एक गीत
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तेरा गाना बनाऊँ, सुर में गाऊँ, गाने के संग साज बजाऊँ
मन में सुरीली तान बनाकर तेरी रहमत का गीत सुनाऊँ।
तू तो सबको ही देखे हैं, सबके मन में तो झाँके हैं
तू मेरी पहचान तो दे, आकर मेरा आईना दिखा दे।
तू कैसे हो पास में मेरे, इसी बात की चिंता है
संग सदा मैं रहना चाहूँ, अन्तर को बाहर निकालूँ।
बन्द पड़ा है मेरा डब्बा, चाबी इसकी पास है तेरे
खोल दे तो दर्शन हो, फिर जानूँ कितना उजला हूँ।
नहीं आवश्यक कि मैं अच्छा-भला ही होऊँगा
पर तेरे संग जो रहा हूँ, कुछ तो छाप पा ही जाऊँ।
अपने अन्तर के रत्नाकर में, डुबकी कैसे लगाऊँ
डर कर बैठा बाहर मैं, नहीं साहस फिर कर पाऊँ।
होगी आत्मा मेरी पुलकित जब तेरे दर्शन होंगे प्रभु
बैठा बाहर अन्त्यज भाँति, कैसे मैं प्रवेश पाऊँ?
कैसे होगा तेरा दर्शन, इसी सोच में यूँ बैठा
मैं रीता हूँ, आकर मुझको भर जाओ।
कृपा देकर अपनी इसको भी श्रेष्ठ बना दो
तैरुँ जग-वैतरणी से, तेरे में ही मिल मिल जाऊँ।
नहीं ज्ञान-डोलूँ यूँ ही, नहीं समय का ही मान
तेरी शरण में हूँ प्रभु, कर लेना मेरा भी ध्यान।
पवन कुमार,
25 मार्च, 2016 समय 18:47 सांय
25 मार्च, 2016 समय 18:47 सांय
( मेरी डायरी 5 नवंबर, 2012 समय 11:10 से )
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