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The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Sunday, 18 October 2020

शिव-ध्यान

शिव-ध्यान 

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आज महाशिवरात्रि-अवकाशपर कार्यालय खोला आवश्यक कार्य निबटाने हेतु 

कुछ पश्चात ऑफिस जाना५० मिनट घर में चलकर कलम पकड़ी बतियाते हेतु।

 

अभी चलते- शिव की मुद्रा में ध्यान लगाश्वास निरुद्ध कर अडिग बैठे रहते 

स्तंभ भाँति उनकी देह कसी हुईपर फक्कड़ हैं शरीर पर कोई ध्यान  है। 

अल्प-भाषण पर रूप अति-प्रेरककोई  स्वार्थी चाहपूरे विश्व का है चिंतन 

सत्य कि जग में सतत अनेक अपुण्य घटितभगवान भी प्रायः बेबस दर्शित। 

 

शापों की पुरा-कथाओं में तो बहु विश्वास लेकिन कि अनेक क्रूर कर्म हो रहें 

क्या लोग अपराध मर्जी से करतेया अज्ञानता का भूत रोपित किया किसी ने। 

 अनेक तुम्हें मानते हैंपूजा भी करतेसब भाँति टोटके करते भगवान नाम पर 

पर फिर क्रूरता कहाँ से  जातीविश्व-बंधुत्व भाव का लेशमात्र भी असर न। 

 

मैं मानव द्वारा महात्माओं की परम गुण परिभाषा से तोनिश्चित ही हूँ प्रभावित 

उनमें कुछ तो स्वाभाविक गुणविस्तृत विश्व-कल्याण के बारे में सोचते सदैव। 

यह अन्य कि सर्वस्व एक के  बस मेंएक रावण मरता तो दस और का जन्म 

एक सतत युद्ध है विचार-धाराओं मेंमारक-हिंसा भी कोई  बन पाई हल। 

 

कहीं और भटक जाताकोई शेष कर्म याद  जाताफिर व्यस्त हो जाता 

फिर भूल सा जाता क्या लिख रहामुख्य तत्व से हटकर बाजू में चला जाता। 

एकाग्रता आवश्यक सुपरिणाम हेतुफिर आज का विषय तो है ईश सान्निध्य 

उसे शब्दों में समेटना चाहताफिर वह उतना ही जितना समाने का है बल। 

 

शिव एक प्राचीन योगीभारत-धरा पर अनेक कथाऐं प्रचलित उनके विषय में 

पुरा-समय में अनेक शिवालय बनाए गएयोगीगण ध्यान में आराधना करते। 

फिर पूजा-अर्चना किंचित बाह्य दिखावाअंतः तक पता  कितना पाते पहुँच 

सिर्फ नमस्ते से ही ईश प्रसन्न हृदय निर्मल होचलना होगा बताए मार्ग पर। 

 

शिव-धाम कैलाशअमरनाथकेदारनाथहिमालय पर हीदांपत्य बनारस में 

प्राचीन बाबा विश्वनाथ मंदिर वाराणसी  मेंबहुत पुरानी नगरी मानी जाती है। 

उज्जैन में प्राचीन महाकाल मंदिरनर्मदा पर ओंकारेश्वरलोग श्रद्धा से हैं जाते 

सोमनाथमल्लिकार्जुन स्वामीभीमाशंकरत्र्यंबकेश्वरनागेश्वररामनाथस्वामी

बैद्यनाथगृश्नेश्वर समेत १२ ज्योतिर्लिंग भारत में स्थापितआदि देव पूजे जाते। 

 

कथाऐं तो सब ईश्वरों के विषयों में हैंमानता वे काल्पनिक या इतिहास पुरुष 

निश्चित ही उनमें आम नर से अधिक गुणलोग श्रद्धा से हो जाते हैं आकर्षित। 

गुणी मनुष्य भी एक दूजे का आदर करते हैंतो अधिक महत्त्वपूर्ण हो है जाता 

पश्चात आने वाली पीढियाँ उन्हें अति-पुण्य मान लेतीईश तक का दे देती दर्जा। 

 

मेरा अर्थ है जो सबका सोचेसहायक बनेसबमें समता भाव भरे वही ईश्वर है 

हम पुरातन चरित्रों में खोजतेपर वे निज काल में हम से या किञ्चित ऊर्ध्व थे। 

आज भी कुछ चरित्रों को ईश तक का स्तर देतेकई बाबाओं की मूर्ति पूजते 

उन्हें साक्षात अवतार मान लेतेवचन को अटल  कोई वंचना स्वीकार  है। 

 

जब शिव का ध्यान करता हूँउनके मस्तक की तीसरे नेत्र छवि उभर आती 

इसी को शायद षष्टि इंद्रि कहतेया दोनों नेत्र बंद हो तीसरे में समा जाते हैं। 

अब कितने समय कोई एक ध्यान में रह सकतामनन की कसौटी है किञ्चित 

अंतरम क्षण कितने कम ढूँढ पाताउनमें निरत हो रख पाता हूँ एकाग्रचित्त। 

 

कहते हैं तू ही जन्मकपालक   संहारकसब हैं जीव तुम्हारी प्रकृति अधीन

तू ही मातापृथ्वी शायद तव ही दर्शित रूपसब अवस्थाऐं तुम द्वारा उद्धृत। 

फिर ब्रह्मांड तो अति विशाल नभ में सितारों-ग्रह दर्शनसुदूर  जा सकते पर 

कुछ रहस्य-भेदन अभी हैं सक्षमअनेक परतें खुलनी शेषकोशिश जारी पर। 

 

कुछ तो जग-विधान होगामान्यताऐं नितांत भ्रामकविज्ञान की भी अल्प दूरी तय

अति पुराकाल में तो आज  जा सकते हैंहाँ देख-समझ अनुमान लगा लेते कुछ। 

सब संस्कृतियों की निज मान्यताऐंलेकिन किसी को पूर्ण सत्य से  मतलब कोई 

कौन बुद्धि पर जोर दे गूढ़ हेतुस्कूल-पुस्तकें तो पढ़ी  जातीमेधावी बस यूँ ही।  

 

फिर पढ़ना मात्र अक्षर ज्ञान तक  सीमितनर को चाहिए दूर-दृष्टि का साहस

भ्रांतियाँ सदा टूटती रहनी चाहिएवृहत संपर्क से ही अनंतता का खुलता मार्ग। 

भगवान मात्र उस अनंत रूप की परिभाषाजो विस्तार करे वही गुरु है परम

जीवन इतना भी सरल कि अपने आप इसमें हो आमूल वाँछित परिवर्तन। 

 

चिंतन-विवेचन-अध्ययन-परीक्षण-सारग्रहणता सीखूँतो कुछ हो वृहद संपर्क 

जग आगमन तो करना पड़ेगासस्ते में  छोड़ूँगा सब अग्नि गुजर बनूँ कुंदन। 

 

पवन कुमार,

१८ अक्टूबर२०२०रविवारसमय :४९ बजे अपराह्न  

(मेरी डायरी १४ फरवरी२०१८ समय :३९ प्रातः से)   

Sunday, 4 October 2020

नवीनीकरण मनन

नवीनीकरण मनन 

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समय क्या है मात्र घड़ी में देखनाया प्रतिदिन स्वयं को करना पुनरावृत्त 

ऋतुऐं बदलती पुनः  जातीसूर्य-चंद्र चक्र की आज सी ही वेला प्रस्तुत।  

 

अर्थ कि कल का भी यही :२६ प्रातः समय गया ठीक २४ घंटे बाद 

पर जो बीत गया वो तो कल किसी और मनोदशा में था आज और। 

घड़ी का समय तो हर दिन आतापर जो बीता वह वापस  सकता  

हाँ अभी यहाँ पृथ्वी विचरितयदि कोई अन्य दूरस्थ ग्रह से देखना चाहे

प्रकाश को दूरी के अनुपात में समय लगेगाउसकी है निश्चित गति एक। 

 

पर जो बीता उसका क्या नवीनीकरण उपायअधिक पर्याय तो गोचर 

हाँ हम फोटो-वीडियो लेतेजब देखते तो पुराना समय हो जाता स्मरण। 

यदा कदा समक्ष घटित हो रहाअपनी डायरी-वाक्यों में अंकित कर लेते 

पर यह पूर्ण का अत्यल्प भाग,  देह में अधिक पूर्ववर्ती आयु  भर सकते। 

 

उपाय क्या समय करबद्ध करने हेतुपर जो बीत गया कहाँ है अपने बस 

विज्ञान भाषा में तो १५ अरब वर्ष पूर्व महाधमाके संग हुआ ब्रह्मांड जन्म। 

तभी से समय-अंतराल प्रस्तुतहाँ धारणाऐं माने तो ब्रह्मांड-आकार वर्धित

दूरियाँ वर्द्धितकहाँ अंत होगा या सिकुड़नसुलझनी हैं गुत्थियाँ अनेक। 

 

हमारा इतिहास ज्ञान अप्राचीनपुरा घटनाओं का बस अनुमान सकते लगा 

पर हमने धारणाओं में अति-लघु नर-उदंत अति-प्राचीन युगों में बाँट दिया। 

 गणना से कालक्रम दियाभारत में सतयुग-त्रेता-द्वापर  कलियुग अवधारित 

वैज्ञानिक तो बस युग-पुराण द्रष्टा ने कुछ ज्ञात को बड़े अंशों में विभाजित। 

 

 नववर्ष मनाना सुभीताकुछ महानरों की अमुक समय-घटना भी आधार मानते 

उस समय-अवधि को काल मान लेतेजैसे भारत की आज़ादी को ७१ वर्ष गए। 

पर समय तो पूर्व भी थायदि पृथ्वी की वर्ष अवधि मानें तो हो गए १५ अरब वर्ष 

अब सबके अपने वर्षहमारी वर्ष कल्पना तो टिकी सूर्य के एक परिभ्रमण पर। 

 

यदि हम बुध ग्रह (८८ दिनपर होंयही १५ खरब हो जाऐंगे लगभग ६२ अरब 

और यदि प्लूटो (२४८ वर्षपर हों तो ब्रह्मांड उम्र रह जाएगी .०४ करोड़ वर्ष। 

फिर हमारी गणना मात्र सूर्य को आधार मानकरब्रह्मांड में अनेकानेक तारे पर 

दूर ग्रहों में तो दिन-रात दर्शन पूर्ण-अंधेरे में सूर्य दिखेगा क्षुद्र नक्षत्र सा एक। 

 

आज हमें थोड़ा बहुत ज्ञान है कि अन्य अधिकांश ग्रहों-उपग्रहों पर नहीं है प्राण 

और यदि प्लूटो पर रहना पड़ेतो यही :१४ बजे आएगा . पृथ्वी दिवस बाद। 

वृहस्पति मात्र १० घंटे में स्व गिर्द एक चक्र लेतावहाँ यही २४ घंटे जाते  १० बन

वरुण (नेप्चयूनपृथ्वी के १६ घंटे लेतादिवस-वर्ष अवधि सबके लिए हैं अलग। 

 

हम धरा-वासी इसे ही आधार मानतेसर्व ज्ञान-चक्र अवधारणाऐं इसके हैं गिर्द 

अभी कुछ सौ वर्षों में वैज्ञानिक-दार्शनिक ज्ञान एकत्रितअनेक अभी भी अविज्ञ।  

हमारी कल्पना में हैं अनेक देव अवतरितवे मानव से ही थे बस देव मान लिया 

उनके वरिष्ठ को ईश माना और कि समस्त सृष्टि-चक्र उसके आदेश से चलता। 

 

हम प्रतिक्षण बदलतेवय-मन का नव प्रारूपकई प्रभाव हैं कर्मशील सतत 

एक अपरिवर्तनीय सा समय बीतताहाँ नए समय में नव भाव होते उत्पन्न। 

उवाचे शब्दों का भी एक अपना प्रभावसुनते हैं तो वे प्रभाव छोड़ते अपना 

चाहे हमें बाहर से तो अधिक  भी दृष्टिमान होजाता है अंतः सर्वस्व हिला। 

 

क्या हम गहन हैं विचार सकतेसमय-अंतराल के रहस्य  निकट से हेतु  वेत्ति 

कुछ पूर्व नासा की faster than light Warp Travel सिद्धांत पर वीडियो देखी। 

Alcubirre Drive से Space-Time को distort करतेस्पेस को मोड़ते चहुँ ओर 

Alpha-Centuri जाने में १५ दिन लगेंगेआइंस्टीन का सापेक्षता-सिद्धांत आधार। 

 

भौतिकी में Space-Time is any mathematical model that fuses three dimensions 

of Space and one dimension of Time into a single four-dimensional continuum.

1905 की आइंस्टीन की सापेक्षता-सिद्धांत के अनुसार प्रकाश की निश्चित गति है स्पेस में 

प्रकाश स्रोत की गति से स्वतंत्रघटनाओं -जोड़ों में दूरी-समय भिन्न बिंदुओं पर बदलते। 

 

कभी समय को अपनी भाषा देने वाले भीकाल-गर्त में समाकर हो गए  विलीन

कितनी ही सभ्यताऐं लुप्तअनेक वनस्पति-जीवों की प्रजातियाँ हो रही विलुप्त। 

कारण कुछ हो कालगति एक दिशा मेंजुरासिक-डायनासोर कहीं  हैं चिन्हित 

कुछ कथाऐं चर्चे हैंमाँ-बाप चले गएकहाँ हमारी या अपनी मर्जी से आते पुनः। 

 

यह क्या हैं जग की गतिविधियाँलोक-संस्कृति  कुछ ग्रंथों में व्याख्यित 

किनने बड़ी धारणाऐं मानव-प्रतिपादितलोग मान भी लेते आँख मूँदकर। 

पर सत्य वही मानना चाहिए जो परीक्षण-प्रयोग के परिणाम पर उतरे सही

मात्र मनन ही  पर्याप्तविज्ञान में प्रत्यक्ष भौतिक-बदलाव ही प्रौद्योगिकी।  

 

अधिक तो  उच्चतर शिक्षाबस स्वयमेव या जैसे भी शिक्षक मिलेंसीख लिया 

 विद्या-पारंगत  तो  मैंअति-अनुशासित होकर तो विषयों का चिंतन  किया। 

विद्वता-पथ कठिननिरंतर ध्यान-केंद्रित अध्ययन से ही संकल्पनाओं में प्रवेश

अनेक तथ्य तो हैं अपरिचितफिर एक पूर्ण जीवंत जीवन हेतु कितना अपेक्षित। 

 

जीवन कैसे बढ़ा सकतेएक पक्ष कि उपलब्ध समय पूर्ण उपयोग जाए किया 

अर्थ  यदि हम प्रतिदिन १८ घंटे काम करेंवह १२ घंटे वाले  से अधिक होगा। 

एक वैज्ञानिक अवधारणा थोड़ा पूर्व पढ़ीपृथ्वी पर रहें  गतिमान रहें त्वरित

कहते हैं पर्वत तल पर रहने वालाशिखर पर निवास वाले से जिऐगा अधिक। 

 

और कि यदि हम स्पेस में हैं तोवय में धरती की अपेक्षा धीमी गति से बढ़ेंगे 

यदि गगनयान प्रकाश-गति से चलता है माना यात्री २० वर्ष रहता उसमें। 

निश्चितेव २० वर्ष में महद दूरी लाँघ लेगापर उसके धरा-बंधु की अल्प ही गति

यावत भू-बंधु वय अति वर्धितसाहित्य में यह  वर्ष की अपेक्षा ३८ वर्ष कही। 

 

किंचित महा-संपर्कों का अनुभवजग को खुली नज़रों से देखना-समझना 

पर ये सब तर्क-वितर्कउतने ही समय में एक ने अधिक अनुभव ले लिए। 

उपलब्ध जिंदगी में अत्यधिक घूम सकते होनिज को समृद्ध कर सकते हो 

सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट में ३५-४० वर्ष की वय में ही इतना कमा लिया 

अधिकांश हम कई जन्मों में भी उतना निपुणतायश-धन  कमा सकते। 

 

प्राण-समृद्धि कुछ महा-संपर्कों की चेतनाखुली नज़रों से विश्व देखना-समझना 

इसके पूर्ण-आत्मसात का उत्साहजब जितना अधिक बन जाए झिझकना। 

उपलब्ध समय हो पूर्ण प्रयोगउत्साह से नव-सृजन हो नवीन वर्तमान पलों में 

वास्तव में सर्वस्व ही नवीनमन में कैसे अनुभव कर रहेतुम्हारा व्यक्तित्व है। 

 

यह मनन भी यथार्थ अनुभव का महायंत्र हैप्रयोग कर कुछ विद्वान हो जाओ 

कार्ल-सागनऐसीमोवस्टीफन हाकिंग से महानरों से कुछ लाभ लेना सीखो। 

  

पवन कुमार,

०४ अक्टूबर२०२० रविवासरसमय :३५ बजे प्रातः 

(मेरी डायरी दि  २५ मार्च२०१८ रविवार १०:५८ प्रातः से )