Kind Attention:

The postings in this blog are purely my personal views, and have nothing to do any commitment from Government, organization and other persons. The views in general respect all sections of society irrespective of class, race, religion, group, country or region, and are dedicated to pan-humanity. I sincerely apologize if any of my writing has hurt someone's sentiments even in the slightest way. Suggestions and comments are welcome.

Sunday 10 January 2016

अवलोकन

अवलोकन 
---------------


बाहर सरसरा सा देखता हूँ, तो कुछ विशेष न आता नज़र

मात्र सूखते हुए कुछ कपड़े हैं, अस्त- व्यस्त वही बिस्तर॥

 

कुछ खुला खिड़की-भाग है, चार्जर के साथ रखा लैपटॉप

कक्ष की आवश्यकता है, कुछ रोचक सुव्यवस्था हो साथ।

बाह्य तो नहीं अति-प्रेरक, मात्र साधन बिताना कुछ समय

माना कार्य जीविकोपार्जन हेतु जरूरी है, पर अंतर शून्य॥

 

निकलता नहीं स्वतः ही कुछ, लगता बिता समय रहे बस

सार्थकता कर्मों को न मिलती, अति दूर है वस्तु तो परम।

बाह्य अनुभव अंदर जाकर, बुद्धि-कोष्टकों में बनाता जगह

समय पर उपस्थिति जता, अन्यों से जोड़े हैं मन-उपकरण॥

 

समय काटना प्रायः बड़ा उबाऊ, अनुभूति अल्प- उपयोग

बेचैनी बढ़े अन्यान्य दृश्यों हेतु, अपेक्षाकृत है प्रेरक-समृद्ध।

अनेक दृश्य, पर मैं क्या देख रहा हूँ, यह स्वयं पर ही निर्भर

कोई खिड़की से कीचड़ ही देखता है, समक्ष राज-मार्ग पर

कोई नभ में कांतिमान चंद्र-तारकों पर ही लगाए है नज़र॥

 

कोई किस्मत-रोना रोता, कोई रवि देख कवि ही बन जाता

सतत उद्योग महद लक्ष्य, कालिदास सा अनुपम कर जाता।

इसी माहौल में क्या मैं भी, कुछ अप्रतिम सा हूँ पाता निहार

बहुत उपलब्ध यदि उचित दृष्टि है, देखो कितने भरें रोमांच॥

 

प्रकृति देख अनेक आमजन भी, बनें हैं प्रणेता व परिभाषक

सर्वस्व निकला है यहीं से, सोच बैठा, संग्रह से बना उपयुक्त।

कुछ दिशा बदलो, खिड़की- द्वार खोलो, प्रकाश करो दुरस्त

 हल्के रंगी दीवार पर पड़ती, भानु-रश्मि निर्मित चित्र ही देख॥

 

रोशनदानों से भिन्न प्रकाश- मात्रा का, विविध है रूपावलोकन

मेज़ पर रखे प्लास्टिक जग व पारदर्शी ग्लासों में दीप्त-सौंदर्य।

फर्श-टाइल पर अर्ध-खुली खिड़की से आती, कांति-छटा देख

कभी बहुत प्रभाकर-प्रयोग, इसी क्षण भिन्न धरातलों पर देख॥

 

डायरी नीचे रखे तकिए-कवर पर बनी डिज़ाइन-संरचना देख

कंबल पर विभिन्न सफेद-रक्तिम-कृष्ण वर्णी पट्टियों को देख।

किनारों पर लाल गाढ़े वर्ण वस्त्र-मोल्डिंग में देखो छुपा सौंदर्य

किनारों के साथ जोड़ा इसका बॉर्डर, लगता है बहुत मनोरम॥

 

क्या कभी ध्यान से देखा है, भूरी-धारियों वाली ऊपरी मेज़-तल

गहरे भूरे- कृष्णवर्णी किनारा-पट्टी, पायों साथ लगे अति सुंदर।

सज्जित- तराशे ४ पायें हैं, ऊपर दो काटों में लगे चाँदी से वलय

नीचे एक और तल है बहु-प्रयोगार्थ, अभी रखी खाने की प्लेट॥

 

सामने सामान रखने का एक कपबोर्ड रखा, आधे-खुले हैं द्वार

हल्के पीत- वर्णी खिड़कियाँ, बाह्य तल व अंदर है श्वेत-रोगन।

उस पर हैं एक बैग, कुछ कपड़ें, ताला व उतार रखा टैप-नल

कंबल-केस अलमारी पर, दूजा-अर्ध नीचे दायें हाथ में दर्शित॥

 

फिर एक छोटा सामान रखने का डब्बा, दूजी ओर है दिखता

नीचे बायें हाथ रखा है, सुबह सैर के जूतों का पोलीथीन बस्ता।

ऊपर खूँटी पर कोट लटका है, बाकी ५ खूँटियाँ खाली दिखती

बिजली का स्विचबोर्ड साथ, ऊपर छत से कुछ नीचे ट्यूब लगी

काले रंग का कंड्यूट पाइप ट्यूब नीचे, फिर छत श्वेत दिखी॥

 

लकड़ी-कपाट, अंदर से श्वेत रंग-रोग़न, चौकट प्रस्तर-निर्मित

दो चिटकनी-एक हैंडल हैं, तीन कब्जें एक में चार नट-बोल्ट।

दीवार-नीचे फर्श से मिलता टाइल-झालर, भित्ति रंग से है मैच

 ऊपर द्वार संग स्तंभ-टाइल में पर्दे का डंडा, बढ़े स्नानघर तक॥

 

स्नानघर में लगी टाइलों पर, ऊपर-नीचे गाढ़े- भूरे रंग का बॉर्डर

नीचे भी टाइल लगी उसी रंग की, जो विषमता देने हेतु चयनित।

इसी तरह से, अभी बंद दो पंखों सहित मैं छत को सकता देख

बहु गुह्य दर्शन संभव यदि समय हो, पर अभी चलो कार्यालय॥

 

कुछ ऐसा भी आवश्यक है,जब भी समय मिले, विविधता हेतु कोशिश करो॥



पवन कुमार, 
10 जनवरी, 2015 समय 12:00 म० रा०  
(मेरी डायरी दि० 29 जनवरी, 2015 समय 9:21 प्रातः से)

No comments:

Post a Comment