुप्रयोग  
कुछ काम अवश्य ही लो, वरन क्षीणता मनन में ही जीवन होगा पार। 
प्राण में मधुरतम क्षण रसास्वादन करना, किंचित इसे करना है पूरित 
यह पूर्णता ही संभवतया अनंत स्वरूप है, पश्चात मिल होंगे एक सम। 

यह दृष्टि विस्तृत होनी ही चाहिए, मृदुलतम स्वरूप दर्शन कर सकूँ 
जिजीविषा कदापि क्षीण न हो, स्व पवन नामानुरूप गतिमान होवूँ। 
अनंतता प्रत्येक प्राण-आयाम निहित हो, आमुखता की सोचूँ यत्न से 
क्षमता-वृद्धि भी इस दिशा से ही, हर विरोध पार जाने का साहस है। 

कोई न मन थाह बस चिंतन सीख लो, सफलता-द्वार खुलेंगे अनुरूप 
जग-व्यवस्था प्रयासों व मति अनुरूप ही, इसे और मृदु बना दो तुम। 
सुमधुर जग-गठन में पुण्यी सहकार करो, निज ही होंगे साधन सकल
इसी मन-देह का वासी मानना छोड़ दो, प्रभुता तुम्हारे चूमेगी चरण। 

अनंतता अर्थ स्व में असीम ब्रह्मांड निहित, सर्वस्व इसी से प्रतिपादित 
जय-संहिता के विपुल कृष्ण सा विश्व-रूप, पर  होना सदा प्रयासरत। 


पवन कुमार,
९ अगस्त, २०२० रविवार समय ९:०० बजे प्रातः
(मेरी महेंद्रगढ़ डायरी १७ मार्च, २०२० समय ८:३२ प्रातः से)  

Monday, 27 July 2020

बरखा -बहार

बरखा -बहार 
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सुवासित सावन-शीतल समीर से उर है पुलकित, मेरा मन झूमे 
पर संग में  तो प्रियतमा नहीं है, दिल उमस कर ठहर जाता है। 

तरु शाखाऐं-पल्लव झूम रहें, कभी ऊपर-नीचे, कभी दाऐं या बाऐं 
एक अनुपम सी गति-प्रेरणा देते, देखो आओ बाहर स्व जड़त्व से। 
हम जग-अनिल से रूबरू, पूर्ण-ब्रह्मांड का आनंद निज में समाए 
निश्चित प्रकृति-सान्निध्य में वासित, संभव सुनिर्वाह में सहयोग करें। 

दिन-रैन, प्रातः-शाम-मध्याह्न के प्रयत्न-साक्षी, निहारते खुली कुदरत 
सर्वस्व झेलते देह  पर, सुख-ताप-शीत-चक्रवात का सीधा अनुभव। 
कोई घर तो न मनुज भाँति, अनेक छोटे-बड़े जीवों को देते बसेरा हाँ 
अनेक चिड़ियाँ-गिलहरी, कीड़े-मकोड़ों की शरण, नर्तन जीवों का।   

सावन में पवन की दिशा पूर्व से पश्चिम है, गर्मी-ताप से अति-राहत 
     आर्द्र-परिवेश से पर्णों को सुकून, उष्ण-कर्कशता से थे झुलसे वरन।     
ग्रीष्म से तो रक्त-द्रव ही शुष्क, अल्प भूजल, स्पष्ट क्षीणता-चिन्हित 
हाँ यथासंभव छाया-पुष्प-फल देते, निज ओर से न छोड़ते कसर। 

पावस-ऋतु तो अति-सुखकारी, अनेक बीजों को प्राण-दान लब्ध 
वरन पड़े बाँट जोहते, कब जमीं पर पनपने का मिलेगा अवसर। 
बहुतेरी मृत घास-फूस, खरपतवार आदि, वर्षा आते ही स्फुटित 
हरितिमा रुचिर, वरन निर्जन सूखे तरु, नग्न पहाड़ियाँ ही दर्शित। 

अब उदित मृदु-मलमली तीज, गिजाई-अग्निक, जो पूर्व में थे लुप्त 
अनेक कंदली - छतरियाँ दर्शित, जिनमें खुंभी भी कहलाते कुछ। 
जहाँ भूमध्य रेखा निकट सारे वर्ष वर्षा है, हरियाली की सदाबहार 
नीर-बाहुल्य से जीवन-विविधता समृद्ध, सूखे को हरा करता जल। 

वर्षा में ही वन-महोत्स्व, सिद्धता नन्हें पादपों के मूलों में निकट जल 
एक-२ कर चहक से उठते, ऊष्मा-पानी चाहिए बढ़ जाते एक दम। 
भू-लवण मात्रा वर्धित, एक से अन्य स्थल को खनिज बहने से गमन 
मृदा-गुणवत्ता पूरित, स्वच्छता होती, हर रोम खोलकर रिसाव जल। 

अति-ऊष्मा तप्त प्राणी-पादप को अति चैन, मन-आत्मा पुलकित 
शस्य-श्यामला वसुंधरा, समृद्धि-प्रतीक, हर रोम से तेज स्फुटित। 
लोगों की कई चाहें जुडी रहती, बरखा आई तो तीज, मेले-त्यौहार 
लोग एक-दूसरे को बधाई देंगे, मेल-जोल से तो बढ़ेगा प्रेम और। 

वर्षा एक जीवंत-ऋतु, सर्व स्वच्छता-प्रणाली को देती नव आयाम 
सारा कूड़ा-कचरा बह जाता, पहुँचने में सहयोग अंतिम मुकाम। 
सरिताऐं तो उफान पर होती, नहरों में भी पानी छोड़ दिया जाता 
धरा में जल-रिसाव, सरोवरों में एकत्र नीर पूरे साल काम आता। 

 प्रचुर खाद्य शाकाहारियों हेतु, दुधारू पशुओं में वर्धित दुग्ध-मात्रा 
घास-चारा खाओ न कमी, पहले  चरवाहे-पाली करते थे चराया। 
गड्डों में पानी-मिट्टी एकत्रित, लगता  समतल सी हो जाएगी पृथ्वी
सब भेद विस्मृत, कहीं-२ बाढ़ आने से लोग होते कठिनता में भी। 

कभी धूप -छाँव, बहुरूपी मेघ दर्शित, इंद्रधनुष छटा बिखेरता 
पक्षी-कलरव सुनाई देते, सतत हर्ष प्रकट कर ही देते अपना। 
धराधर मूसलाधार बरसते, प्रखर प्रहार, भागकर  होता बचना 
पथों में पानी प्रभृत, गड्डों का अंदाजा न, हो भी जाती दुर्घटना।  

सुदूर मेघ-यात्रा, वाष्प सोखते, ऊष्मा से नभ में अत्युच्च उठते 
वहाँ वे शीतल होते व अवसर मिलते ही बरस जाते, रिक्त होते। 
प्रकृति के खेल निराले हैं, यदा-कदा धूप में भी बारिश हो जाती 
मेघ देख वनिताओं को प्रिय-स्मरण, खिन्न हो मन मसोस लेती।  

कालिदास-कृति मेघदूत अनुपम, कथा-सुव्याख्यान  यक्ष-विरह 
उन्हीं के काव्य ऋतु-संहार में पावस का एक रमणीक विवरण। 
दादुर टर्राते, भ्रमर मधुर गुनगुनाते, जुगनूँ  अँधेरे में टिमटिमाते 
प्रफुल्लित मयूर नर्तन करते हैं, सरोवर  पूरित शुभ्र कुसुमों से। 

इस वेला में आनंद में झूमना हर प्राणी-मन की होती फितरत
कलम का भी एक निश्चित संग, माँ वाग्देवी-कृपा आवश्यक। 
रिक्त पलों में एक गुरु ब्रह्मांड-रूप वर्षा पद्य था चिर-इच्छित
कलम चले तो मृदु फूँटेगा, फिर यथासंभव दिया ही है लिख। 

पवन कुमार,
२७ जुलाई, २०२० सोमवार १०:१७ रात्रि 
( मेरी महेंद्रगढ़ डायरी ३ अगस्त, २०१७, वीरवार, ९:२० बजे प्रातः से )